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    Home » Kumbhalgarh Kile Ka Itihas: एक ऐसा किला जिसे कभी जीत नहीं जा सका, दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है यहाँ पर
    Tourism

    Kumbhalgarh Kile Ka Itihas: एक ऐसा किला जिसे कभी जीत नहीं जा सका, दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है यहाँ पर

    By December 9, 2024No Comments8 Mins Read
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    History Of Kumbhalgarh Kile Ka Itihas Wikipedia 

    Kumbhalgarh Fort History in Hindi: कुंभलगढ़ किला, जिसे राजस्थान का ‘गर्व’ कहा जाता है, राजसमंद जिले में अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई पर स्थित है। यह किला न केवल अपनी अद्वितीय वास्तुकला और विशाल परिधि के लिए जाना जाता है, बल्कि राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में इसके योगदान के लिए भी प्रसिद्ध है। कुंभलगढ़ का निर्माण मेवाड़ के शासक राणा कुंभा ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। इस किले का उद्देश्य मेवाड़ साम्राज्य को सुरक्षा प्रदान करना था। राणा कुंभा ने इसे एक रणनीतिक गढ़ के रूप में तैयार किया, जिसे दुश्मन फतेह नहीं कर सके। कुंभलगढ़ को वास्तुकार मंडन ने डिज़ाइन किया, और इसे भारत के सबसे मजबूत और अजेय किलों में से एक माना जाता है।

    इस किले की दीवार लगभग 36 किलोमीटर लंबी है, जो इसे दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार बनाती है। यह दीवार इतनी चौड़ी है कि उस पर आठ घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। कुंभलगढ़ किले की संरचना में सात विशाल प्रवेश द्वार, महल, मंदिर, जलाशय और बगीचे शामिल हैं। किले में 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें से अधिकांश जैन और हिंदू धर्म को समर्पित हैं। इस किले का सबसे ऊंचा स्थान “बादल महल” है, जो इसकी खूबसूरती और भव्यता का प्रमुख केंद्र है।

    कोई जीत नहीं सका ये किला

    कुंभलगढ़ का ऐतिहासिक महत्व इसे और अधिक खास बनाता है। यह महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है, जो मेवाड़ साम्राज्य के सबसे वीर और स्वतंत्रता प्रेमी योद्धा माने जाते हैं। यह किला राणा कुंभा की दूरदर्शिता और प्रशासनिक कौशल का प्रमाण है। कुंभलगढ़ पर कई बार मुगलों, मराठों और अन्य राजपूत राजाओं ने आक्रमण किया। लेकिन किले की मजबूत दीवारों और उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इसे जीतना लगभग असंभव रहा।

    1576 में मुगल सम्राट अकबर ने कुंभलगढ़ पर अधिकार करने की कोशिश की। उनकी सेना में जयपुर के राजा मान सिंह और गुजरात के आसफ खान शामिल थे। हालांकि, यह किला सीधे तौर पर जीतना उनके लिए संभव नहीं हुआ। लंबे समय तक घेरेबंदी के बाद, किले के भीतर पानी की कमी और अन्य कारणों से मेवाड़ सेना को पीछे हटना पड़ा।

    किले के अंदर है महादेव का मंदिर

    इतिहास के पन्नों में कुंभलगढ़ अपनी वास्तुकला और भव्यता के अलावा अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी जाना जाता है। किले में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख है, जो राणा कुंभा द्वारा भगवान शिव को समर्पित किया गया था। किले के भीतर जल संचयन की उन्नत तकनीकों का उपयोग किया गया था, जिससे आपातकालीन परिस्थितियों में भी पानी की कमी नहीं होती थी।

    आज कुंभलगढ़ किला राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। हर साल हजारों पर्यटक इसकी भव्यता को देखने और इसके गौरवशाली इतिहास को जानने के लिए यहां आते हैं। राजस्थान सरकार यहां ‘कुंभलगढ़ महोत्सव’ का आयोजन करती है, जिसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं। किले में हर रात साउंड एंड लाइट शो आयोजित किया जाता है, जो इसके इतिहास को दर्शाता है।

    यूनेस्को से मिली मान्यता

    2013 में, कुंभलगढ़ को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित यह किला अब भी राजस्थान की समृद्ध विरासत और मेवाड़ की शक्ति का प्रतीक है। हालांकि समय और प्राकृतिक बदलावों के कारण किले के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचा है। लेकिन इसका मूल स्वरूप आज भी बरकरार है।

    कुंभलगढ़ न केवल राजस्थान की शान है, बल्कि यह भारतीय इतिहास में राणा कुंभा की शक्ति, मेवाड़ की स्वतंत्रता और राजपूत योद्धाओं की वीरता का प्रतीक है। यह किला भारत की संस्कृति, परंपरा और इतिहास का अद्भुत उदाहरण है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

    कुंभलगढ़ का नाम राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक किलों में लिया जाता है। यह किला अपनी अजेयता, वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और रणनीतिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध हुआ। इसे राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में स्थित ‘अरावली पर्वतमाला’ की ऊंचाई पर बनाया गया था। कुंभलगढ़ का निर्माण 15वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा राणा कुंभा द्वारा करवाया गया था। राणा कुंभा ने इसे एक मजबूत और अजेय गढ़ के रूप में बनवाया, जो उनके साम्राज्य को बाहरी आक्रमणों से बचा सके।

    कुंभलगढ़ के प्रसिद्ध होने के मुख्य कारण:

    अजेयता और रणनीतिक स्थिति: कुंभलगढ़ किला समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी प्राकृतिक भौगोलिक स्थिति और मजबूत दीवारें इसे दुश्मनों के लिए लगभग अजेय बनाती थीं। किले की दीवार 36 किलोमीटर लंबी है, जो इसे दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार बनाती है। इसे ‘भारत का महान दीवार’ भी कहा जाता है।

    महाराणा प्रताप का जन्मस्थान: यह किला मेवाड़ के महान योद्धा और स्वतंत्रता के प्रतीक महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है। महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और कभी उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की। उनके जन्मस्थान के कारण यह किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बन गया।

    भव्य वास्तुकला और निर्माण:कुंभलगढ़ की वास्तुकला में राजपूत और वास्तुशास्त्र के तत्व शामिल हैं। किले में सात विशाल प्रवेश द्वार, बादल महल (सबसे ऊंचा स्थान), जलाशय, बगीचे और 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें जैन और हिंदू मंदिर शामिल हैं।

    रक्षा के लिए अनूठा डिज़ाइन:किले की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इन पर आठ घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। इसके अलावा, किले में जल प्रबंधन की उन्नत प्रणाली थी, जिससे आपातकालीन परिस्थितियों में भी पानी की कमी नहीं होती थी।

    कुंभलगढ़ को अजेय बनाने के कारण:

    किला अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई पर स्थित था, समुद्र तल से लगभग 1,100 मीटर की ऊंचाई पर। यह स्थान दुश्मनों के लिए कठिनाई पैदा करता था क्योंकि उन्हें किले तक पहुंचने के लिए पहाड़ों और घने जंगलों को पार करना पड़ता था। किले तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग कठिन घाटियों और पहाड़ी दर्रों से होकर गुजरता था, जहां रक्षकों ने रणनीतिक रूप से निगरानी चौकियां बनाई थीं।

    कुंभलगढ़ के दीवार की मजबूती दुश्मनों को किले में प्रवेश करने से रोकने के लिए पर्याप्त थी।किले के सात विशाल प्रवेश द्वार (पोल) इसे अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते थे। ये द्वार इतने मजबूत थे कि तोपों और हथियारों के हमलों से भी इन्हें तोड़ा नहीं जा सकता था। इसके अलावा, प्रत्येक द्वार के पास निगरानी चौकियां और सुरक्षा गार्ड तैनात रहते थे।

    किले के भीतर जलाशय, तालाब और कुंड बनाए गए थे, जो आपातकालीन परिस्थितियों में लंबे समय तक रसद और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करते थे। इससे किले के रक्षक लंबे समय तक घेराबंदी झेलने में सक्षम होते थे।

    कुंभलगढ़ में युद्ध के दौरान छिपने और बचाव के लिए अनेक गुप्त सुरंगें थीं। दुश्मनों के आक्रमण के समय, किले के रक्षक इन सुरंगों का उपयोग करके किले की रक्षा करते और खुद को बचाने में सफल रहते।

    किले की ऊंचाई और कठिन चढ़ाई के कारण भारी तोपों और युद्ध सामग्री को किले तक ले जाना दुश्मनों के लिए लगभग असंभव था। दुश्मनों को किले के ऊपरी हिस्से तक पहुंचने में अत्यधिक ऊर्जा और समय लगाना पड़ता था, जो रक्षकों के लिए एक बड़ा फायदा था।मेवाड़ के शासकों का स्थानीय जनता और राजपूत योद्धाओं पर गहरा प्रभाव था। संकट के समय में आस-पास के गांवों और क्षेत्रों से राणा कुंभा को समर्थन मिलता था, जो दुश्मनों के खिलाफ किले की रक्षा में सहायक होता था।

    किले की दीवार से जुड़ी रहस्यमयी कहानी

    कुंभलगढ़ किले की दीवार से जुड़ी एक रहस्यमयी कहानी प्रचलित है। 1443 में जब महाराणा कुंभा ने इस किले का निर्माण शुरू कराया, तो बार-बार बाधाओं का सामना करना पड़ा। इन समस्याओं से परेशान होकर महाराणा ने एक संत को बुलाकर समाधान पूछा। संत ने सुझाव दिया कि दीवार का निर्माण तभी संभव होगा जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपना बलिदान देगा। यह सुनकर महाराणा कुंभा गहरी चिंता में पड़ गए।

    इसी दौरान, एक और संत ने आगे आकर अपना बलिदान देने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि वे पहाड़ी पर चलना शुरू करेंगे और जहां वे रुकेंगे, वहीं उनकी बलि चढ़ा दी जाए। संत पहाड़ी पर चलकर एक निश्चित स्थान पर रुके और उस स्थान पर उनकी बलि दी गई। संत की बलिदानस्थली पर एक स्मारक बनाया गया। इसके बाद किले की दीवार का निर्माण कार्य बिना किसी रुकावट के पूरा हुआ। यही कारण है कि कुंभलगढ़ किले की दीवार को आज भी एक महान निर्माण और बलिदान की प्रतीक के रूप में देखा जाता है।कुंभलगढ़ किला परिसर में लगभग 360 मंदिर हैं, जिनमें से 300 जैन मंदिर हैं, और बाकी हिंदू हैं।

    मेवाड़ राजपरिवार की आंतरिक कलह के दौर में, चित्तौड़गढ़ में स्वामिभक्त पन्ना धाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर राजकुमार उदयसिंह की जान बचाई। इसके बाद उदयसिंह को कुंभलगढ़ में छिपाकर पाला गया। यही नहीं, इसी दुर्ग में राजकुमार उदयसिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक भी हुआ। वर्ष 1537 में उदयसिंह ने हत्यारे बनवीर को पराजित कर चित्तौड़ पर पुनः अपना अधिकार स्थापित किया।

    कुंभलगढ़ का ऐतिहासिक महत्व इससे भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दुर्ग में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। किले के रनिवास में वह कक्ष, जहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ, आज भी मौजूद है। गोगुंदा में राजतिलक के बाद महाराणा प्रताप कुंभलगढ़ लौट आए और यहीं से मेवाड़ का शासन चलाने लगे।

    इतिहास के अनुसार, महाराणा कुंभा से लेकर महाराजा राज सिंह तक, मेवाड़ पर हुए हमलों के दौरान राजपरिवार इसी दुर्ग को अपना शरणस्थल बनाता था। कुंभलगढ़ न केवल एक किले के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि यह मेवाड़ के वीरों के इतिहास और गौरव का प्रतीक भी है। पृथ्वीराज चौहान और महाराणा सांगा का बचपन भी इसी किले में बीता, जो इसकी ऐतिहासिक विरासत को और समृद्ध करता है।

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