India’s Unique Railway Station (Image Credit-Social Media)
India’s Unique Railway Station: क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा गांव है जहाँ का रेलवे स्टेशन सरकार नहीं बल्कि लोग चलते हैं। आइये जानते हैं आखिर कहाँ है ये अनोखा रेलवे स्टेशन और आखिर ऐसा क्यों होता है यहाँ।
भारत का ऐसा गांव जहाँ सरकार नहीं लोग चलते हैं रेलवे स्टेशन
न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में रेलवे को यातायात का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। वहीँ भारत में आधे से ज़्यादा लोग एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने के लिए रेलवे का ही सहारा लेते हैं। वहीँ भारतीय रेलवे लोगों को कई तरह की सुविधा भी देता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ आपको एक ऐसा रेलवे स्टेशन मिलेगा जो सरकार नहीं बल्कि लोगों द्वारा चलाया जा रहा है।
जहाँ एक तरफ भारतीय रेलवे सभी रेलवे स्टेशन का संचालन करता है वहीँ देश में एक ऐसा गांव भी है जहाँ के रेलवे स्टेशन का संचालन वहां के लोग कर रहे हैं। दरअसल यहाँ के रेलवे स्टेशन का संचालन भारतीय रेलवे या रेल मंत्रालय नहीं करता है। वहीँ इस स्टेशन की सारी ज़िम्मेदारी वहां के रहने वाले लोग पूरी करते हैं।
क्या है इस गांव का नाम
आपको बता दें कि इस गांव का नाम है रशीदपुर खोरी। ये गांव राजस्थान में है जहाँ पर लोग रेलवे स्टेशन को स्वयं चला रहे हैं। वहीँ आपको बता दें कि ये भारत का एकमात्र ऐसा गांव है जिसे लोगों द्वारा संचालित किया जाता है और इसमें भारतीय रेलवे या रेल मंत्रालय का कोई भी योगदान नहीं है। साथ ही न रेलवे अधिकारी या कर्मचारी की इसमें कोई भागीदारी है। बल्कि इसे पूरी तरह से ग्रामीणों द्वारा संचालित किया जाता है।
दरअसल ये रेलवे स्टेशन जिसका नाम रशीदपुर खोरी है इसका निर्माण आज से लगभग 100 साल पहले अंग्रेज़ों द्वारा किया गया था। इसका निर्माण साल 1923 में जयपुर-चूरू रेलवे लाइन के हिस्से के रूप में किया गया था। अपने निर्माण के बाद से ही ये रेलवे लाइन ग्रामीणों के लिए एक महत्वपूर्ण यातायात का स्रोत रही है। यहाँ के लोग व्यापार,संचार और यातायात के लिए इस रेलवे स्टेशन पर पूरी तरह से निर्भर थे।
बंद कर दिया गया था ये रेलवे स्टेशन
काफी समय तक इस रेलवे स्टेशन का संचालन सही से चलता रहा लेकिन फिर साल 2005 में इस रेलवे स्टेशन को रेलवे अधिकारीयों द्वारा बंद करने का फैसला लिया गया। उनका मानना था कि इस रेलवे स्टेशन से उन्हें कम राजस्व और उच्च रखरखाव में लागत ज़्यादा जा रही है। रेलवे स्टेशन के बंद होने से ग्रामीण काफी निराश और परेशान हो गए। इसके लिए उन्होंने कई अधिकरियों, राजनेताओं और मीडिया से भी संपर्क किया लेकिन इन सबका कोई फायदा नहीं हुआ।
लेकिन इन सबके बावजूद ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने इसको पूरी तरह सँभालने का मुश्किल भरा निर्णय लिया। इसके बाद ग्रामीणों ने एक समिति का निर्माण किया और रेलवे अधिकारीयों से भी कई मुलाकात की। जिन्होंने रेलवे स्टेशन को फिर से संचालित करने के लिए ग्रामीणों के सामने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशन पर टिकटों की बिक्री से हर महीने 3 लाख रूपए तक आना चाहिए और स्टेशन के रखरखाव और सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखना होगा। ग्रामीणों ने उनकी ये शर्त मान ली और साल 2009 में रेलवे अधिकारीयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया।
ग्रामीणों ने रेलवे स्टेशन पर लोगों को स्टेशन मास्टर, टिकट विक्रेता,गार्ड और सफाईकर्मी के रूप नियुक्त किया। रेलवे स्टेशन पर पानी, सुरक्षा,बिजली और सफाई जैसी सभी सुविधाओं का भी ख्याल रखा गया। ग्रामीणों ने ये साबित कर दिया कि वो इस चुनौती को पूरी तरह से लेने में सक्षम है उन्होंने मुनाफे स्टेशन का संचालन किया और आज भी कर रहे हैं।�