
Jwala Mata Temple (Image Credit-Social Media)
Jwala Mata Temple
Jwala Mata Temple Mystery: सनातन संस्कृति की विराट विरासत में रची बसी भारत की मिट्टी में आस्था और चमत्कार का गहरा रिश्ता है। यहां हर घाट, हर पर्वत और हर नदी अपने भीतर कोई न कोई रहस्य समेटे हुए है। इन्हीं रहस्यमयी धरोहरों में से एक है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में कालीधर पहाड़ी पर स्थित ज्वालामुखी मंदिर। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शक्ति और विश्वास का वह केंद्र है जहाँ माता किसी मूर्ति में नहीं, बल्कि धरती की गोद से निकलती हुई अनंत अग्नि ज्वालाओं के रूप में विराजमान हैं। आइए जानते हैं इस सिद्ध पीठ से जुड़े महत्व और मान्यताओं के बारे में विस्तार से –
सती की जिह्वा से जुड़ी है इस स्थान की आस्था
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमान सहकर योगाग्नि में अपने प्राण त्याग दिए, तब शोकाकुल शिव उनके शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। इस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर सती के शरीर को खंड-खंड किया, ताकि शिव का क्रोध शांत हो सके। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। माना जाता है कि ज्वालामुखी में उनकी जिह्वा (जीभ) गिरी थी, और तभी से यह स्थान दिव्य शक्तिपीठ के रूप में पूजित है।
मूर्ति की जगह अग्नि की ज्वालाओं की होती है पूजा

ज्वालामुखी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां अन्य धार्मिक स्थलों के समान किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती बल्कि श्रद्धालु धरती से स्वयं निकलती नौ ज्योतियों की पूजा करते हैं। इनमें से मुख्य ज्वाला ‘महाकाली’ कहलाती है, जबकि अन्य आठ अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी के नाम से जानी जाती हैं। ज्वाला देवी मंदिर का यह अचंभित कर देने वाला दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। बिना तेल, बिना घी, बिना किसी मानवीय प्रयास के ये ज्वालाएं युगों से निरंतर जल रही हैं। भक्त मानते हैं कि यही मां अपनी शक्ति, प्रेम और दया भाव से सबका मार्गदर्शन करती हैं।
क्या हैं गोरखनाथ की अधूरी भिक्षा और देवी की प्रतीक्षा की कहानी
मंदिर से जुड़ी एक लोककथा इसे और भी रहस्यमयी बना देती है। कहा जाता है कि, भक्त गोरखनाथ यहां साधना करते थे। एक दिन उन्होंने माता से कहा कि ‘आप अग्नि जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा लेकर आता हूं।’ माता ने उनकी आज्ञा मानकर अग्नि प्रज्वलित कर दी।
लेकिन गोरखनाथ भिक्षा की खोज में गए और कभी लौटकर नहीं आए। युग बदल गए, सतयुग से कलियुग आ गया, पर माता अब भी उसी अग्नि को जलाए बैठी हैं। मान्यता है कि माता अपने भक्त की प्रतीक्षा कर रही हैं। मान्यता है कि जब फिर से सतयुग आएगा, गोरखनाथ लौटेंगे और तब यह प्रतीक्षा पूर्ण होगी। तब तक यह दिव्य ज्वाला यूं ही अनवरत जलती रहेगी।
मंदिर का एक और रहस्य – गोरख डिब्बी
मंदिर परिसर में एक और रहस्य है, जिसे ‘गोरख डिब्बी’ कहा जाता है। यह एक कुंड है, जिसमें पानी खौलता हुआ दिखाई देता है, बुलबुले उठते हैं जैसे उबाल आ रहा हो। परंतु जब कोई भक्त इसे हाथ लगाता है तो पानी ठंडा महसूस होता है। वैज्ञानिकों ने इसकी व्याख्या करने की कोशिश की, लेकिन आज तक कोई पुख्ता जवाब नहीं मिल पाया। यही कारण है कि भक्त इसे चमत्कार मानते हैं और विश्वास करते हैं कि यह स्थान गोरखनाथ की तपस्या से जुड़ा हुआ है।
ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास और निर्माण में राजाओं का योगदान
दर्ज इतिहास के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमिचंद ने करवाया था। बाद में 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद्र ने इसके जीर्णोद्धार और विस्तार का काम कराया। इस मंदिर की इतनी ख्याति थी कि सम्राट अकबर तक इस मंदिर की महिमा पहुंची। कहा जाता है कि अकबर ने यहां आकर देवी की शक्ति की परीक्षा लेने का प्रयास किया। उन्होंने ज्वाला को बुझाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। अंततः उन्होंने देवी की शक्ति स्वीकार की और भक्ति भाव से नतमस्तक हुए।
अंग्रेजों के प्रयास और विज्ञान की असफलता

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भी अंग्रेजों ने इस ज्वाला की रहस्यमय शक्ति को समझने की कोशिश की। उनका मानना था कि धरती की सतह से कोई गैस निकल रही है, जिससे यह ज्वाला जल रही है। उन्होंने इसके स्रोत का पता लगाने के लिए खुदाई और वैज्ञानिक परीक्षण किए, पर असफल रहे। न तो ऊर्जा का स्रोत मिला, न ही यह अग्नि कभी बुझाई जा सकी। यही कारण है कि यह ज्वाला केवल प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि देवी का दिव्य चमत्कार मानी जाती है।
हर साल लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। लोग मानते हैं कि ज्वाला माता के दर्शन से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कई श्रद्धालु यह अनुभव भी साझा करते हैं कि मंदिर में प्रवेश करते ही भीतर एक अलग ही शांति और ऊर्जा का अहसास होता है जैसे मां स्वयं अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही हों।