Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • युद्धविराम के बाद भी सीमा पर आबादी डर और दहशत के साये में
    • महाराष्ट्र के पुणे में पुल ढहने से 4 की मौत, 38 लोग बचाए गए
    • भारत-पाक की तरह इसराइल-ईरान के बीच समझौता कराया जाएगा: ट्रंप
    • Chandauli News: भाजपा देश व प्रदेश को विकास से कर रही मजबूत…सुशील सिंह
    • पहलगाम के बाद कार्रवाई के बावजूद समस्या तो खत्म हुई नहीं: भागवत
    • Azamgarh News: सपा जिला अध्यक्ष हवलदार यादव ने भाजपा सरकार पर लगाए आरोप, कहा- ‘जाति और धर्म के आधार पर की जा रही है नियुक्तियां’
    • विशेषज्ञों ने ख़त क्यों लिखा- अमेरिका टैरिफ़ कम न करे तो भारत डील से हट जाए?
    • क्या फ़िल्म ‘पायर’ है भारत की ‘नो मैन्स लैंड’? जानें क्यों हो रही है तुलना
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » Hathila Baba Dargah History: कौन थे हठीले शाह ? जिनकी दरगाह हैं सांप्रदायिक समरसता का प्रतीक, यहां के ऐतिहासिक रौजा मेला पर क्यों लगा है प्रतिबंध?
    Tourism

    Hathila Baba Dargah History: कौन थे हठीले शाह ? जिनकी दरगाह हैं सांप्रदायिक समरसता का प्रतीक, यहां के ऐतिहासिक रौजा मेला पर क्यों लगा है प्रतिबंध?

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 16, 2025No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    Hathila Shah Baba Dargah Shareef History  and Intresting Facts

    Hathila Shah Baba Dargah Shareef History  and Intresting Facts

    Hathila Baba Dargah Shareef History: भारत एक विविधताओं से भरा देश है जहां धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताएं सदियों से एक साथ पनपती रही हैं। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित हठीले शाह की दरगाह, जिसे गाजी सैय्यद सालार मसूद की मजार के रूप में भी जाना जाता है, इसी धार्मिक सह-अस्तित्व का सशक्त उदाहरण है। हर साल जेठ महीने में यहां आयोजित होने वाला रौजा मेला, न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र होता है बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल भी पेश करता है। लेकिन अब इस पर प्रतिबंध लग चुका है। अब यहां जेठ माह में लगने वाली रौनकें अब बेजार हो चुकी हैं। आइए जानते हैं हठीले शाह उर्फ गाजी मियां के इतिहास, किंवदंतियों, मेले के सांस्कृतिक महत्व, और वर्तमान विवादों के बारे में विस्तार से –

    गाजी सैय्यद सालार मसूद कौन थे

    गाजी सैय्यद सालार मसूद एक गजनवी सेनापति थे, जिन्हें 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत में हुए मुस्लिम अभियानों के साथ जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे महमूद गजनवी के भांजे थे और उनके नेतृत्व में भारतीय उपमहाद्वीप में कई अभियानों में भाग लिया। वह एक कुशल योद्धा के साथ-साथ धार्मिक भावना से परिपूर्ण युवा थे। मात्र 16 वर्ष की आयु में ही वे युद्ध क्षेत्र में मारे गए और उनकी कब्र बहराइच में बनवाई गई।

    इतिहास और मजार की स्थापना

    ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार 1034 ईस्वी में सालार मसूद की मृत्यु के बाद उनकी कब्र बहराइच में बनवाई गई। उनकी मृत्यु सुहेलदेव नामक एक स्थानीय राजा के साथ युद्ध में हुई मानी जाती है। यह स्थल बाद में धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया। गाजी मियां जब महमूद गजनवी के अभियान के साथ भारत आए, तो उन्होंने उत्तर भारत में कई इलाकों से होकर सैन्य अभियान चलाया। गोंडा, बहराइच और बलरामपुर जैसे क्षेत्र इस मार्ग का हिस्सा माने जाते हैं।

    ऐसा माना जाता है कि गोंडा क्षेत्र में उन्होंने कुछ समय विश्राम किया या सैन्य पड़ाव डाला। स्थानीय जनश्रुतियों में उनके सहयोगियों की मजारें भी गोंडा और आस-पास देखी जाती हैं। 1250 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने यहां (बहराइच) एक भव्य मजार का निर्माण करवाया, जिससे इस स्थल की मान्यता और अधिक बढ़ गई। इस मजार की बनावट और स्थापत्य कला उस काल के इस्लामी स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है, जिसमें संगमरमर, हरे पत्थर और नक्काशीदार मेहराबों का उपयोग हुआ है।

    हठीले शाह नाम की उत्पत्ति और इससे जुड़ी मान्यताएं

    हठीले शाह नाम दरअसल सालार मसूद के भक्तों द्वारा श्रद्धा के साथ दिया गया एक उपनाम है। ‘हठीले’ का अर्थ होता है अडिग या ज़िद्दी, और यह इस बात की ओर संकेत करता है कि कैसे सालार मसूद अपने धार्मिक विश्वासों और सिद्धांतों पर अडिग रहे, भले ही उन्हें अपने जीवन की आहुति देनी पड़ी। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, वे एक दिव्य शक्तियों से युक्त संत थे, जिनकी मजार पर मत्था टेकने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए, समय के साथ, उनकी मजार एक सूफी दरगाह के रूप में विख्यात हो गई।

    हर साल जेठ महीने में लगने वाला यह मेला उत्तर भारत के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में गिना जाता है। इसकी शुरुआत बाराबंकी के देवा शरीफ से गाजी मियां की ‘बारात’ के रूप में होती है, जो बहराइच पहुंचती है। यह धार्मिक यात्रा कई किलोमीटर लंबी होती है और इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मेले में झूले, दुकाने, सूफी संगीत और कव्वालियों का दौर चलता था। हिंदू मुस्लिम सभी धर्म के लोग यहां चादर चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। वहीं हिंदू महिलाएं नारियल और चुनरी चढ़ाकर प्रार्थना करती हैं।

    हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

    इस मेले की सबसे अनोखी बात यह है कि इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालुओं में बड़ी संख्या हिंदू समुदाय की होती है। 2000 के दशक में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि मेले में आने वाले अधिकांश आगंतुक हिंदू होते हैं। यह धार्मिक आयोजन इस बात का उदाहरण है कि कैसे भारत की मिट्टी में गंगा-जमुनी तहज़ीब ने एक ऐसा वातावरण बनाया है जहां धार्मिक सीमाएं धुंधली हो जाती हैं और केवल आस्था और श्रद्धा की प्रधानता होती है।

    किंवदंतियां और विवाद

    हालांकि गाजी मियां को एक दिव्य संत के रूप में मान्यता मिली है, किंवदंतियों में राजा सुहेलदेव को भी एक योद्धा के रूप में महिमामंडित किया गया है। कुछ कथाओं में सुहेलदेव को एक ऐसे हिंदू राजा के रूप में चित्रित किया गया है जिसने एक मुस्लिम आक्रमणकारी के खिलाफ साहसिक युद्ध लड़ा। परंतु कुछ विद्वान इन दावों को ऐतिहासिक साक्ष्यों से पुष्ट नहीं मानते। वर्तमान समय में कुछ हिंदू संगठनों ने सुहेलदेव को ‘हिंदू अस्मिता’ का प्रतीक बताते हुए गाजी मियां को ‘विदेशी आक्रमणकारी’ के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। इससे दरगाह और मेले की छवि पर भी प्रभाव पड़ा है।

    वर्तमान स्थिति और प्रतिबंध

    रौजा मेले पर प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसकी प्रमुख वजह है धार्मिक ध्रुवीकरण और सुरक्षा कारण। स्थानीय प्रशासन मेले के दौरान किसी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा न हो, इसके लिए पहले भी पुलिस बल की भारी तैनाती की जाती थी। हठीले शाह (गाजी सैय्यद सालार मसूद) की दरगाह पर लगने वाले पारंपरिक जेठ मेले पर 2025 में प्रतिबंध लगाया गया है। इससे पहले, 2024 में भी मेले के आयोजन को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, लेकिन उस वर्ष मेला आयोजित हुआ था। इस प्रकार, 2025 में यह पहला वर्ष है जब प्रशासन ने आधिकारिक रूप से मेले की अनुमति देने से इनकार किया है।

    स्थानीय लोग, विशेष रूप से व्यापारी वर्ग और धार्मिक श्रद्धालु, इस प्रतिबंध से आहत हुए हैं। उनका मानना है कि यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियां भी उनके जीवनयापन का साधन थीं। हठीले शाह की दरगाह के मेले में आने वालों का दायरा सिर्फ बहराइच या गोंडा तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक अंतर-जनपदीय और अंतर-राज्यीय श्रद्धालु परंपरा थी। यह मेले की सांस्कृतिक समरसता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।

    लोग मनोकामना पूर्ति, संतान प्राप्ति, बीमारी से मुक्ति, और उर्स के अवसर पर चादर चढ़ाने के उद्देश्य से आते थे। कई परिवार पीढ़ियों से यह परंपरा निभाते आ रहे थे।प्रशासन ने संकेत दिया है कि भविष्य में स्थिति सामान्य होने पर मेले के आयोजन की अनुमति दी जा सकती है। स्थानीय लोगों और दरगाह प्रबंधन समिति ने भी आशा व्यक्त की है कि आने वाले वर्षों में मेला पुनः आयोजित किया जाएगा।

    आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

    रौजा मेले का स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता था। स्थानीय व्यापार में होटल, रेहड़ी-पटरी, मिठाई की दुकानें, कपड़े और खिलौनों की दुकानें सभी को मेले से आमदनी होती थी। हस्तशिल्प और कला को बढ़ावा मिलने के साथ मेले में क्षेत्रीय लोककला, नृत्य और संगीत को मंच मिलता था। यहां बाहर से आने वाले लोग आसपास के पर्यटन स्थलों का भी भ्रमण करते थे, जिससे पर्यटन को भी बल मिलता। हठीले शाह की दरगाह और उससे जुड़ा रौजा मेला एक ऐसा सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन रहा है जिसने वर्षों से भारत की सांप्रदायिक सद्भावना को मज़बूती दी है। भले ही इतिहास के कुछ पहलू विवादास्पद हों, लेकिन इस स्थल की महत्ता स्थानीय जनमानस के लिए अत्यधिक है।

    आज जब देश धार्मिक ध्रुवीकरण की चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे आयोजनों की पुनर्स्थापना और संरक्षण की ज़रूरत पहले से कहीं अधिक है। यह न केवल हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने में मददगार साबित होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगा कि भारत की आत्मा उसकी विविधता और समरसता में निहित है।

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleविपक्षी दलों को केंद्र के प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर आपत्ति क्यों? जानें स्टालिन जैसे नेता क्या बोले
    Next Article नीरव मोदी को फिर से बड़ा झटका, यूके हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की
    Janta Yojana

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    Related Posts

    Aral Sea Dried: जान समंदर बन गया रेगिस्तान! अराल सागर की कहानी आपको हैरान कर देगी

    June 15, 2025

    क्या है गोल गुंबज का रहस्य! कैसे यह प्राचीन तकनीक बिना बिजली के देता है स्पीकर जैसा अनुभव

    June 14, 2025

    Zero Mile Stone History: एक ऐसा ऐतिहासिक पत्थर जो बना था भारत की दूरी का केंद्र बिंदु

    June 14, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    केरल की जमींदार बेटी से छिंदवाड़ा की मदर टेरेसा तक: दयाबाई की कहानी

    June 12, 2025

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.