
Jaipur Dussehra 2025 (Image Credit-Social Media)
Jaipur Dussehra 2025
Jaipur Dussehra 2025: नवरात्र के आरंभ के साथ ही राजस्थान की राजधानी जयपुर इन दिनों उत्सव के रंगों में डूबी हुई है। सड़कों पर भीड़, बाजारों में रौनक और गलियों में बच्चों की खिलखिलाहट सब मिलकर इस बात का संकेत दे रहे हैं कि दशहरे की धूम बस मचने ही वाली है। खास तौर पर यहां के गुरजर की ढाणी इलाके की रौनकें तों देखते ही बनती हैं। यहां की सड़कें इस समय किसी खुले मेले जैसी लग रही हैं, जहां रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले कतारबद्ध खड़े खरीदारों को बुला रहे हैं। इन रंग-बिरंगे पुतलों को देखकर लगता है जैसे त्योहार ने पहले ही दस्तक दे दी हो।
जयपुर की गलियों में छाया दशहरे का रंग

जयपुर हमेशा से ही त्योहारों की रौनक के लिए जाना जाता है। लेकिन दशहरे का जिक्र आते ही सबसे पहले पुतला बाजार का ख्याल आता है। गुरजर की ढाणी में इस बार भी हर तरफ बांस, कागज और कपड़े से बने विशाल पुतले नजर आ रहे हैं। दूर से ही रावण के दस सिर और चौड़े सीने वाले कुंभकरण की झलक बच्चों को आकर्षित कर रही है। वहीं मेघनाद की युद्ध मुद्रा लोगों को रामायण के पन्नों में ले जाती है।
कारीगरों की मेहनत और लगन
इन पुतलों को बनाने वाले कारीगरों की कहानी भी उतनी ही रोचक है जितना खुद यह त्योहार। परिवार के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि वे पीढ़ियों से यही काम करते आ रहे हैं। सुबह से लेकर देर रात तक वे बांस की लकड़ियों से ढांचा तैयार करते हैं, फिर उस पर कागज चिपकाते हैं और अंत में रंगों से उसे जीवंत बना देते हैं। यहां पुरखों की बनाई परम्परा को निभाते आ रहे एक कारीगर का कहना है कि,
दशहरे में बिक्री के लिए तैयार किए गए पुतले, हमारे लिए ये सिर्फ पुतले नहीं हैं, बल्कि परंपरा की धरोहर हैं। जब हजारों लोग हमारे बनाए पुतलों को जलते देख जय श्रीराम के नारे लगाते हैं, तो हमारी मेहनत सफल हो जाती है। कारीगर ने इस काम में आई चुनौतियों को साझा करते हुए बताया कि इस बार बारिश ने मुश्किलें जरूर खड़ी कीं। भीगने की वजह से कई बार पुतले फिर से सुखाने पड़े। रंग भी दोबारा चढ़ाने पड़े। लेकिन उत्सव की आस्था के आगे सारी थकान गायब हो जाती है।
बाजार में छाया खरीदारों का उत्साह

त्योहार नजदीक आते ही बाजार में भीड़ उमड़ने लगी है। कोई अपने मोहल्ले के छोटे आयोजन के लिए 12-15 फीट का पुतला खरीद रहा है तो कोई बड़े मैदान में होने वाले कार्यक्रम के लिए 40-50 फीट का। मोलभाव का नजारा भी देखने लायक होता है। एक ओर कारीगर अपने पसीने की कीमत बताते हैं, तो दूसरी ओर खरीदार त्योहार के खर्चों का हिसाब लगाते हुए दाम घटाने की कोशिश करता है। छोटे पुतले जहां दो-तीन हजार में बिक जाते हैं, वहीं बड़े पुतले 20-50 हजार या इससे भी अधिक कीमत तक के हैं। कुछ लोग खास डिजाइन और रंगों के लिए ऑर्डर भी देते हैं।
दशहरा उत्सव की रौनक बनी एक परंपरा
जयपुर में दशहरा केवल पुतला दहन नहीं है, यह सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक उमंग का भी प्रतीक है। जगह-जगह मेले लगते हैं, रामलीला का मंचन होता है और बच्चे झूले, गोलगप्पे और खिलौनों का मजा लेते हैं। जब शाम को हजारों लोग एक साथ ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष करते हैं और आग की लपटों के बीच रावण, कुंभकरण और मेघनाद का विशाल पुतला ढह जाता है, तो वह दृश्य किसी रोमांच से कम नहीं होता। यह पल हर दर्शक के मन में अच्छाई की जीत और बुराई के अंत का संदेश छोड़ जाता है।
पर्यावरण संरक्षण के साथ परंपरा और आधुनिकता का संगम
दिलचस्प बात यह है कि परंपरा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की मांग भी झलकने लगी है। कई आयोजक अब इको-फ्रेंडली पुतले तैयार करवा रहे हैं, ताकि प्रदूषण कम हो। वहीं आतिशबाजी और लेजर शो के साथ पुतला दहन को और आकर्षक बनाया जाता है।
जयपुर का दशहरा इस मायने में खास है कि यहां स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि देश-विदेश से आए पर्यटक भी इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनते हैं। आदर्शनगर, शास्त्री नगर और वैषाली नगर के मैदानों में होने वाले विशाल पुतला दहन कार्यक्रम हर साल हजारों दर्शकों को आकर्षित करते हैं।
देखते ही बनती है यहां बच्चों की उत्सुकता

बच्चों के लिए दशहरा मानो किसी जादू जैसा होता है। वे रावण के जलते पुतले को देखकर रोमांच से भर जाते हैं। कई बच्चे तो खुद छोटे-छोटे पुतले खरीदकर अपने दोस्तों के साथ मोहल्ले में छोटा-सा दहन करते हैं। उनकी हंसी-खुशी ही त्योहार का असली रंग है।
जयपुर का दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि शहर की सांस्कृतिक पहचान है। गुरजर की ढाणी का पुतला बाजार इस परंपरा की आत्मा है, जहां मेहनतकश कारीगर बिना किसी धर्म और जाति के आडंबर के बस अपनी कला से आस्था को आकार देते हैं।