
देशभर में इन दिनों “आई लव मोहम्मद” से लेकर “आई लव महादेव” तक के पोस्टर चर्चा का विषय बने हुए हैं। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक यह पोस्टर वॉर गरमाया हुआ है, जिससे पूरे देश में हलचल मच गई है। इस पोस्टर वॉर के बीच कई नेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं, लेकिन इस मुद्दे ने सड़कों पर हिंसा की भी चिंगारी पैदा कर दी। खासकर, मौलाना तौकीर रजा की गिरफ्तारी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा, “लातों के भूत बातों से नहीं मानते, लेकिन यह ट्रेंड जो चल रहा है, वह समाज को तोड़ने वाला है।” मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इस मुद्दे के कारण समाज में एक-दूसरे के खिलाफ तनाव बढ़ गया है और यह स्थिति चिंताजनक है।
लेकिन इस पोस्टर विवाद के बीच एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख मुस्लिम नेता इस विवाद से दूरी बनाए हुए हैं और चुप्पी साधे हुए हैं। तो आइए जानते हैं वे कौन से मुस्लिम नेता हैं जो इस मामले में चुप हैं:
1. मौलाना मोहीबुल्लाह नदवी:
रामपुर लोकसभा सीट से सांसद मौलाना मोहीबुल्लाह नदवी को उत्तर प्रदेश के मुस्लिम समुदाय में एक प्रभावशाली नेता माना जाता है। रामपुर में मुस्लिमों की भारी संख्या है, फिर भी मौलाना मोहीबुल्लाह ने “आई लव मोहम्मद” पोस्टर के समर्थन में कोई बयान नहीं दिया। इससे यह सवाल उठता है कि मौलाना मोहीबुल्लाह नदवी इस विवाद से क्यों दूर हैं। क्या वह इस मुद्दे पर चुप्पी साधने की रणनीति अपना रहे हैं या कुछ और कारण है?
2. अफज़ल अंसारी:
अफज़ल अंसारी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं। उनके भाई सिबगातुल्लाह अंसारी भी लंबे समय तक संसद सदस्य रहे हैं। अफज़ल अंसारी ने भी “आई लव मोहम्मद” विवाद पर कोई बयान नहीं दिया है। उनकी चुप्पी इस वजह से चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि जब राजनीति की बात आती है तो अफज़ल अंसारी का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इस मुद्दे पर उनके मौन रहने के पीछे कोई राजनीतिक रणनीति हो सकती है, लेकिन इस चुप्पी को लेकर उनकी भूमिका पर सवाल जरूर उठते हैं।
3. दानिश आज़ाद अंसारी:
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य दानिश आज़ाद अंसारी को योगी आदित्यनाथ सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री का पद प्राप्त है। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री माना जाता है, लेकिन इस विवाद पर भी उन्होंने अब तक कोई बयान नहीं दिया है। “आई लव मोहम्मद” पर उनकी चुप्पी को लेकर राजनीति में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। दानिश आज़ाद अंसारी के चुप रहने से यह सवाल उठता है कि वह इस मुद्दे से क्यों दूर हैं, जबकि वह एक सक्रिय मंत्री हैं और मुस्लिम समाज से जुड़ी कई जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं।
इन प्रमुख मुस्लिम नेताओं की चुप्पी इस पोस्टर वार के बीच एक अहम सवाल खड़ा करती है। क्या यह चुप्पी किसी राजनीतिक मजबूरी का हिस्सा है या इन नेताओं ने जानबूझकर इस विवाद से दूर रहने का निर्णय लिया है? यह मुद्दा जितना जटिल हो रहा है, उतना ही महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि यह न केवल समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द को प्रभावित कर रहा है, बल्कि राजनीति में भी नई दिशा दिखा रहा है। अब यह देखना बाकी है कि ये नेता आखिरकार इस मुद्दे पर कब और क्या प्रतिक्रिया देते हैं।