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    Home » Jagannath Puri Chandan Yatra: चंदन यात्रा का इतिहास, भगवान जगन्नाथ को गर्मी से निजात दिलाने का उत्सव
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    Jagannath Puri Chandan Yatra: चंदन यात्रा का इतिहास, भगवान जगन्नाथ को गर्मी से निजात दिलाने का उत्सव

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 1, 2025No Comments4 Mins Read
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    Chandan Yatra (Image Credit-Social Media)

    Chandan Yatra (Image Credit-Social Media)

    Jagannath Puri Chandan Yatra History: भारत देश के ओडिशा राज्य में स्थित पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में हर साल चंदन यात्रा का उत्सव मनाया जाता है। यह पावन चंदन यात्रा अक्षय तृतीय से शुरू होकर करीब 42 दिनों तक चलता है जिसका आनंद लेने देश विदेश से लोग आते हैं। इस चंदन यात्रा उत्सव को दो भागों में मनाया जाता है जिसे बहार और भीतर उत्सव का नाम दिया गया है। इस उत्सव का पहला भाग अक्षय तृतीया से शुरू होकर 21दिनों तक ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक चलता है। इस दौरान श्रीविग्रह 21दिनों तक नरेन्द्र सरोवर में नौका विहार करते हैं। इसके साथ ही आज के दिन से भगवान श्री जगन्नाथ के रथ यात्रा के लिए रथ बनाने का काम भी शुरू हो जाता है।

    ऐसा माना जाता है कि भीषण गर्मी से बचने के लिए भगवान को चंदन का लेप लगाया जाता है जिससे उन्हें शीतलता मिलती है । इस यात्रा के पहले 21 दिनों में जगन्नाथ मंदिर के मुख्य देवताओं की प्रतिनिधि मूर्तियों के साथ पांच शिवलिंगों को जिसे पंच पांडव के रूप में जाना जाता है मुख्य जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से निकाल कर नरेंद्र सरोवर तक सजाकर लाया जाता है। मंदिर के मदनमोहन, भूदेवी, श्रीदेवी और रामकृष्ण देवता इस बहार यात्रा में 21 दिनों तक हिस्सा लेते हैं। देवताओं को सरोवर में भव्य रूप से सजाए गए दो नावों पर रखकर भ्रमण कराया जाता है। इस मनोरम उत्सव को वहां के स्थानीय भाषा में चाप खेल कहा जाता है।

    इसके बाद यात्रा के अगले 21 दिन जिसे भीतर चंदन यात्रा कहा जाता है मंदिर में मनाया जाता है । जिसमें कई प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दौरान ज्येष्ठ अमावस्या के दिन, पूर्णिमा की रात, षष्ठी और ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चंचल सवारी का आयोजन होता है।

    श्री जगन्नाथ रथयात्रा इस साल 27 जून 2025 को मनाई जाएगी। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को इस रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के घर यानि प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर तक जाते हैं। यहां भगवान अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ 7 दिनों तक विश्राम करते हैं। श्री जगन्नाथ रथयात्रा के दस दिवसीय महोत्सव में भाग लेने हजारों की तादाद में श्रद्धालु दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं और भगवान श्री जगन्नाथ के रथ को खींचना या छूना चाहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान रथ यात्रा में शामिल व्यक्ति भगवान से हर प्रकार की सुख-समृद्धि पाता है।

    चंदन यात्रा की पौराणिक कथा:

    इस चंदन यात्रा के शुरू होने के पीछे भी एक कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि स्वयं भगवान श्री जगन्नाथ ने राजा इंद्रद्युम्न को इस उत्सव को मनाने का आदेश दिया था। दरअसल एक बार गोपाल जी ने सपने में आकर अपने एक भक्त माधवेंद्र पुरी को जमीन खोदकर स्वयं प्रकट होने की इच्छा की जिसके फलस्वरूप माधवेन्द्र पुरी ने गांव वालों की मदद से उस स्थान पर खुदाई कराकर गोपाल जी के अर्चाविग्रह को प्राप्त किया और वहां स्थित गोवर्धन पर्वत पर स्थापित करवाया। फिर एक दिन गोपाल जी ने माधवेंद्र पुरी से अपनी व्यथा सुनाई कि जमीन के अंदर बहुत समय तक रहने के कारण उनका शरीर गर्मी से जल रहा है इसलिए उन्हें जगन्नाथ पुरी से चंदन लाकर शरीर में उसका लेप लगाकर इस जलन को कम कराएं। कई दिनों तक पैदल यात्रा कर माधवेंद्र जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ के पुजारी से मिलकर अपने गोपाल के लिए चंदन की मांग की। मंदिर के पुजारी ने माधवेंद्र को पुरी के महाराजा से मिलवाया फिर महाराजा ने करीब 40 किलो चंदन की विशेष लकड़ी पुरी को दिलवाई। उसके बाद माधवेंद्र पुरी जब चंदन लेकर गोपीनाथ मंदिर के पास पहुंचे तो गोपाल उनके सपने में आकर चंदन गोपीनाथ को लगाने का आदेश दिया और बताया कि गोपाल और गोपीनाथ एक ही हैं। इस प्रकार गोपाल के आदेशानुसार चंदन गोपीनाथ को लगा दिया गया और इस घटना के बाद जगन्नाथ पुरी में चंदन यात्रा का उत्सव का शुभारंभ हुआ। 

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