
Khatu Shyam Nishan Yatra Faith and Tradition
Khatu Shyam Nishan Yatra Faith and Tradition
Khatu Shyam Nishan Yatra: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और त्याग की जीवंत मिसाल माना जाता है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु अपने साथ एक मन्नत, एक कहानी और बाबा से जुड़ी एक उम्मीद लेकर पहुंचता है। इन्हीं परंपराओं में सबसे विशेष है रींगस से खाटू श्याम तक की निशान पदयात्रा, जिसमें भक्त लगभग 17 से 18 किलोमीटर पैदल चलकर बाबा के चरणों में निशान अर्पित करते हैं। यह यात्रा केवल रेगिस्तान की तपती रेत के बीच शारीरिक कष्ट सहने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मिक समर्पण और अटूट विश्वास का प्रतीक मानी जाती है। आखिर निशान का क्या रहस्य है, इसे नीचे क्यों नहीं रखा जाता और श्रद्धालु नंगे पांव क्यों चलते हैं, ये सवाल इस परंपरा को और भी खास बनाते हैं। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से –
खाटू श्याम बाबा क्यों है आस्था का केंद्र
खाटू श्याम बाबा को महाभारत काल के महावीर बर्बरीक के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बर्बरीक ने धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण के आग्रह पर अपना शीश दान कर दिया था। इस अद्वितीय बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे श्याम नाम से पूजे जाएंगे और जो भी सच्चे मन से उनका स्मरण करेगा, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। यही कारण है कि खाटू श्याम बाबा को आज ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है और देश-विदेश से श्रद्धालु उनके दरबार में माथा टेकने आते हैं।
क्या है निशान और क्यों किया जाता है अर्पण
निशान एक विशेष प्रकार का ध्वज होता है, जिसे श्रद्धालु रींगस से उठाकर पूरे सम्मान के साथ खाटू श्याम बाबा के मंदिर तक लेकर जाते हैं। हिंदू परंपरा में ध्वज को विजय, धर्म और संकल्प का प्रतीक माना गया है। बाबा को निशान अर्पित करना उनके महान बलिदान को स्मरण करने और अपनी श्रद्धा प्रकट करने का एक पवित्र माध्यम है। हर निशान अपने साथ भक्त की मन्नत, उसका विश्वास और उसका संकल्प लेकर चलता है।
रींगस राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध कस्बा और रेलवे जंक्शन है। यह स्थान खास तौर पर खाटू श्याम बाबा की निशान यात्रा के लिए जाना जाता है। देशभर से आने वाले श्रद्धालु आमतौर पर ट्रेन से पहले रींगस रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं और वहीं से पैदल यात्रा शुरू कर खाटू श्याम मंदिर जाते हैं। धार्मिक दृष्टि से रींगस को खाटू श्याम यात्रा का मुख्य पड़ाव माना जाता है। मान्यता है कि रींगस से पैदल चलकर बाबा के दरबार तक जाना श्रद्धा और तपस्या का प्रतीक होता है। इसी कारण यहां से हर साल लाखों भक्त निशान उठाकर 17 से 18 किलोमीटर की पदयात्रा करते हैं।
रींगस से खाटू – 17–18 किलोमीटर की पदयात्रा का महत्व
रींगस से खाटू श्याम तक की यह पदयात्रा लगभग 17 से 18 किलोमीटर लंबी होती है। श्रद्धालु इस पूरे मार्ग को पैदल तय करते हैं और अधिकतर भक्त नंगे पांव चलना ही पुण्य मानते हैं। यह यात्रा भक्ति की एक कठिन परीक्षा मानी जाती है। मान्यता है कि जितनी कठिन तपस्या, उतना ही शीघ्र बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। रास्ते भर ‘जय श्री श्याम’ के जयकारे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं और थकान को भी भक्ति में बदल देते हैं।
निशान से जुड़ी मान्यताएं और अनुशासन
निशान यात्रा के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जिनका धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। मान्यता है कि निशान को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता, क्योंकि यह बाबा का प्रतीक माना जाता है। यदि किसी कारणवश श्रद्धालु को विश्राम करना पड़े या अन्य आवश्यकता हो, तो वह निशान किसी दूसरे भक्त को सौंप देता है, लेकिन उसे नीचे नहीं रखता। यह अनुशासन निशान की पवित्रता और बाबा के प्रति भक्त के सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
कैसा होता है खाटू श्याम का निशान
खाटू श्याम बाबा को अर्पित किया जाने वाला निशान सामान्यतः केसरिया, नारंगी या लाल रंग का होता है। कई बार पीले या गुलाबी रंग के निशान भी देखने को मिलते हैं। इन निशानों पर मोर पंख की आकृति बनी होती है, जो भगवान श्रीकृष्ण और बाबा श्याम के गहरे संबंध को दर्शाती है। कुछ निशानों पर बाबा श्याम या श्रीकृष्ण की छवि भी अंकित होती है, जो श्रद्धालुओं की भावनाओं को और प्रबल बना देती है।
मन्नत और निशान का गहरा संबंध
भक्तों का अटूट विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मनोकामना को मन में धारण कर रींगस से खाटू तक नंगे पांव निशान लेकर यात्रा करता है, तो बाबा उसकी इच्छा अवश्य पूर्ण करते हैं। जब मन्नत पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु दोबारा निशान उठाकर बाबा के दरबार में अर्पित करता है। इस प्रकार निशान केवल प्रार्थना ही नहीं, बल्कि कृतज्ञता और धन्यवाद का भी प्रतीक बन जाता है।
खाटू श्याम मंदिर की भव्यता और दर्शन व्यवस्था
खाटू श्याम मंदिर जयपुर से लगभग 91 किलोमीटर और रींगस रेलवे स्टेशन से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार सड़क से बेहद नजदीक है, जिससे श्रद्धालुओं को पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं होती। मंदिर की भव्य वास्तुकला, सुसज्जित गर्भगृह और आरतियों की गूंज मन को अद्भुत शांति से भर देती है। यहां का वातावरण श्रद्धा और भक्ति से ओत-प्रोत रहता है।
सर्दियों में मंदिर खुलने और आरती का समय
सर्दियों के मौसम में भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मंदिर के दर्शन और आरती के समय में बदलाव किया जाता है। सुबह के दर्शन प्रातः 5:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक होते हैं, जबकि शाम के दर्शन 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक उपलब्ध रहते हैं। मंगला आरती सुबह 5:30 बजे होती है, श्रृंगार आरती 8:00 बजे, भोग आरती दोपहर 12:30 बजे, संध्या आरती शाम 6:15 बजे और शयन आरती रात 9:00 बजे संपन्न होती है।
ठहरने और अन्य सुविधाएं
खाटू श्याम में श्रद्धालुओं के लिए अनेक बजट धर्मशालाएं और ठहरने की सुविधाएं उपलब्ध हैं। परिवार के साथ कम बजट में यात्रा करने वालों के लिए यह स्थान बेहद अनुकूल माना जाता है। फाल्गुन मेले और विशेष अवसरों पर बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा, चिकित्सा और दर्शन की विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं।
नया साल जीवन में नई शुरुआत, नए सपनों और नए संकल्पों का प्रतीक होता है। ऐसे शुभ अवसर पर खाटू श्याम बाबा के दरबार में दर्शन करने से मन को शांति और आत्मा को सुकून मिलता है। मान्यता है कि साल की शुरुआत बाबा के आशीर्वाद से करने पर पूरे वर्ष उनकी कृपा बनी रहती है। खाटू श्याम को ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है, इसलिए यहां आकर भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों से उबरने की ऊर्जा पाते हैं। नए साल पर की गई यह यात्रा श्रद्धालुओं के भीतर न केवल आस्था को मजबूत करती है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, विश्वास और उम्मीद के साथ आगे बढ़ने का मार्ग भी दिखाती है।


