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    Home » History Of Kalinjar Fort: मुगल से लेकर मराठा तक सभी की थी इस किले का पर नजर, 700 फीट की इस ऊँचाई वाले इस किले का रहस्य
    Tourism

    History Of Kalinjar Fort: मुगल से लेकर मराठा तक सभी की थी इस किले का पर नजर, 700 फीट की इस ऊँचाई वाले इस किले का रहस्य

    By December 27, 2024No Comments8 Mins Read
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    Kalinjar Fort History Wiki in Hindi (Photo – Social Media)

    Kalinjar Kila Ka Itihas: भारत के उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित कालिंजर किला न केवल भारतीय इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि इसके रहस्य और अलौकिक कहानियां इसे और भी विशेष बनाती हैं। यह किला अपने अद्वितीय वास्तुकला, समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दंतकथाओं के लिए जाना जाता है। यह किला बुंदेलखंड के बांदा जिले में विंध्य पर्वतमाला की चट्टानों पर स्थित है और समुद्र तल से 700 फीट की ऊंचाई पर बना है। अपने अभेद्य किलेबंदी और अद्वितीय इतिहास के कारण इसे ‘अजेय किला’ के नाम से जाना जाता है।

    किले का नाम और स्थान

    कालिंजर का अर्थ है ‘कैलाश को जीतने वाला’। यह नाम भगवान शिव के कैलाश पर्वत से जुड़ा हुआ है। यह किला विंध्याचल पर्वत की तलहटी में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 700 फीट ऊंचाई पर बना है। इसके चारों ओर का परिदृश्य इसे रणनीतिक और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।

    बौद्ध साहित्य और भगवान बुद्ध से जुड़ा जिक्र

    कालिंजर दुर्ग का उल्लेख प्राचीन बौद्ध साहित्य में मिलता है। भगवान बुद्ध की यात्रा वृत्तांत में इस दुर्ग का जिक्र किया गया है। यह किला भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास का साक्षी रहा है।

    इसकी ऐतिहासिक महत्ता के कारण कई इतिहासकारों ने इस पर विशेष अध्ययन किया है।

    कालिंजर किले का इतिहास

    कालिंजर किला महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण राजा चेदि के शासनकाल में हुआ। यह स्थान भगवान शिव और शक्ति के उपासना स्थल के रूप में प्रसिद्ध था।

    इस किले को चंदेल राजाओं ने अभेद्य बनाया। राजा परमार और राजा कीर्तिवर्मन ने इसे शिव भक्ति और सैन्य सुरक्षा के केंद्र के रूप में विकसित किया।इस किले में भगवान नीलकंठ का मंदिर है, जो चंदेलों की शिव भक्ति का प्रमाण है।

    मध्यकाल

    मुगल और चंदेल शासनकाल:जब दिल्ली की सल्तनत पर मुगलों का शासन था, तब चंदेल राजाओं के काल में शेर शाह सूरी ने इस किले को जीतने का प्रयास किया।1545 में इस किले को जीतने के प्रयास में शेर शाह सूरी की मृत्यु हो गई।यह हुमायूं के लिए एक बड़ा मौका साबित हुआ। उन्होंने दिल्ली पर फिर से कब्जा जमाया और अगले 300 वर्षों तक मुगलों ने भारत पर शासन किया।1569 में मुगल सम्राट अकबर ने कालिंजर किले को जीतकर इसे अपने नवरत्न बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया।

    बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव की सहायता से मुगलों को बुंदेलखंड से बेदखल किया।अंग्रेजों के आने तक यह किला राजा छत्रसाल की रियासत का हिस्सा बना रहा।

    क्यों कहा जाता है ‘अजेय क़िला’

    किला विंध्य पर्वत की चट्टानों पर स्थित है, जिससे इसे तोड़ पाना लगभग असंभव था।चारों ओर गहरी खाइयों और मजबूत दीवारों से घिरा यह किला बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रहता था।इसकी ऊंचाई और घेराबंदी का डिज़ाइन इसे दुश्मनों के लिए दुर्गम बनाता था।

    पहाड़ी पर होने के कारण यहां से पूरे क्षेत्र पर नजर रखना संभव था।कई बड़े साम्राज्यों ने इसे जीतने की कोशिश की। लेकिन अधिकतर असफल रहे।इसे जीतने की कोशिश में कई योद्धा और सम्राट अपनी जान गंवा बैठे।

    कालिंजर पर शासकों की नजर क्यों थी

    कालिंजर किले पर किए गए शोध से पता चलता है कि यह एक ऐसा किला था, जिस पर कब्जा करना हर शासक का सपना था।महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, हुमायूं और शेर शाह सूरी जैसे शक्तिशाली शासकों ने इसे जीतने का भरसक प्रयास किया। लेकिन अधिकांश असफल रहे।पृथ्वीराज चौहान और पेशवा बाजीराव ने भी इस किले को जीतने के लिए हर संभव कोशिश की।इसे जीतना शौर्य और शक्ति का प्रतीक माना जाता था।यह किला घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच स्थित था, जिससे शत्रु सेना का यहां तक पहुंचना लगभग असंभव था।किले की मोटी दीवारें (5 मीटर मोटी और 108 फुट ऊंची) और इसकी ऊंचाई इसे अभेद्य बनाती थीं। यह पहाड़ी पर स्थित होने के कारण तोपों से भी इसे ध्वस्त करना मुश्किल था।

    बुंदेलखंड में पानी का रहस्य

    बुंदेलखंड हमेशा से पानी की कमी के लिए जाना जाता है।लेकिन यह किला जिस पहाड़ी पर स्थित था, वहां से लगातार पानी रिसता रहता था।यहां तक कि सालों के सूखे के बावजूद इस किले की पहाड़ी से पानी का रिसाव कभी बंद नहीं हुआ।इस रहस्यमय जलधारा ने इसे और भी अधिक कौतुहल का विषय बना दिया था।

    किले का रहस्य और डरावनी कहानियां

    1. शेरशाह सूरी की मृत्यु का रहस्य:शेरशाह सूरी इस किले को जीतने के लिए तोप से हमला कर रहा था। कहा जाता है कि तोप का गोला फटने से उसकी मौत हो गई। यह घटना एक अपशकुन मानी जाती है और किले को रहस्यमय बनाती है।

    2. नीलकंठ मंदिर:किले के अंदर स्थित नीलकंठ मंदिर एक बड़ा रहस्य है।इस मंदिर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति है।कहा जाता है कि शिव की मूर्ति से लगातार जल गिरता रहता है । कहा जाता है कि इस स्थान पर कई तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते थे, जिनसे यह स्थान अलौकिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है।

    3. खजाना:कैलिंजर किला भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे धनी किलों में से एक माना जाता था।कहा जाता है कि इस किले में आज भी खजाना छिपा हुआ है।कई बार खजाने की खोज की गई, लेकिन यह कभी नहीं मिला।

    4. आत्माओं की कहानियां-स्थानीय लोगों के अनुसार, किले में उन योद्धाओं और शासकों की आत्माएं घूमती हैं, जिन्होंने यहां लड़ते हुए जान गंवाई।रात के समय किले में अजीब आवाजें और परछाइयों को देखने की बात कही जाती है।कुछ लोगों का मानना है कि यह किला शापित है।

    किले की विशेषताएं

    1.किला लगभग 2.5 वर्ग मील के क्षेत्र में फैला हुआ है।इसमें सात द्वार हैं, जिनमें अलमर्दन गेट, गणेश द्वार, बुढ़भद्रा द्वार और हनुमान द्वार प्रमुख हैं।

    2.किले में कई कुंड और तालाब हैं, जो इसे जल प्रबंधन की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाते थे।यह किला हर मौसम में जल संकट से बचा रहता था।

    3. नीलकंठ मंदिर:मंदिर की छत पर सुंदर नक्काशी और चट्टानों को काटकर बनाए गए शिलालेख इसकी अद्वितीयता को दर्शाते हैं।

    4. किले में कई गुप्त सुरंगें थीं, जो युद्ध के समय सैनिकों के लिए बचाव का मार्ग प्रदान करती थीं।

    कैलिंजर किला केवल एक ऐतिहासिक संरचना नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास का वह अध्याय है, जो वीरता, रहस्य और धार्मिकता का प्रतीक है। इसकी अजेयता, शेरशाह सूरी की मृत्यु, नीलकंठ मंदिर और रहस्यमय कहानियां इसे भारत के सबसे दिलचस्प और डरावने किलों में से एक बनाती हैं। इस किले का अध्ययन करना न केवल हमें हमारे अतीत से जोड़ता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि किस तरह हमारे पूर्वजों ने वास्तुकला, रणनीति और धर्म को आपस में जोड़ा था।

    चीनी यात्री ह्वेन त्सांग का वर्णन

    7वीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने संस्मरण में कालिंजर दुर्ग का उल्लेख किया है। उन्होंने इस किले की महत्ता और इसकी ऐतिहासिकता पर विस्तार से लिखा है।

    वास्तुकला और स्थापत्य शैली

    कालिंजर दुर्ग विभिन्न स्थापत्य शैलियों का उत्कृष्ट नमूना है।यहां गुप्त स्थापत्य शैली, चंदेल शैली, प्रतिहार शैली और पंचायतन नागर शैली के प्रमाण देखने को मिलते हैं।दुर्ग में प्रवेश के लिए सात मुख्य द्वार हैं।इसमें कई मंदिर स्थित हैं, जिनमें भगवान शिव का नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख है।

    वर्तमान स्थिति: संरक्षण और सरकार की भूमिका

    वर्तमान में कैलिंजर किला अपने इतिहास और वास्तुकला के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। किले का अधिकांश हिस्सा समय के साथ क्षतिग्रस्त हो चुका है।गुप्त सुरंगें और मंदिर की नक्काशी अब भी संरक्षित हैं। लेकिन उनके संरक्षण की आवश्यकता है।कुछ हिस्सों में दीवारें गिर गई हैं और कई ऐतिहासिक स्थल बर्बादी के कगार पर हैं।

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस किले के संरक्षण और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने पर काम कर रहा है।किले की मरम्मत और इसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं।नीलकंठ मंदिर के आसपास स्वच्छता और पर्यटकों की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं।

    सरकार ने कैलिंजर किले को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।

    यहां हर साल कैलिंजर महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें कला, संस्कृति और इतिहास को प्रदर्शित किया जाता है। किले के रास्तों और जानकारी केंद्रों को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।

    कालिंजर दुर्ग न केवल भारतीय इतिहास का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलावों का साक्षी भी रहा है। इसके अद्वितीय स्थापत्य, जलधारा के रहस्यों, और कई ऐतिहासिक घटनाओं के कारण यह आज भी शोधकर्ताओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। कालिंजर दुर्ग भारत की गौरवशाली धरोहरों में से एक है, जिसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।

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