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    Home » Jwala Devi Mandir Ka Rahasya: इस मंदिर में सदियों से जल रही है ज्वाला, क्या है इसका रहस्य?
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    Jwala Devi Mandir Ka Rahasya: इस मंदिर में सदियों से जल रही है ज्वाला, क्या है इसका रहस्य?

    By February 25, 2025No Comments6 Mins Read
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    Jwala Devi Mandir (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Jwala Devi Mandir (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Jwala Devi Mandir Ka Rahasya: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्ति पीठों (Himachal Pradesh Maa Shakti Peeth) में से एक है। यह मंदिर देवी दुर्गा के ज्वालामुखी रूप को समर्पित है और यहां बिना घी-बत्ती के प्राकृतिक ज्वाला प्रज्वलित होती है। यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्वालामुखी देवी के मंदिर को ‘जोटा वाली का मंदिर’ भी कहा जाता है।

    मंदिर का इतिहास (Jwala Devi Mandir History In Hindi)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल से भी पहले का है। पुराणों के अनुसार, इस स्थान पर सती के जिह्वा (जीभ) का पतन हुआ था, जब भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे। मान्यता है कि यह मंदिर महाराज भूमिचंद कटोच (Maharaj Bhumi Chand Katoch) द्वारा निर्मित करवाया गया था, जिन्हें सपने में देवी ने इसके निर्माण का आदेश दिया था।

    इस चमत्कारी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई बार खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक अग्नि कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है।

    इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसके अलावा, मुगल सम्राट अकबर (Samrat Akbar) के काल में इस मंदिर का विशेष महत्व था। अकबर ने इस मंदिर की ज्वाला को बुझाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। इसके बाद उसने सोने का छत्र भेंट किया, जो तांबे में बदल गया, यह घटना आज भी मंदिर के चमत्कारों में गिनी जाती है।

    यह मंदिर चमत्कारिक रूप से भी प्रसिद्ध है। यदि यह ज्वाला केवल प्राकृतिक होती तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन हो रहा होता। लेकिन यह मंदिर अद्वितीय है क्योंकि यहां मूर्ति पूजा के बजाय पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की आराधना होती है।

    मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा भूमि चंद (Raja Bhumi Chand) को जाता है। बाद में 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया, जिसके चलते हिंदू और सिख दोनों ही समुदायों में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है।

    निर्माण और वास्तुकला (Jwala Devi Mandir Construction and Architecture)

    ज्वाला देवी मंदिर की वास्तुकला अत्यंत साधारण किंतु आकर्षक है। मंदिर का मुख्य भाग संगमरमर और चांदी से सजाया गया है। गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ जमीन से प्राकृतिक ज्वाला निकलती है, जिसे ही देवी का स्वरूप माना जाता है। ये ज्वालाएं नौ स्थानों से प्रकट होती हैं, जिन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी के नाम से जाना जाता है।

    मंदिर का निर्माण कटोच वंश के राजाओं ने करवाया था। इसका वास्तुशिल्प पारंपरिक पहाड़ी शैली में है, जिसमें लकड़ी और पत्थरों का उपयोग प्रमुखता से किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में जलती हुई ज्वालाओं को चांदी के चौखटे में सुरक्षित रखा गया है। मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जहां भक्त स्नान करते हैं।

    धार्मिक मान्यता और उत्सव (Jwala Devi Mandir Ki Manyata Aur Utsav)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    ज्वाला देवी मंदिर में नवरात्रि (Navratri) का उत्सव अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में अखंड ज्योति और देवी के दर्शन का विशेष महत्व है। भक्त यहां देवी को लौंग और नारियल चढ़ाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होने पर ‘ज्वाला’ जलाने का विधान है।

    ज्वाला देवी मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध धार्मिक कथा (Jwala Devi Mandir Ki Katha) के अनुसार, भक्त गोरखनाथ माता की गहन आराधना किया करते थे। वे माता के परम भक्त थे और सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी उपासना में लीन रहते थे। एक दिन गोरखनाथ को भूख लगी, तो उन्होंने माता से कहा, “मां, आप कृपया आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं।” माता ने उनकी बात मान ली और अग्नि प्रज्वलित कर दी।

    समय बीतता गया, लेकिन गोरखनाथ वापस नहीं लौटे। मान्यता है कि तभी से माता ज्वाला जलाकर गोरखनाथ की प्रतीक्षा कर रही हैं। ऐसा विश्वास है कि जब सतयुग का आगमन होगा, तब ही गोरखनाथ लौटेंगे और तब तक यह दिव्य ज्वाला इसी प्रकार जलती रहेगी।

    मंदिर में है गोरख डिब्बी

    मंदिर परिसर में स्थित एक और चमत्कारी स्थल है जिसे ‘गोरख डिब्बी’ के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के पास पहुंचने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसका पानी उबल रहा है, लेकिन जैसे ही आप पानी को स्पर्श करते हैं, यह ठंडा महसूस होता है। यह कुंड भी भक्तों के बीच गहरी आस्था और रहस्य का प्रतीक माना जाता है।

    इसके अलावा, मंदिर में नियमित रूप से हवन, पूजा और आरती का आयोजन होता है। मंदिर के पुजारी पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ देवी की पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ माँ ज्वाला देवी के दर्शन से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

    मंदिर से जुड़े रहस्य (Jwala Devi Mandir Ke Rahasya)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    ज्वाला देवी मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहाँ जलती हुई अखंड ज्वाला है, जो बिना किसी ईंधन के सदियों से प्रज्वलित है। वैज्ञानिकों ने भी इसका अध्ययन किया, लेकिन ज्वाला के स्रोत का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिल सका। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ज्वाला प्राकृतिक गैस के कारण जल रही है, लेकिन इसका सटीक स्रोत आज तक अज्ञात है।

    इसके अलावा, कहा जाता है कि अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहा और बाद में उसने सोने का छत्र भेंट किया, जो बाद में तांबे में बदल गया। यह घटना इस मंदिर की चमत्कारिक शक्तियों का प्रमाण मानी जाती है।

    अन्य आकर्षण

    मंदिर के पास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थल भी हैं, जैसे कांगड़ा का किला, चामुंडा देवी मंदिर, ब्रजेश्वरी मंदिर और पालमपुर का प्राकृतिक सौंदर्य। श्रद्धालु अक्सर इन स्थानों का भी भ्रमण करते हैं।

    कैसे पहुंचे ज्वाला देवी मंदिर (How To Reach Jwala Devi Mandir)?

    वायु मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है, जो मंदिर से लगभग 46 कि.मी. दूर है। यहाँ से कार और बस की सुविधा उपलब्ध है।

    रेल मार्ग: पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन द्वारा मारंडा होते हुए पालमपुर पहुँचा जा सकता है। पालमपुर से बस और कार के माध्यम से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

    सड़क मार्ग: पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से सीधी बस और कार सेवाएं उपलब्ध हैं। यात्री अपने निजी वाहनों या हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बसों से भी मंदिर पहुंच सकते हैं।

    ज्वाला देवी मंदिर आस्था, इतिहास और रहस्यों का संगम है। यह न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और पुरातन धार्मिक मान्यताओं का जीता-जागता प्रमाण भी है। इसकी रहस्यमयी ज्वाला और चमत्कारिक घटनाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं।

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