
History of Kaushambi
History Of Kaushambi: उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले का इतिहास बहुत पुराना है यह प्राचीन वत्स देश की राजधानी थी कौशाम्बी का उल्लेख रामायण व महाभारत में भी मिलता है और इस स्थान का उल्लेख हरिवंश पुराण में भी प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश का कौशांबी एक ऐसा जिला हैं जिसको लोग द्वाबा के नाम से भी जानते हैं जो दो नदियों के बीच में बसा शहर है जहां एक तरफ गंगा नदी की धारा बहती वहीं दूसरी तरफ यमुना नदी की धारा बहती हुई प्रयागराज की ओर बढ़ती है |

कौशांबी के चारों तरफ अलग-अलग जिलों की पहचान भी है जिनके बारे में आप सब जानते हैं आइये बताते हैं किस दिशा की तरफ कौन से जिले पड़ते हैं बात करे पश्चिम की तरफ तो फतेहपुर जिला का सीमा है पूरब की तरफ प्रयागराज की सीमा ,दक्षिण की तरफ चित्रकूट की सीमा ,उत्तर की तरफ प्रतापगढ़ की सीमा है अगर हम बात करें तो 4 अप्रैल 1997 को इलाहाबाद जिले से बना था लेकिन इसका इतिहास क्या है इसके पहले का वो भी हम बताएंगे |

क्योंकि कौशांबी पहले प्रयागराज जिले में आता था इससे पहले प्रयागराज के नाम से जानते थे। इस जिले में तीन तहसील हैं जो मंझनपुर, सिराथू, चायल के नाम से जाने जाते हैं इस जिले का मुख्यालय मंझनपुर तहसील में बसा है और इस जिले में आठ ब्लॉक और 14 थाने आते हैं ।
आइये जानते है कौशांबी का इतिहास –
जिले का इतिहास रामायण कालीन है। यह जगह महाभारत के 16वें क्षेत्रों में से एक है जो वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी। यमुना के किनारे इसकी स्थापना चेदी राजकुमार कुश या कुशंबा ने की थी। इसलिए कालांतर में इसका नाम कौशांबी हुआ।
रामायण में इसका इतिहास कुछ ऐसे है –
जबकि रामायण में इस नगरी को कुश के पुत्र कुशम्ब ने स्थापित बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि कौशाम्बी का चरवा गांव भगवान श्रीराम के वन गमन से जुड़ा हुआ है। भगवान श्रीराम के नाम पर है यहां तलाब लोगों का ऐसा मानना है कि श्रृंगवेरघाट से गंगा पार उतरने के बाद भगवान श्रीराम ने वन में अपनी पहली रात यहीं गुजारी थी। चरवा मंदिर के नजदीक एक बड़ा सा तलाब है। इसे आज भी लोग रामजूठा तालाब के नाम से जानते हैं।

इसका नाम कुछ इस वजह से पड़ा है, वन गमन के समय भगवान श्रीराम यहां सुबह उठकर स्नान किए थे, इसलिए इस तालाब को रामजूठा कहते हैं। इसके अनेक साहित्यिक प्रमाण मिलते है। शतपथ और गौपथ ब्राह्मणों में इसका उल्लेख अप्रत्यक्ष रूप से किया गया है। इन दोनों ग्रंथों से पता चलता है कि उद्दालक आरूणि का एक शिष्य कौशाम्बेय अर्थात कौशाम्बी का रहने वाला भी कहलाता था।
महाभारत में इसका इतिहास कुछ ऐसे है –
महाभारत के अनुसार कौशांबी की स्थापना चेदिराज के पुत्र उपरिचर वसु ने की थी। पुराणों के अनुसार युधिष्ठर से सातवीं पीढ़ी के राजा परीक्षित के वंशज निचक्षु जब हस्तिनापुर के नरेश थे। तब राजधानी हस्तिनापुर गंगा में बह गई थीं। उसके बाद वे वत्स देश की कौशांबी नगरी में आकर बस गए।

इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य पर था। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है जिसमें कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।
कौशांबी को भारत में भगवान बुद्ध के इतिहास से कैसे जानते हैं –
कौशांबी को भारत में भगवान बुद्ध के जीवनकाल के छह समृद्ध शहरों में से एक माना जाता है। यह स्थल देश के चारों कोनों से व्यापार और वाणिज्य के केंद्र होने से खास था। शहर में खुदाई के दौरान कई पुराने सिक्के, प्रतिमाएं, स्तूप आदि निकले हैं। जो यहां के गौरवशाली इतिहास की दास्ता बयां करते हैं। यहां पर अशोक स्तंभ, एक जैन मंदिर, एक पत्थर का किला और घोषिताराम मठ है। इस जगह भगवान बुद्ध बोध ज्ञान प्राप्त होने के छठवें और नौवें साल में उपदेश देने आए थे।
घोषिताराम विहार –
बौद्ध धर्म ग्रंथों में घोषिताराम विहार का उल्लेख मिलता है। इस मठ का निर्माण भगवान बुद्ध के जीवनकाल के दौरान करवाया गया था। इसे एक व्यापारी घोषितराम ने करवाया था। वह भगवान बुद्ध का भक्त था और उसने बुद्ध और उनके शिष्यों के यात्रा के दौरान ठहरने को ध्यान में रखकर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध इस क्षेत्र में अक्सर अपने शिष्यों के साथ यहां उपदेश देने के लिए आते थे। इस स्थल पर की गई खुदाई से मिले भग्नावेषों को इलाहबाद संग्रहालय में रखा गया है।

बौद्ध ग्रंथ आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी थी। कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इनकी रानी मृगावती विदेह की राजकुमारी थी। मौर्य काल में पाटलिपुत्र का गौरव अधिक बढ़ने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी अशोक ने यहां प्रस्तर स्तंभ पर अपनी धर्मलिपियां संवत एक से छह तक उत्कीर्ण करवाई। इसी स्तंभ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दंड का प्रावधान किया गया है। इसी स्तंभ पर अशोक की रानी और तीवर की माता कारुवाकी का भी एक लेख है।
इस के बारे में कुछ खास बातें जो एक लाइन में आपको बताते हैं –
- कौशाम्बी को पहले कोसम के नाम से जाना जाता था ।
- कौशाम्बी जिले में कौशांबी के नाम का गाँव यमुना नदी के बाएं किनारे पर बसा हुआ है ।
- कौशाम्बी से इलाहाबाद की दूरी 55 किलोमीटर है ।
- कौशाम्बी के खंडहरों से हज़ारों प्राचीन मूर्तियां और सिक्के मिले हैं ।
- कौशाम्बी में जैन मंदिरों की भी काफ़ी संख्या है ।
- कौशाम्बी में अशोक ने एक प्रस्तरस्तंभ बनवाया था ।
- कौशाम्बी में गौतम बुद्ध ने अपने साधु जीवन के कुछ साल बिताए थे ।
- कौशाम्बी में संस्कृत व्याकरण के प्रसिद्ध आचार्य कात्यायन ऋषि का जन्म हुआ था ।
- कौशाम्बी में छठे तीर्थकर पद्म प्रभु का जन्म हुआ था ।