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    Home » History Odisha King: ‘कलिंगाधिपति’ एक गुमनाम राजा , जिनकी जानकारी मिली हाथीगुंफा शिलालेख से
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    History Odisha King: ‘कलिंगाधिपति’ एक गुमनाम राजा , जिनकी जानकारी मिली हाथीगुंफा शिलालेख से

    By January 11, 2025No Comments8 Mins Read
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    History Odisha King Samrat Kharvel (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    History Odisha King Samrat Kharvel: वे प्राचीन कलिंग (Kalinga Kngdom) के पहले महान ऐतिहासिक सम्राट थे, जो अपनी भूमि के थे। स्वयं को ‘चेतराज वंशवर्धन’ (Chetraj Vanshvardhan) और ‘कलिंगाधिपति’ (Kalingadhipati) कहते थे। उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी हाथीगुम्फा शिलालेख (Hathigumpha Shilalekh) से मिलती है। इसमें कहा गया है कि उनके शरीर पर कई शुभ चिह्न थे, वे अनेक गुणों से संपन्न थे और सुंदर व्यक्तित्व वाले, सांवले रंग के थे। जीवन के पहले पंद्रह वर्षों में, उन्होंने राजकुमारों के लिए आवश्यक खेल खेले, जो उन्हें भविष्य की भूमिका के लिए तैयार करने हेतु थे।

    सम्राट खारवेल (Samrat Kharvel) प्राचीन भारत के एक महान और अद्वितीय शासक थे, जिन्होंने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर शासन किया। खारवेल ने न केवल सैन्य अभियानों के माध्यम से अपने राज्य की खोई हुई महिमा को पुनः स्थापित किया, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक विकास और जनता के कल्याण के लिए भी अनेक कार्य किए। उनकी शासनकाल की जानकारी मुख्यतः हाथीगुम्फा शिलालेख से प्राप्त होती है, जो भारतीय इतिहास (Indian History) का एक महत्वपूर्ण अभिलेख है।

    हाथीगुम्फा शिलालेख का महत्व (Hathigumpha Shilalekh Ka Mahatva)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    शिलालेख प्राकृत भाषा में ब्राह्मी लिपि (Brahmi Lipi) में लिखा गया है। इसमें खारवेल के 13 वर्षों के शासन का क्रमिक विवरण दिया गया है। शिलालेख खारवेल की सैन्य अभियानों, धार्मिक कार्यों, और सांस्कृतिक योगदानों को रेखांकित करता है।

    युवराज के रूप में खारवेल (Kharvel As Prince)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    15 वर्ष की आयु में खारवेल युवराज (Yuvraj Kharvel) बने और राजकीय जिम्मेदारियों को निभाना शुरू किया। उस समय तक वे पाँच मुख्य विषयों में निपुण हो चुके थे: लेख (लेखन), रूप (मुद्राशास्त्र), गणना (गणित), व्यवहार (कानून) और विधि (प्रक्रिया)। इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य कलाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया।

    हाथीगुम्फा शिलालेख में वर्णित खारवेल की शिक्षा से प्राचीन भारत में राजकुमारों की शिक्षा पद्धति पर रोशनी पड़ती है। एक भविष्य के राजा को अपने प्रारंभिक जीवन में ऐसी शिक्षा प्रणाली से गुजरना होता था, जो उनके राजकीय करियर के लिए आवश्यक हो।

    इस सुदृढ़ शैक्षिक पृष्ठभूमि के साथ, खारवेल ने युवराज के रूप में 9 वर्षों तक प्रशासन का अनुभव प्राप्त किया। अपने 24वें वर्ष के बाद, जब वे नाबालिगता की सीमा पार कर चुके थे, उन्हें कलिंग का राजा घोषित किया गया। इस प्रकार उन्होंने अपने राजवंश की तीसरी पीढ़ी के राजा के रूप में गौरवशाली शासन की शुरुआत की।

    खारवेल का धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

    खारवेल ने जैन धर्म के प्रचार और संरक्षण के लिए कई कार्य किए। उन्होंने जैन मुनियों के लिए गुफाओं और ध्यान स्थलों का निर्माण कराया। खारवेल ने नृत्य, संगीत, और नाट्य कला को प्रोत्साहित किया। उनके शासनकाल में स्थापत्य कला और मूर्तिकला का अद्भुत विकास हुआ।

    राजा के रूप में खारवेल (Kharvel As King)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    राजा बनने के बाद, खारवेल ने सबसे पहले अपनी राजधानी ‘कलिंगनगर’ के किलेबंदी पर ध्यान दिया। राजधानी, जो एक भीषण तूफान से क्षतिग्रस्त हो चुकी थी, की मरम्मत और पुनर्निर्माण की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने शासन के पहले वर्ष में राजधानी के द्वार, किलेबंदी और किले की संरचनाओं की मरम्मत करवाई। उन्होंने शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए तालाबों और बाग-बगीचों की स्थिति में सुधार किया। इन कार्यों पर 35 लाख मुद्राएँ खर्च हुईं।

    राजधानी ‘कलिंगनगर’: खारवेल के समय में राजधानी का नाम ‘कलिंगनगर’ था। कई विद्वानों का मानना है कि यह आधुनिक भुवनेश्वर के पास स्थित थी। सिसुपालगढ़ में पुरातात्विक खुदाई से इस क्षेत्र में एक मजबूत किलेबंदी, रक्षात्मक दीवारों और द्वारों के अस्तित्व का पता चला है। कई विशेषज्ञ इसे अशोक के समय की ‘तोषाली’ और खारवेल की ‘कलिंगनगर’ मानते हैं।

    सैन्य शक्ति और दक्षिण विजय (Military Power And Southern Conquest)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    खारवेल ने अपनी राजधानी को मजबूत बनाने के बाद अपनी सेना का विस्तार किया। उनके शासन के दूसरे वर्ष में, उन्होंने दक्षिण भारत में विजय अभियान शुरू किया। हाटीगुम्फा शिलालेख के अनुसार, उन्होंने सातवाहन राजा सातकर्णी की शक्ति की परवाह किए बिना, अपनी सेना को पश्चिम की ओर भेजा। उनकी सेना ने कृष्णा नदी तक सफलतापूर्वक आक्रमण किया।यह विजय दर्शाती है कि खारवेल सातवाहनों की शक्ति को चुनौती देने में सक्षम थे।

    सांस्कृतिक संरक्षण और राजधानी का विकास (Cultural Preservation And Capital Development)

    अपने शासन के तीसरे वर्ष में, खारवेल ने अपनी राजधानी के निवासियों के मनोरंजन के लिए बड़े पैमाने पर त्योहारों और उत्सवों का आयोजन किया। उन्होंने नृत्य, गायन और संगीत के प्रदर्शन करवाए। पाँचवें वर्ष में, उन्होंने एक प्राचीन नहर का विस्तार किया जो 300 वर्षों पहले नंदराज द्वारा बनवाई गई थी। यह नहर राजधानी तक पहुँचाई गई।

    उत्तर भारत और मगध पर विजय

    आठवें वर्ष में, खारवेल ने उत्तर भारत की ओर अपना अभियान शुरू किया। उनकी सेना ने राजगृह पर आक्रमण किया और गोरथगिरि के किले को ध्वस्त कर दिया। यह किला मगध की राजधानी पाटलिपुत्र की रक्षा के लिए बना था। उनके अभियान से यवन राजा (इंडो-ग्रीक शासक) भी भयभीत होकर मथुरा की ओर लौट गया। खारवेल ने मथुरा पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। उन्होंने ब्राह्मणों और आम जनता को विजय से अर्जित संपत्ति बांटी।

    तमिल राज्यों पर विजय

    ग्यारहवें वर्ष में, खारवेल ने दक्षिण के तमिल राज्यों के संघ पर विजय प्राप्त की। इस संघ में चोल, पांड्य, केरलपुत्र और तम्रपर्णी (श्रीलंका) जैसे राज्य शामिल थे। यह संघ 1300 वर्षों से एकजुट था। खारवेल की विजय ने इस प्राचीन संघ को तोड़ दिया और दक्षिण भारत में कलिंग का वर्चस्व स्थापित किया।

    मगध पर अंतिम विजय और कलिंग जैन की वापसी

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    बारहवें वर्ष में, खारवेल ने मगध पर एक और सफल आक्रमण किया। उन्होंने मगध के राजा बृहस्पतिमित्र को हराया। उन्होंने नंद वंश के राजा द्वारा चुराई गई ‘कलिंग जैन’ की मूर्ति को वापस लाया। इस विजय ने खारवेल को भारत का एक महान विजेता बना दिया।

    धार्मिक रूपांतरण और अंतिम वर्ष (Kharavel Religious Conversion)

    अपने शासन के 13वें वर्ष में, खारवेल ने धर्म की ओर ध्यान दिया। वे जैन धर्म के अनुयायी बन गए और ‘उपासक श्री खारवेल (Upasak Shri Kharavel)’ कहलाए। तमिल राज्यों के राजा ने उन्हें अनमोल रत्न और माणिक्य भेंट किए। इसके बाद, उनका जीवन धार्मिक कार्यों में व्यतीत हुआ।

    खारवेल के शासनकाल के प्रमुख पहलू (Kharavel Ka Shasankal)

    1. सैन्य अभियानों में सफलता

    खारवेल को उनके सैन्य अभियानों और विजय अभियानों के लिए जाना जाता है।

    दक्षिण भारत पर विजय: खारवेल ने दक्षिण भारत के कई राज्यों पर आक्रमण किया। उन्होंने सातवाहन साम्राज्य को हराया और अपनी शक्ति को दक्षिण भारत में बढ़ाया।

    उत्तर भारत पर विजय: उन्होंने मगध पर आक्रमण किया, जो उस समय शुंग साम्राज्य के अधीन था। उन्होंने मगध के राजा को हराकर जैन तीर्थंकर की चोरी की गई मूर्ति को वापस कलिंग लाया।

    पश्चिम भारत में यवनों की हार: खारवेल ने यवनों (ग्रीक शासकों) के आक्रमण को विफल कर दिया। यह उनकी सैन्य शक्ति और रणनीति का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

    मगध और नंद वंश की हार: उन्होंने नंद वंश के शासन को चुनौती दी और मगध के सम्राट को हराया। इस विजय ने खारवेल को एक शक्तिशाली सम्राट के रूप में स्थापित किया।

    2. धार्मिक योगदान

    खारवेल जैन धर्म के अनुयायी थे। लेकिन उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया।उन्होंने जैन मुनियों और भिक्षुओं के लिए कई गुफाओं और आश्रमों का निर्माण कराया।उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं का निर्माण कराया, जो जैन धर्म के अनुयायियों के लिए ध्यान और साधना का प्रमुख केंद्र बनीं।खारवेल ने जनता के धार्मिक और सांस्कृतिक विकास के लिए कई प्रयास किए।

    3. सार्वजनिक कल्याण और विकास कार्य

    खारवेल ने अपने शासनकाल में जनता के कल्याण के लिए अनेक योजनाएँ लागू कीं।उन्होंने नहरों, बाँधों और जलाशयों का निर्माण कराया, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।व्यापार और यातायात को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने सड़कों और बंदरगाहों का निर्माण कराया।उन्होंने अपने शासनकाल में नृत्य, संगीत, और नाटकों को बढ़ावा दिया।

    धार्मिक सहिष्णुता- यद्यपि खारवेल जैन धर्म के अनुयायी थे, उन्होंने ब्राह्मण धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य परंपराओं का भी सम्मान किया।उन्होंने मंदिरों और धार्मिक स्थलों के निर्माण में योगदान दिया।उनके शासनकाल में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को समान रूप से संरक्षित और प्रोत्साहित किया गया।

    सम्राट खारवेल की मृत्यु (Kharavel Ki Mrityu)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    खारवेल की मृत्यु और उनके शासनकाल के अंत के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन उनकी उपलब्धियाँ और योगदान उन्हें भारत के इतिहास में एक महान शासक के रूप में स्थापित करते हैं।

    सम्राट खारवेल एक दूरदर्शी, बहुआयामी और कुशल शासक थे। उन्होंने कलिंग साम्राज्य की खोई हुई महिमा को पुनः स्थापित किया। अपने सैन्य अभियानों, धार्मिक कार्यों, और सांस्कृतिक योगदानों से भारतीय इतिहास में अपनी पहचान बनाई। उनकी कहानी न केवल शक्ति और साहस का प्रतीक है, बल्कि यह धर्म, सहिष्णुता, और कल्याण के आदर्शों का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है।

    खारवेल का जीवन और शासनकाल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें न केवल एक महान योद्धा, बल्कि एक संवेदनशील और कुशल प्रशासक के रूप में प्रेरणा देता है।

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