Uttarakhand Ka Famous Golu Devta Temple: लीगल दस्तावेजों के लिए इस्तेमाल में होने वाले स्टाम्प पेपर से तो आप जरूर अच्छी तरह से वाकिफ होंगे, लेकिन क्या आपने कभी इस स्टैम्प पेपर का इस्तेमाल धार्मिक कर्म कांडों के लिए होते हुए देखा है। भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जो या तो रहस्य से भरपूर हैं या फिर अनोखी प्रथाओं के कारण मशहूर हैं। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड का एक मंदिर (Uttarakhand Ka Prasidha Mandir) जहां भक्त अपनी मुरादों की अर्जी पर बाकायदा स्टैंप लगाकर उसे भगवान के सामने रखते हैं। ये मंदिर न्याय करने के लिए भी चर्चित है। इस मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ और लगातार गुंजती घंटों की आवाज से ही गोल्ज्यू देवता की लोक प्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़े गूढ़ रहस्यों के बारे में-
उत्तराखंड का चर्चित मंदिर है ये (Shree Golu Devata Mandir Uttarakhand)
न्याय का मंदिर के तौर पर चर्चित इस मंदिर से जुड़े रहस्यों की बात करें तो ये मंदिर उत्तराखंड में अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर है। यहां गोल्ज्यू देवता का भव्य मंदिर है। मंदिर के अंदर सेफेद घोड़े में सिर पर सफेट पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु न्याय मांगने के लिए आते हैं। गोल्ज्यू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और यहां के लोग उनसे न्याय मांगने बाकायदा अर्जी के साथ आते हैं। जो भी व्यक्ति यहां न्याय की उम्मीद के साथ आता है और स्टैम्प पेपर पर लिखकर देवता के सम्मुख अर्पित करता है उसे न्याय जरूर मिलता है।
गोल्ज्यू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। इन्हें राजवंशी देवता के तौर पर जाना जाता है। गोल्ज्यू देवता को उत्तराखंड (Uttarakhand) में कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। हालांकि इन्हें भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में घंटी चढ़ाई जाती है।
देवता के सम्मुख पढ़ी जाती हैं अर्जियां
भक्त स्टैंप पेपर पर अपनी अर्जी को लिखकर मंदिर परिसर में टांग देते हैं। कई लोग तो डाक से भी अपनी अर्जी यहां भिजवाते हैं। मंदिर परिसर चारों ओर से लाखों की संख्या में अर्जियां और घंटियां नजर आती हैं। मंदिर में पंडित देवता को अर्पित की गईं अर्जियां को पढ़कर गोल्ज्यू देवता को सुनाते हैं।
अन्याय करने वाले व्यक्ति को मिलता है दंड
कहा तो यहां तक जाता है कि अन्याय करने वाले व्यक्ति को दंड भी मिलता है। पहले गलत करने वाले व्यक्ति को सुधरने का एक मौका मिलता है और अगर वह अपनी गलती को जानते बूझते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करता है तो फिर उसे गोल्ज्यू देवता के दंड का प्रकोप झेलना पड़ता है। दंड स्वरूप उस व्यक्ति का उसके जीवन से सबकुछ छिन जाता है। यही वजह है कि लोग जिनसे किसी भी तरह की गलती हो जाती है मंदिर में आकर देवता के सम्मुख क्षमा प्रार्थना करने जरूर आते हैं।
अदालत की तरह ही लगती है न्याय की अर्जी
गोल्ज्यू देवता की कहानी लोककथाओं में व्याप्त है और ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 10 वीं शताब्दी में हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि वह कत्यूरी राजा झालराई के पुत्र थे, जिन्होंने चंपावत पर शासन किया था। यहां लोग अदातल की तरह ही न्याय की अर्जी लगाते हैं। श्रद्धालु गोल्ज्यू देवता के आगे अपनी मन्नत या अपने साथ हुए अन्याय या फिर अपनी गलती को स्वीकार कर पर्ची को छोड़कर चले जाते हैं। इसके बाद कुछ समय के अंतराल में ही उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और अगर उनके साथ कुछ अन्याय हुआ हो तो वह भी ठीक हो जाता है।
इस मंदिर की खास बात यही है कि इस मंदिर में अन्य धर्मों के लोग भी न्याय की उम्मीद में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु मंदिर की घंटियों को जोर-जोर से बजाकर गोल्ज्यू देवता का आभार प्रकट करते हैं। माना जाता है कि भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद मंदिर में अपने क्षमता अनुसार जरूरतमंदों को दान दक्षिणा देने के साथ भंडारा भी करवाते हैं।
मंदिर से जुड़ी बेहद रोचक है ये कथा (Golu Devta Mandir Ki Katha)
गोल्ज्यू या गोलू देवता को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। जिनमें से एक कहानी जनश्रुतियों के अनुसार, कत्यूरी वंश के राजा झल राय की सात रानियां थीं। सातों रानियों में से किसी की भी संतान नहीं थी। राजा इस बात से काफी परेशान रहा करते थे। एक दिन वे जंगल में शिकार करने के लिए गए हुए थे। जहां उनकी मुलाकात रानी कलिंका से हुई। राजा झल राय, रानी को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होने उनसे शादी कर ली कुछ समय बाद रानी गर्भवती हो गईं।
यह देख सातों रानियों को ईर्ष्या होने लगी। सभी रानियों ने दाई मां के साथ मिलकर एक साजिश रची। जब रानी कलिंका ने बच्चे को जन्म दिया, तब उन्होंने बच्चे को हटा कर उसकी जगह एक सिल बट्टे का पत्थर बच्चे की जगह रख दिया। बच्चे को उन्होंने एक टोकरे में रख कर नदी में बहा दिया। वह बच्चा बहता हुआ मछुआरों के पास आ गया। उन्होंने उसका लालन पालनकर बड़ा किया जब बालक आठ साल का हुआ तो उसने उसने पिता से राजधानी चंपावत जाने की जिद की। पिता के यह पूछने पर की वो चंपावत कैसे जाएगा तो उस बालक ने कहा की आप मुझे एक घोड़ा लाकर दे दीजिए। पिता ने इसे बच्चे का एक मजाक समझकर उसे एक लकड़ी का घोड़ा लाकर दे दिया।
वो उसी लकड़ी के घोड़े को लेकर चंपावत आ गए। जहां एक तालाब में राजा की सात रानियां स्नान कर रही थी। बालक वहां अपने घोड़े को पानी पिलाने लगा। यह देख सारी रानियां उस पर हंसने लगीं और बोलीं- ’मूर्ख बालक लकड़ी का घोड़ा भी कभी पानी पीता है? तब उस बालक ने तुरंत जवाब दिया कि अगर रानी कलिंका एक पत्थर को जन्म दे सकती हैं तो क्या काठ का घोड़ा पानी नहीं पी सकता। यह सुन सारी रानियां स्तब्ध रह गईं। जल्द ही यह खबर पूरे राज्य में फैल गई। राजा को भी सारी सच्चाई पता चल गई। उन्होंने षड्यंत्र करने के लिए सातों रानियों को दंड दिया और नन्हें गोलू को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
कहा जाता है कि तब से ही कुमाऊं में उन्हें न्याय का देवता माना जाने लगा। धीरे-धीरे उनके न्याय की खबरें सब जगह फैलने लगी। उनके कुमाऊं में कई मंदिर स्थापित किए गए। उनके जाने के बाद भी, जब भी किसी के साथ कोई अन्याय होता तो वो एक चिट्ठी लिखकर उनके मंदिर में टांग देता और जल्द ही उन्हें न्याय मिल जाता। सिर्फ कुमाऊं में ही नहीं बल्कि, पूरे देश में उन्हें न्याय देवता के रूप में माना जाता है।’ गोल्ज्यू देवता को लेकर लोगों में काफी आस्था और विश्वास है कि कहीं से न्याय न मिले तो यहां जरूर आते हैं।
इस मंदिर के बारे में कई रोचक बातें और भी हैं। जैसे कि इस मंदिर में अनेकों घंटियां हैं जो इस बात को दर्शाती हैं कि भगवान तक आपकी बात पहुंच रही है। इसके अलावा, माना जाता है कि न्याय करने के लिए गोल्ज्यू देवता अपने दूतों को गलत करने वाले के पास भेजते हैं।