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    Home » History Of Goa: कैसे हुआ गोवा का भारत में विलय? जानिए ऑपरेशन विजय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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    History Of Goa: कैसे हुआ गोवा का भारत में विलय? जानिए ऑपरेशन विजय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

    By March 25, 2025No Comments8 Mins Read
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    History Of Goa: भारत की स्वतंत्रता के बाद भी देश के कुछ हिस्से औपनिवेशिक शासन के अधीन बने रहे, जिनमें गोवा, दमन और दीव प्रमुख थे। पुर्तगाल, जिसने सैकड़ों वर्षों तक इन क्षेत्रों पर शासन किया था, भारत सरकार के शांतिपूर्ण वार्तालाप और कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद इन्हें स्वतंत्र करने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में, भारत ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता को सुनिश्चित करने के लिए 1961 में ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत एक निर्णायक सैन्य अभियान चलाया। यह सैन्य हस्तक्षेप मात्र एक भूभाग की मुक्ति नहीं थी, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता, अखंडता और आत्मनिर्भरता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी था। इस अभियान की सफलता ने भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत किया और उपनिवेशवाद के अंत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

    इस लेख में हम गोवा मुक्ति आंदोलन की पृष्ठभूमि, भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयासों, सैन्य हस्तक्षेप की आवश्यकता और ‘ऑपरेशन विजय’ की ऐतिहासिक सफलता पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।

    गोवा पर पुर्तगालियों का शासन (Portuguese Rule Over Goa)

    गोवा(Goa), जिसे आज भारत के एक प्रमुख पर्यटन स्थल और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है, एक समय पुर्तगाली शासन के अधीन था। 15वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों ने नए समुद्री मार्गों की खोज शुरू की, ताकि वे सीधे एशियाई देशों के साथ व्यापार कर सकें। 1498 में, वास्को द गामा (Vasco da Gama)नामक एक पुर्तगाली नाविक भारत के कालीकट (केरल) पहुँचा और यहाँ के मसालों और अन्य बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार का अवसर देखा। इसके बाद, पुर्तगालियों ने भारत में अपने व्यापारिक ठिकाने स्थापित करने का निर्णय लिया और धीरे-धीरे उन्होंने कई तटीय क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया।

    1509 में, पुर्तगाल(Portugal )ने अपने सबसे शक्तिशाली गवर्नर अल्फोंसो डी अल्बुकर्क(Governor Alfonso de Albuquerque) को भारत भेजा। उसने देखा कि गोवा एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, जो अरब, फारसी और भारतीय व्यापारियों के लिए एक प्रमुख बंदरगाह था। उस समय गोवा पर बीजापुर सल्तनत के अधीन यूसुफ आदिल शाह का शासन था। अल्बुकर्क ने 1510 में आदिल शाह के गवर्नर (इस्माइल अदिल खान) को पराजित कर गोवा पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद, उन्होंने गोवा को पुर्तगाली उपनिवेश के रूप में विकसित किया और इसे एशिया में अपने व्यापार और सैन्य गतिविधियों के केंद्र के रूप में स्थापित किया।

    भारत पर विभिन्न विदेशी शक्तियों ने शासन किया, लेकिन गोवा पर पुर्तगालियों का प्रभाव सबसे लंबा और विशिष्ट था। 1510 में पुर्तगालियों ने इसे विजय किया और 450 वर्षों तक इस क्षेत्र पर शासन किया। उनके शासनकाल के दौरान गोवा में व्यापार, संस्कृति, धर्म और प्रशासन में कई बदलाव आए, जो आज भी देखे जा सकते हैं। ब्रिटिश राज के अंत के बाद, जब भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब भी गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल के अधीन रहे।

    पुर्तगाली का गोवा को मुक्त करने से इनकार (Portugal Refusal to Free Goa)

    भारत सरकार ने शुरू में गोवा को स्वतंत्र कराने के लिए शांतिपूर्ण और कूटनीतिक प्रयास किए। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाया, लेकिन पुर्तगाल ने गोवा को अपना अभिन्न अंग मानते हुए इसे छोड़ने से इनकार कर दिया।

    गोवा मुक्ति के लिए भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयास (Goa’s liberation & Indian government’s Diplomatic efforts)

    शांतिपूर्ण वार्ता का प्रारंभ (1947-1950) – 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू(Pandit Jawaharlal Nehru) और उनकी सरकार ने गोवा की मुक्ति के लिए शांतिपूर्ण वार्ता का रास्ता अपनाया। सरकार को विश्वास था कि जैसे अन्य यूरोपीय शक्तियों ने अपने उपनिवेश छोड़े, वैसे ही पुर्तगाल भी कूटनीतिक बातचीत के जरिए गोवा को भारत को सौंप देगा। 1947 में भारत सरकार ने पुर्तगाली सरकार को पहला औपचारिक पत्र भेजा, जिसमें गोवा, दमन और दीव को भारत को सौंपने की मांग की गई। हालांकि पुर्तगाल ने इस मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि गोवा पुर्तगाल का एक अभिन्न अंग है और वह इसे नहीं छोड़ेगा।

    संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रयास (1950-1955) – जब पुर्तगाल ने भारत की वार्ता की पहल को ठुकरा दिया, तो भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का निर्णय लिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में गोवा के मुद्दे को एक औपनिवेशिक शासन के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अलावा, भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के माध्यम से भी अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने का प्रयास किया। वहीं, अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत को पुर्तगाल के साथ बातचीत जारी रखने और सैन्य कार्रवाई से बचने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने पुर्तगाल पर अधिक दबाव नहीं बनाया।

    गोवा में सत्याग्रह और जन आंदोलन (1955) – जब कूटनीतिक प्रयास विफल होते नजर आए, तो भारत में गोवा की मुक्ति के लिए जन आंदोलन शुरू हो गया।1955 में, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सत्याग्रह आंदोलन चलाया, जिसमें हजारों भारतीय कार्यकर्ताओं ने गोवा में प्रवेश करने की कोशिश की। लेकिन पुर्तगाली सैनिकों ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोलीबारी कर दी, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई। यह घटना भारतीय जनमानस में गहरे आक्रोश का कारण बनी। इस घटना के बाद भारत ने पुर्तगाल के साथ अपने सभी राजनयिक संबंध समाप्त कर दिए।

    व्यापारिक और आर्थिक प्रतिबंध (1955-1961) – जब वार्ता और सत्याग्रह विफल हो गए, तो भारत ने पुर्तगाल पर आर्थिक और व्यापारिक दबाव बनाने का प्रयास किया। इसके तहत, भारत ने गोवा के साथ सभी व्यापारिक संबंध समाप्त कर दिए, जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने लगी। साथ ही, भारत ने संचार मार्गों पर प्रतिबंध लगाते हुए गोवा को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति रोक दी, जिससे वहाँ जरूरी सामान की भारी कमी हो गई। इसके अलावा, भारत ने विभिन्न देशों से आग्रह किया कि वे पुर्तगाल पर दबाव डालें ताकि वह गोवा को छोड़ दे।

    नेहरू सरकार की अंतिम चेतावनी (Last Warning Of Nehru)

    जब सभी कूटनीतिक प्रयास विफल हो गए और पुर्तगाल ने भारत की मांगों को नजरअंदाज कर दिया, तो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंतिम चेतावनी जारी की। दिसंबर 1961 में, भारत ने पुर्तगाली सरकार को अंतिम नोटिस भेजा, जिसमें स्पष्ट किया गया कि यदि पुर्तगाल शांतिपूर्ण तरीके से गोवा नहीं छोड़ता, तो भारत सैन्य कार्रवाई करने के लिए मजबूर होगा। हालांकि, पुर्तगाल ने इस चेतावनी को भी अनसुना कर दिया और गोवा में अपनी सैन्य उपस्थिति और अधिक मजबूत कर ली।

    ऑपरेशन विजय और सैन्य कार्रवाई(Operation Vijay and Military Action)

    जब सभी कूटनीतिक प्रयास असफल हो गए, तब भारत सरकार ने 17 दिसंबर 1961 को ‘ऑपरेशन विजय’ नामक सैन्य अभियान शुरू किया। 18 दिसंबर को भारतीय सेना गोवा में प्रवेश कर गई, और 19 दिसंबर 1961 को गोवा, दमन और दीव(Goa, Daman, and Diu)को पुर्तगाली शासन से मुक्त कर भारत में शामिल कर लिया गया।

    36 घंटों तक चला ऑपरेशन(The operation lasted for 36 hours)

    ‘ऑपरेशन विजय’ एक 36 घंटे का सैन्य अभियान था, जिसमें भारत ने थल, जल और वायु मार्ग से समन्वित हमला किया। भारतीय सेना ने गोवा पर उत्तर, पूर्व और दक्षिण से हमला किया, जबकि नौसेना ने मर्मुगाओ बंदरगाह को सुरक्षित किया और वायुसेना ने डाबोलिम एयरबेस पर बमबारी की।

    इस अभियान के परिणामस्वरूप, 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली गवर्नर जनरल ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे गोवा, दमन और दीव में 451 वर्षों से चला आ रहा पुर्तगाली शासन समाप्त हो गया। इसके बाद इन क्षेत्रों को एक संघ शासित प्रदेश घोषित किया गया, और मेजर जनरल के. पी. कंडेथ को सैन्य प्रशासक नियुक्त किया गया।

    ऑपरेशन विजय की रणनीति(Strategy of Operation Vijay)

    इस अभियान का नेतृत्व तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल पी.एन. थापर, नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी और वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल ए.एम. एंजेलो ने किया।

    भारतीय सेना ने तीनों सेनाओं – थलसेना, नौसेना और वायुसेना को इस अभियान में शामिल किया।

    थलसेना का अभियान – भारतीय सेना की दो डिवीजनों को गोवा में अलग-अलग दिशाओं से प्रवेश करने का निर्देश दिया गया।

    वायुसेना का योगदान – भारतीय वायुसेना ने रणनीतिक रूप से पुर्तगाली ठिकानों पर हमला किया और उनके संचार तंत्र को नष्ट कर दिया।

    नौसेना की भूमिका: भारतीय नौसेना ने पुर्तगाली युद्धपोतों को नष्ट कर दिया, जिससे उन्हें समुद्री रास्तों से कोई सहायता नहीं मिल पाई।

    गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा(Full state status to Goa)

    गोवा के भारतीय संघ में विलय के बाद, इसे दमन और दीव के साथ एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रखा गया। शुरुआत में, इस क्षेत्र का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में था, और मेजर जनरल के. पी. कंडेथ को सैन्य प्रशासक नियुक्त किया गया।

    इसके बाद, धीरे-धीरे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाया गया, और 1963 में गोवा में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। हालांकि, गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग लगातार बढ़ती रही। इस मांग को ध्यान में रखते हुए 30 मई 1987 को गोवा को भारतीय संघ का 25वां राज्य घोषित किया गया, जबकि दमन और दीव को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

    इस प्रकार, गोवा को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिलने के बाद, इसे अपनी स्वायत्त सरकार और विधानसभा प्राप्त हुई, जिससे यह पूर्ण रूप से भारतीय संघ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

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