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    Home » India’s First Green Village: इस गांव में पेड़ काटना पाप है, जानिए भारत के सबसे ईमानदार और हरित गाँव ‘खोनोमा’ की प्रेरक कहानी
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    India’s First Green Village: इस गांव में पेड़ काटना पाप है, जानिए भारत के सबसे ईमानदार और हरित गाँव ‘खोनोमा’ की प्रेरक कहानी

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 23, 2025No Comments9 Mins Read
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    India’s First Green Village (Photo – Social Media)

    India’s First Green Village (Photo – Social Media)

    India’s First Green Village History: भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है, जहां हर राज्य, हर गाँव अपनी संस्कृति, परंपरा और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक अलग पहचान रखता है। ऐसे ही एक अद्भुत और प्रेरणादायक गाँव का नाम है “खोनोमा” (Khonoma), जिसे “भारत का पहला हरित गाँव” (India’s First Green Village) कहा जाता है। यह गाँव सिर्फ अपने प्राकृतिक सौंदर्य या सांस्कृतिक विरासत के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए अपने प्रयासों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस गाँव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां एक भी पेड़ नहीं काटा जाता, और यही इसे बाकी दुनिया से अलग बनाता है।इस लेख में हम भारत के पहले हरित गाँव खोनोमा का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

    खोनोमा कहाँ स्थित है?( Where is Khonoma located?)

    खोनोमा गाँव भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड के कोहिमा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गाँव है। यह गाँव राज्य की राजधानी कोहिमा से लगभग 20 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है और नागा जनजातियों का प्रमुख निवास स्थान है, जहाँ विशेष रूप से अंगामी नागा समुदाय बसा हुआ है। खोनोमा पहाड़ियों और हरियाली से घिरा हुआ है, और यहाँ की भौगोलिक स्थिति पहाड़ी क्षेत्र में है, जहाँ की ज़मीन हल्की ढलानों से लेकर खड़ी और दुर्गम पहाड़ी ढलानों तक फैली हुई है। यह गाँव समुद्र तल से लगभग 1621 मीटर (5320 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है, और यहाँ की हरियाली, धान के खेत और घने जंगल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

    खोनोमा की अद्वितीय भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक धरोहर इसे नागालैंड और सम्पूर्ण भारत में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के प्रति सजग हैं, जो इसे एक प्रेरणादायक गाँव बनाता है।

    खोनोमा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य(Historical perspective of Khonoma)

    खोनोमा गांव, 19वीं सदी में ब्रिटिश सेना के खिलाफ नागा प्रतिरोध का एक प्रमुख केंद्र था। 1830 से 1880 तक, अंगामी नागाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ कई भीषण युद्ध लड़े। इनमें से 1879-1880 का ‘बैटल ऑफ खोनोमा’ नागा प्रतिरोध का अंतिम संगठित प्रयास माना जाता है, जिसमें खोनोमा के ग्रामीणों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया। चार महीने तक चले इस संघर्ष के बाद 1880 में शांति संधि पर हस्ताक्षर हुए। आज भी इस गांव में उस युद्ध की यादों को संजोए हुए युद्ध स्मृति चिन्ह और खोनोमा वॉर मेमोरियल देखे जा सकते हैं।

    खोनोमा का सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य(Cultural perspective of Khonoma)

    सांस्कृतिक दृष्टि से, खोनोमा अपनी समृद्ध नागा संस्कृति, पारंपरिक रीति-रिवाजों, पहनावे और त्योहारों के लिए मशहूर है। यहां के लोग अपनी भूमि, जंगलों और प्रकृति से गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं, जो उनके जीवन के हर पहलु में परिलक्षित होता है। इस गांव को ‘वारियर विलेज’ के नाम से भी जाना जाता है, और यह एशिया का पहला ‘ग्रीन विलेज’ भी है, जहां पर्यावरण संरक्षण को समुदाय की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना लिया गया है।

    ‘हरित गाँव’ की यात्रा की शुरुआत(Khonoma’s Green Journey)

    1990 के दशक में खोनोमा में अवैध शिकार और पेड़ कटाई एक गंभीर समस्या बन गई थी, खासकर ब्लाइथ्स त्रागोपन (Blyth’s Tragopan) पक्षी का शिकार बहुत बढ़ गया था। यह पक्षी नागालैंड का राज्य पक्षी होने के साथ-साथ एक विलुप्तप्राय प्रजाति भी है। 1993 में आयोजित एक शिकार प्रतियोगिता में 300 से अधिक ब्लाइथ्स त्रागोपन मारे गए, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील गांववासियों के लिए एक बड़ा झटका था। इस घटना के बाद, गांव के लोगों ने मिलकर शिकार और पेड़ कटाई पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। जिसके बाद 1998 में “खोनोमा नेचर कंजर्वेशन एंड त्रागोपन सैंक्चुरी” (KNCTS) की स्थापना की गई, और लगभग 20 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शिकार निषेध क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया।

    पर्यावरण संरक्षण की अनूठी पहल (Initiative for environmental conservation)

    खोनोमा के लोगों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए, जिनमें प्रमुख हैं:

    शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध: गाँव में अब किसी भी प्रकार के जानवर का शिकार प्रतिबंधित है। जो भी इस नियम का उल्लंघन करता है, उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता है।

    पेड़ कटाई पर रोक – खोनोमा में अब कोई भी पेड़ बिना ग्राम परिषद की अनुमति के नहीं काटा जा सकता। इसकी वजह से यहाँ की जैव विविधता और हरियाली सुरक्षित बनी हुई है।

    सामुदायिक वन प्रबंधन – गाँव के जंगल सामुदायिक संपत्ति माने जाते हैं, और इनकी देखरेख सामूहिक रूप से होती है। हर परिवार को जंगल की देखरेख में हिस्सेदारी दी जाती है।

    जैविक खेती – यहाँ के लोग रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते। वे पारंपरिक तरीके से जैविक खेती करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जलवायु का संतुलन बना रहता है।

    स्थायी पर्यटन को बढ़ावा – खोनोमा ने पर्यावरणीय पर्यटन को अपनाया है, जहां पर्यटकों को गाँव के जीवन, संस्कृति और प्रकृति से परिचित कराया जाता है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है और पर्यावरण की जागरूकता भी फैलती है।

    ईमानदारी और विश्वास की मिसाल (Example of honesty and trust Khonoma)

    खोनोमा गाँव न केवल अपनी हरित पहल और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह अपनी ईमानदारी और विश्वास के लिए भी विशेष पहचान रखता है।यहाँ के लोग अपनी ईमानदारी और विश्वास के लिए भी खास पहचान रखते हैं, जहां दुकानें बिना दुकानदारों के खुली रहती हैं और चोरी की कोई घटना नहीं होती।

    खोनोमा में पर्यावरणीय संरक्षण के लिए शिकार और वनों की अंधाधुंध कटाई पर कड़ा प्रतिबंध है। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था और सामूहिक जिम्मेदारी के कारण लोग एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं, और इसका परिणाम यह है कि चोरी जैसी घटनाएँ यहाँ कभी नहीं होतीं।

    खोनोमा की वास्तुकला और जीवनशैली(Lifestyle Of Khonoma)

    खोनोमा की सुंदरता उसकी वास्तुकला में भी दिखाई देती है। यहाँ के घर पारंपरिक शैली में लकड़ी और पत्थरों से बनाए जाते हैं, जिनकी छतें टिन या बांस की होती हैं। गाँव की गलियाँ साफ-सुथरी हैं और हर जगह हरियाली दिखाई देती है।

    यहाँ के लोग सरल, लेकिन आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं। खेती, मछली पालन, और हस्तशिल्प उनके जीवन के मुख्य स्रोत हैं। त्योहारों में संगीत, नृत्य और पारंपरिक भोज का आयोजन किया जाता है।

    पुरस्कार और मान्यता(Awards and Recognition)

    2005 में, भारत सरकार ने खोनोमा को आधिकारिक रूप से “भारत का पहला हरित गाँव” घोषित किया, और इसके सामुदायिक संरक्षण प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई। यह उपाधि भारत सरकार द्वारा 30 मिलियन रुपये के “ग्रीन विलेज प्रोजेक्ट” के तहत दी गई थी, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देना था। खोनोमा ने शिकार पर प्रतिबंध, जैविक खेती, और सामुदायिक वन प्रबंधन जैसे उपायों को अपनाकर अपने पारंपरिक जीवन को प्रकृति के साथ संतुलित किया, जिससे यह एक आदर्श संरक्षण मॉडल बन गया।

    खोनोमा के इन संरक्षण प्रयासों को वैश्विक पहचान भी मिली। 1998 में, जेराल्ड ड्यूरेल मेमोरियल फंड (यूके) ने खोनोमा को संरक्षण कार्यों के लिए 5,000 USD का अनुदान प्रदान किया। इसके अलावा, ईको-बिजनेस और यूनेस्को जैसी प्रमुख संस्थाओं ने खोनोमा को सामुदायिक नेतृत्व वाले संरक्षण का एक बेहतरीन उदाहरण माना। खोनोमा के इस संरक्षण मॉडल को न केवल भारत में, बल्कि मेघालय और चीन के युन्नान प्रांत जैसे क्षेत्रों में भी अपनाने की पहल की गई है।

    इसके अतिरिक्त, खोनोमा आज एक प्रमुख पर्यटन और शोध केंद्र भी बन चुका है। यहां हर साल पक्षी प्रेमियों, शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों का आगमन होता है, जो इस क्षेत्र के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और संरक्षण प्रयासों का अध्ययन करते हैं। स्थानीय समुदाय ने ईको-टूरिज्म के माध्यम से अपनी आय बढ़ाई है, और 600 से अधिक परिवारों ने पर्यटन से जुड़कर आर्थिक लाभ प्राप्त किया है।

    वर्त्तमान समय में खोनोमा (In the present time, Khonoma)

    खोनोमा अब पर्यावरणीय संरक्षण, सांस्कृतिक धरोहर और सतत विकास के क्षेत्र में एक आदर्श बन चुका है। यहाँ के लोग अपनी पारंपरिक जीवनशैली को बनाए रखते हुए आधुनिक तकनीकों और योजनाओं का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को और मजबूत कर रहे हैं। नवंबर 2024 में, नागालैंड सरकार ने माईकी विलेज अडॉप्शन इनिशिएटिव(Myki Village Adoption Initiative – TMVAI) शुरू की, जिसमें खोनोमा को पायलट परियोजना के रूप में चुना गया। इस पहल का उद्देश्य स्थानीय महिलाओं को स्थायी आजीविका गतिविधियों में शामिल करना है, जैसे कि लहसुन की खेती, जिससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा, बल्कि महिलाओं की भूमिका भी सशक्त होगी। साथ ही, खोनोमा में सतत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो स्थानीय संस्कृति, कला और परंपराओं को संरक्षित करता है।

    भविष्य की चुनौतियाँ और रास्ते(Future Challenges for Khonoma)

    हालाँकि खोनोमा ने अपने स्तर पर एक बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन आगे की राह भी आसान नहीं है। बदलती जलवायु, बाहरी पर्यटकों की भीड़ और आधुनिकता की ओर बढ़ते कदम गाँव के शांत वातावरण और पारंपरिक संरचना के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी है कि पर्यावरणीय पर्यटन को नियंत्रित तरीके से बढ़ाया जाए, ताकि यह गाँव की पारिस्थितिकी और संस्कृति को नुकसान न पहुँचाए। साथ ही, युवा पीढ़ी को अपनी परंपराओं और पर्यावरण संरक्षण के महत्व से जोड़े रखा जाए, ताकि वे इसे आने वाली पीढ़ियों तक बनाए रख सकें। इसके अलावा, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों से सतत सहयोग मिलना आवश्यक है, ताकि खोनोमा के संरक्षण और विकास की दिशा में निरंतर समर्थन और संसाधन उपलब्ध होते रहें।

    खोनोमा से मिलने वाली प्रेरणा(The inspiration we get from Khonoma)

    खोनोमा केवल एक गाँव नहीं है, यह एक प्रेरणा है उस सोच की, जो कहती है कि यदि एक समुदाय ठान ले तो प्रकृति का संतुलन फिर से बनाया जा सकता है। खोनोमा यह दिखाता है कि विकास और संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं।

    जब दुनिया पर्यावरणीय संकटों जैसे जलवायु परिवर्तन, जंगलों की कटाई, प्रदूषण और जैव विविधता के क्षरण से जूझ रही है, तब खोनोमा जैसे गाँव हमें एक नई दिशा दिखाते हैं।

    खोनोमा कैसे पहुंचें?(How to reach Khonoma?)

    हवाई मार्ग (By Air) – कोहिमा का धिमापुर एयरपोर्ट (Dimapur Airport) निकटतम एयरपोर्ट है, जो खोनोमा से लगभग 74 किलोमीटर दूर स्थित है।

    रेल मार्ग (By Train) – खोनोमा तक पहुँचने के लिए धिमापुर रेलवे स्टेशन (Dimapur Railway Station) सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो खोनोमा से लगभग 74 किलोमीटर दूर स्थित है।

    सड़क मार्ग (By Road) – कोहिमा से खोनोमा तक जाने के लिए आपको NH2 मार्ग का पालन करना होगा।कोहिमा से खोनोमा तक निजी वाहन या टैक्सी द्वारा लगभग 1.5 से 2 घंटे का समय लगता है। इसके अलावा, गुवाहाटी से खोनोमा तक बस सेवा भी उपलब्ध है, जिससे आप वहां से सड़क मार्ग से खोनोमा पहुँच सकते हैं।

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