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    Home » Kamakhya Temple Mela: जानिए कामाख्या मंदिर के अम्बुबाची पर्व की अनकही कहानी का रहस्य
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    Kamakhya Temple Mela: जानिए कामाख्या मंदिर के अम्बुबाची पर्व की अनकही कहानी का रहस्य

    Janta YojanaBy Janta YojanaSeptember 17, 2025No Comments5 Mins Read
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    Ambubachi Festival Kamakhya Temple (Image Credit-Social Media)

    Ambubachi Festival Kamakhya Temple

    Ambubachi Mela Kamakhya Temple: भारत में मौजूद हर मंदिर, हर परंपरा और हर पर्व के पीछे कोई न कोई रहस्य या मान्यता छिपी हुई है। जिन्हें जानने और देखने के बाद किसी को भी अलौकिक शक्तियों पर भरोसा और मजबूत हो जाएगा। इसी कड़ी में असम की धरती पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर का अम्बुबाची पर्व अपने भीतर कई अनोखे रहस्य समेटे हुए है। हर साल जून के महीने के दौरान गुवाहाटी की हवाओं में श्रद्धा और परम्परा के अदभुत मेल का एहसास होता है। मान्यता है कि यह वही समय है जब मां कामाख्या रजस्वला होती हैं और ब्रह्मपुत्र नदी का जल तीन दिन के लिए लाल हो उठता है। यह बात केवल आस्था की कहानी भर नहीं है, बल्कि प्रकृति, स्त्री शक्ति के अद्भुत चमत्कार का प्रतीक भी है।

    अम्बुबाची पर्व का महत्व

    ‘अम्बुबाची’ शब्द सुनने में जितना सरल प्रतीत होता है, असल में उसका अर्थ उतना ही गहरा हैं। ‘अम्बु’ यानी जल और ‘बाची’ यानी उत्फुलन। यानी धरती की उर्वरता का वह क्षण, जब जीवन का बीज अंकुरित होने की क्षमता पाता है। ठीक वैसे ही जैसे किसी स्त्री के शरीर में मासिक धर्म उसके मातृत्व की शक्ति का संकेत होता है।

    यही कारण है कि इस पर्व को केवल धार्मिक अनुष्ठान न मानकर सृजन का उत्सव कहा जाता है। यह संदेश देता है कि मासिक धर्म जैसी प्राकृतिक प्रक्रिया जिसे अक्सर समाज में वर्जना के रूप में देखा जाता है, वास्तव में सृजन और शक्ति का प्रतीक होती हैं।

     शक्तिपीठों का मुकुट कामाख्या मंदिर में मौजूद देवी का रहस्य

    गुवाहाटी की पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर को शक्तिपीठों का मुकुट कहा जाना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस मंदिर से जुड़ी प्रचिलत कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंगों को 108 भागों में विभाजित किया था, जिसमें से 51 भाग धरती पर अलग-अलग जगहों पर गिरे। जिनमें से देवी का योनि भाग यहीं गुवाहाटी में गिरा था। इसीलिए यहां देवी की पूजा ‘योनि रूप’ में होती है।

    मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक चट्टान है, जो योनि के आकार की है। उस पर सतत जलधारा बहती रहती है, जिसे मां कामाख्या की जीवनदायिनी शक्ति माना जाता है। भक्त दस सीढ़ियों से नीचे उतरकर इस ‘महामुद्रा पीठ’ के दर्शन करते हैं। वहीं अखंड दीप जलता है और यहीं से अम्बुबाची पर्व का रहस्य शुरू होता है।

    तीन दिनों के लिए बंद हो जाते हैं मंदिर के कपाट

    जैसे ही अम्बुबाची पर्व आरंभ होता है, मंदिर के कपाट स्वतः बंद हो जाते हैं। इन तीन दिनों तक देवी को रजस्वला माना जाता है। इस दौरान इस मंदिर में न कोई पूजा, न कोई अनुष्ठान सिर्फ मौन और प्रतीक्षा का माहौल बना रहता है। इन तीन दिनों के दौरान लाखों श्रद्धालु मंदिर परिसर के बाहर ठहरते हैं, इस आस्था के साथ कि चौथे दिन देवी के दिव्य दर्शन होंगे। तीन दिन पूरे होने पर ब्राह्म मुहूर्त में देवी का स्नान और श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद मंदिर के पट दर्शन के लिए खुलते हैं। उस क्षण का उत्साह, जयकारों की गूंज और भक्तों की उमंग ऐसा माहौल पैदा करती है मानो खुद ब्रह्मांड देवी की शक्ति का स्वागत कर रहा हो। इस दिव्यता को अनुभव करने के लिए इस दौरान लाखों भक्त देवी दर्शन के लिए आते हैं।

     प्रसाद के तौर पर वितरित होते हैं देवी के रजस्वला वस्त्र

    इस पर्व का सबसे विशेष प्रसाद है अम्बुबाची वस्त्र। परंपरा है कि देवी की रजस्वला अवधि शुरू होने से पहले गर्भगृह में सफेद कपड़े बिछा दिए जाते हैं। तीन दिन बाद जब मंदिर के कपाट खुलते हैं, तो वे कपड़े रक्तवर्ण धारण कर चुके होते हैं। इन्हें भक्तों में प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। इस वस्त्र को लेकर प्राचीन मान्यता है कि, इस वस्त्र को घर में रखना शुभ, समृद्धि का कारण बनता है और साधना के समय इसे धारण करने से हर मनोकामना पूरी होती है। यही वजह है कि भक्त देवी के इस पवित्र वस्त्र को प्रसाद रूप में पाना सौभाग्य समझते हैं। इस आस्था ने इस प्रसाद को और भी अनमोल और अद्वितीय बना दिया है।

    ब्रह्मपुत्र के लाल होने के पीछे धर्मिक मान्यता

    अम्बुबाची पर्व से जुड़ी सबसे बड़ी चमत्कारिक मान्यता है कि इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी खून की तरह लाल हो जाता है। स्थानीय लोग इसे देवी के रजस्वला होने का संकेत मानते हैं। जबकि वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, यह किसी विशेष प्रकार की शैवाल या खनिज के कारण हो सकता है। लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी वैज्ञानिक कारण इस रहस्य को पूरी तरह समझा नहीं पाया। यही वजह है कि श्रद्धालुओं के लिए यह केवल आस्था नहीं, बल्कि दिव्यता का संगम है।

    तांत्रिक क्रियाओं का महाकुंभ बन जाता है अम्बुबाची पर्व

    अम्बुबाची पर्व को तांत्रिक परंपरा का महाकुंभ भी कहा जाता है। इन दिनों देश-विदेश से असंख्य तांत्रिक गुवाहाटी पहुंचते हैं। सामान्य दिनों में जो साधक गुप्त साधनाएं करते हैं, वे यहां आकर सार्वजनिक रूप से दीक्षा, साधना और मंत्रसिद्धि करते हैं।

    इस समय कामाख्या मंदिर परिसर आस्था और रहस्यों का अद्भुत संगम बन जाता है। इस दौरान पूरे मंदिर प्रांगड़ में कहीं योगियों का ध्यान, कहीं साधकों की साधना, कहीं तांत्रिकों की गोपनीय क्रियाएं इस पर्व को अद्वितीय दिव्यता प्रदान करती हैं। अम्बुबाची पर्व केवल मंदिर तक सीमित नहीं है। यह असम की सांस्कृतिक धरोहर भी है। गुवाहाटी में लगने वाले विशाल मेले में साधु-संतों से लेकर आम श्रद्धालु का विशाल हुजूम इसमें शामिल होता है।

    यह पर्व स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मासिक धर्म जैसे विषय को सामाजिक सम्मान देता है। जहां समाज में अक्सर इसे छुपाने या वर्जित मानने की प्रवृत्ति रही है, वहीं कामाख्या इसे पवित्रता और सृजन का प्रतीक मानकर मनाता आया है।

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