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    Home » Hoysaleswara Temple History: होयसलेश्वर मंदिर, भारतीय स्थापत्य कला का अनमोल रत्न
    Tourism

    Hoysaleswara Temple History: होयसलेश्वर मंदिर, भारतीय स्थापत्य कला का अनमोल रत्न

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 1, 2025No Comments8 Mins Read
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    Hoysaleswara Mandir Ka Itihas

    Hoysaleswara Mandir Ka Itihas

    Hoysaleswara Mandir Ka Itihas: होयसलेश्वर मंदिर, जिसे हलेबिडु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक के हासन जिले में स्थित एक ऐसा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक खजाना है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला की उत्कृष्टता का प्रतीक है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी में होयसल वंश के शासनकाल में बनाया गया था और भगवान शिव को समर्पित है। इसकी जटिल नक्काशी, तारे के आकार का आधार और अनूठी वास्तुकला इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिलाती है।

    होयसल वंश का परिचय

    होयसल वंश ने 11वीं से 14वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में शासन किया। इस वंश की स्थापना साल नामक एक व्यक्ति ने की थी, जिसके नाम पर ही इस वंश का नाम पड़ा। एक रोचक कथा के अनुसार, साल अपने गुरु के साथ जंगल से गुजर रहा था, जब एक शेर ने उन पर हमला किया। गुरु ने कन्नड़ में “होय साल” (अर्थात् “मार साल”) कहा और साल ने अपनी छड़ी से शेर को मार गिराया। इस घटना से इस वंश का नाम “होयसल” पड़ा।

    होयसल राजवंश के सबसे प्रमुख शासक थे राजा विष्णुवर्धन, जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया। उनके शासनकाल में होयसल साम्राज्य अपनी शक्ति और समृद्धि के चरम पर था। होयसलों ने न केवल युद्ध और शासन में अपनी पहचान बनाई, बल्कि कला, संस्कृति और वास्तुकला में भी अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके द्वारा निर्मित मंदिर, विशेष रूप से बेलूर, हलेबिडु और सोमनाथपुर के मंदिर, विश्व भर में अपनी अनूठी शैली के लिए प्रसिद्ध हैं।

    होयसलेश्वर मंदिर का इतिहास

    होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण 1121 ईस्वी में शुरू हुआ और इसे 1160 ईस्वी तक पूरा किया गया। यह मंदिर हलेबिडु में, जो उस समय होयसल वंश की राजधानी दोरासमुद्र के नाम से जानी जाती थी, बनाया गया। यह मंदिर राजा विष्णुवर्धन और उनकी रानी शांतला देवी के संरक्षण में बनवाया गया था।

    यह दो मंदिरों वाला परिसर है, जिसमें दो गर्भगृह हैं, दोनों भगवान शिव को समर्पित। मंदिर का निर्माण दोरासमुद्र के धनी व्यापारियों और नागरिकों द्वारा प्रायोजित था, जो उस समय की समृद्ध अर्थव्यवस्था का प्रतीक है।

    14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की सेनाओं, विशेष रूप से मलिक काफूर के नेतृत्व में, ने हलेबिडु पर हमला किया, जिसके कारण मंदिर और शहर खंडहर में तब्दील हो गए।

    इसके बावजूद, मंदिर की नक्काशी और संरचना आज भी अपनी भव्यता को दर्शाती है। 2023 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया, जिसने इसकी वैश्विक पहचान को और बढ़ाया।

    मंदिर की वास्तुकला

    होयसलेश्वर मंदिर वेसर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रण है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

    तारे के आकार का आधार: मंदिर का आधार तारकीय योजना (Stellate Plan) पर बनाया गया है, जिसमें मंदिर का शीर्ष दृश्य तारे जैसा दिखता है। यह डिज़ाइन होयसल मंदिरों की विशिष्ट पहचान है।

    सोपस्टोन का उपयोग: मंदिर का निर्माण क्लोराइटिक शिस्ट (सोपस्टोन) से किया गया है, जो एक नरम पत्थर है। इसकी कोमलता के कारण शिल्पकारों ने जटिल और बारीक नक्काशी की, जो आज भी आश्चर्यजनक है।

    जटिल नक्काशी: मंदिर की बाहरी दीवारों पर 240 से अधिक मूर्तियां हैं, जो रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और शिव पुराण के दृश्यों को दर्शाती हैं। इनमें देवी-देवता, पौराणिक प्राणी, नर्तकियां और युद्ध के दृश्य शामिल हैं।

    दो मंदिरों वाला परिसर: मंदिर में दो गर्भगृह हैं, एक होयसलेश्वर और दूसरा शांतलेश्वर के नाम से जाना जाता है, जो रानी शांतला देवी को समर्पित है। दोनों में शिवलिंग स्थापित हैं।

    स्तंभों की शिल्पकला: मंदिर के आंतरिक हॉल में 46 से अधिक स्तंभ हैं, जिनमें से प्रत्येक पर अनूठी नक्काशी है। ये स्तंभ इतने सटीक और गोल हैं कि स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इन्हें बनाने में मशीनों का उपयोग हुआ होगा, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

    नंदी की प्रतिमा: मंदिर परिसर में भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल प्रतिमा है, जो अपनी बारीक नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

    मंदिर की दीवारों पर नक्काशी इतनी सूक्ष्म है कि यह आधुनिक तकनीक के बिना असंभव-सी प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए, देवताओं के आभूषण, पशु-पक्षी और पौराणिक दृश्य इतने जीवंत हैं कि वे देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

    मंदिर का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

    होयसलेश्वर मंदिर केवल एक स्थापत्य कृति ही नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र भी है। इसके कुछ प्रमुख पहलू हैं:

    शैव और वैष्णव परंपराओं का समन्वय: हालांकि मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है, इसमें वैष्णव और शाक्त परंपराओं के तत्व भी शामिल हैं। मूर्तियों में विष्णु, गणेश और पार्वती के दृश्य भी देखे जा सकते हैं।

    हिंदू धर्म का पुनर्जनन: उस समय कर्नाटक में जैन धर्म का प्रभाव था, लेकिन होयसल मंदिरों के निर्माण ने हिंदू धर्म को पुनर्जनन में मदद की।

    कला का केंद्र: मंदिर की नक्काशी और मूर्तियां उस समय के शिल्पकारों की कुशलता को दर्शाती हैं। यह मंदिर कला और संस्कृति के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

    पर्यटन स्थल: आज यह मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इसकी वास्तुकला और इतिहास को देखने आते हैं।

    मंदिर की विशेषताएं और रोचक तथ्य

    होयसलेश्वर मंदिर की कुछ अनूठी विशेषताएं और रोचक तथ्य इसे और भी आकर्षक बनाते हैं:

    इंटरलॉकिंग तकनीक: मंदिर का निर्माण इंटरलॉकिंग तकनीक से किया गया है, जिसमें पत्थरों को बिना किसी गोंद या सीमेंट के जोड़ा गया है। यह तकनीक मंदिर की स्थिरता को और बढ़ाती है।

    240 मूर्तियों का संग्रह: मंदिर की बाहरी दीवारों पर 240 से अधिक मूर्तियां हैं, जिनमें प्रत्येक का डिज़ाइन अनूठा है। इनमें नृत्य करती अप्सराएं, युद्ध के दृश्य और पौराणिक कथाएं शामिल हैं।

    नंदी की विशाल प्रतिमा: मंदिर परिसर में नंदी की प्रतिमा इतनी बारीक है कि इसके आभूषण और शारीरिक बनावट को देखकर शिल्पकारों की कारीगरी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

    खंडहर और पुनर्जनन: मलिक काफूर के हमले के बाद मंदिर खंडहर में बदल गया था, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे संरक्षित किया। आज यह एक संरक्षित स्मारक है।

    यूनेस्को विश्व धरोहर: 2023 में बेलूर, हलेबिडु और सोमनाथपुर के होयसल मंदिरों को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला, जो इसकी वैश्विक महत्ता को दर्शाता है।

    मंदिर का निर्माण और शिल्पकला

    होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण सोपस्टोन से किया गया, जो उस समय शिल्पकारों के लिए एक वरदान था। इस पत्थर की नरम प्रकृति ने शिल्पकारों को जटिल डिज़ाइन बनाने की स्वतंत्रता दी। मंदिर की दीवारों पर नक्काशी में निम्नलिखित तत्व प्रमुख हैं:

    पौराणिक दृश्य: रामायण और महाभारत के दृश्य, जैसे राम-रावण युद्ध, कृष्ण की लीलाएं और शिव-पार्वती के विवाह के चित्रण।

    प्रकृति का चित्रण: पशु-पक्षी, जैसे हाथी, घोड़े और मोर, जिन्हें जीवंत रूप में उकेरा गया है।

    नृत्य और संगीत: नर्तकियों और वादकों की मूर्तियां, जो उस समय की कला और संस्कृति को दर्शाती हैं।

    देवी-देवता: शिव, पार्वती, गणेश और विष्णु की मूर्तियां, जो धार्मिक एकता का प्रतीक हैं।

    मंदिर के स्तंभों की गोलाई और नक्काशी इतनी सटीक है कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह सब हस्तनिर्मित है।

    कुछ स्थानीय कथाओं में कहा जाता है कि शिल्पकारों ने किसी अज्ञात तकनीक का उपयोग किया होगा, लेकिन यह केवल अनुमान है।

    मंदिर का पर्यटन और संरक्षण

    होयसलेश्वर मंदिर आज कर्नाटक के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह हासन शहर से 30 किलोमीटर और बेंगलुरु से 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पर्यटक यहाँ निम्नलिखित कारणों से आते हैं:

    वास्तुकला का अध्ययन:

    वास्तुकला के छात्र और इतिहासकार मंदिर की डिज़ाइन और नक्काशी का अध्ययन करने आते हैं।

    धार्मिक महत्व: भगवान शिव के भक्त यहाँ पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

    फोटोग्राफी: मंदिर की नक्काशी और प्राकृतिक सौंदर्य फोटोग्राफरों को आकर्षित करते हैं।

    सांस्कृतिक अनुभव: मंदिर परिसर में समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) मंदिर के संरक्षण और रखरखाव का कार्य करता है। इसके प्रयासों से मंदिर की मूल संरचना और नक्काशी को संरक्षित रखा गया है।

    रोचक कहानियां और स्थानीय मान्यताएं

    होयसलेश्वर मंदिर से जुड़ी कई रोचक कहानियां और मान्यताएं हैं:

    शेर और साल की कथा: जैसा कि पहले बताया गया, होयसल वंश का नाम साल के शेर को मारने की घटना से पड़ा। यह कथा मंदिर की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।

    मशीनों का रहस्य: मंदिर की नक्काशी इतनी बारीक है कि कुछ लोग मानते हैं कि इसमें मशीनों का उपयोग हुआ होगा। हालांकि, इतिहासकार इसे शिल्पकारों की कुशलता का परिणाम मानते हैं।

    शांतला देवी की नृत्य कला: रानी शांतला देवी एक कुशल नर्तकी थीं और मंदिर में नर्तकियों की मूर्तियां उनकी कला को श्रद्धांजलि देती हैं।

    होयसलेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय कला, संस्कृति और वास्तुकला का एक जीवंत दस्तावेज है। इसकी तारे के आकार की संरचना, जटिल नक्काशी और ऐतिहासिक महत्व इसे विश्व भर में प्रसिद्ध बनाते हैं। यह मंदिर होयसल वंश की समृद्धि और शिल्पकारों की अद्भुत कारीगरी का प्रतीक है। चाहे आप इतिहास के प्रेमी हों, कला के पारखी हों, या धार्मिक यात्री, यह मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। अगर आप कर्नाटक की यात्रा पर हैं, तो होयसलेश्वर मंदिर को अपनी सूची में जरूर शामिल करें। यहाँ का अनुभव आपको भारतीय संस्कृति की गहराई में ले जाएगा।

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