
Kuno mei Racha Ithihas
History made in Kuno: चीतों की लगातार घटती संख्या भारत के लिए लंबे समय से एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कभी भारतीय जंगलों में तेजी से दौड़ते इन खूबसूरत शिकारी जीवों की दहाड़ मिलों दूर तक सुनाई देती थी, लेकिन समय के साथ शिकार, आवासों की कमी और मानव हस्तक्षेप के कारण चीता लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया।अभी भारत में लगभग 27 चीते हैं। इनमें से 11 विदेशी चीतें दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया से लाये गए हैं और 16 चीतें भारत में पैदा हुए हैं। वहीं इस दिशा में किए जा रहे संरक्षण के प्रयास अब अपना रंग दिखाने लगे हैं। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भारत में जन्मी मादा चीता ‘मुखी’ ने गुरुवार को पांच स्वस्थ शावकों को जन्म देकर देश में वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक नई कहानी लिख दी है। यह पहली बार है जब भारत की धरती पर जन्मे किसी चीते ने यहीं प्रजनन किया है। यह उपलब्धि न केवल ‘प्रोजेक्ट चीता’ की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह भी साबित करती है कि भारत का वन्य परिवेश चीतों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए अनुकूल होता जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसे हाल के इतिहास की ऐतिहासिक घटना बताते हुए कहा कि भारत में जन्मे चीते का सफल प्रजनन, भारतीय आवासों में इस प्रजाति के अनुकूलन और उसके स्वास्थ्य का मजबूत संकेत है। उन्होंने आश्वस्त किया कि यह घटनाक्रम एक आत्मनिर्भर और आनुवंशिक रूप से विविध चीता आबादी बनाने के सपने को मजबूत करता है। मुख्यमंत्री मोहन यादव और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इसे पूरे देश के लिए गौरव का क्षण बताया।
मुखी की कहानी – संघर्ष से उपलब्धि तक
मुखी का जन्म 29 मार्च 2023 को नामीबिया से भारत लाई गई मादा चीता ज्वाला के यहां हुआ था। यह वही दौर था जब भारतीय गर्मी और बदलते मौसम ने कई नवजात चीतों को चुनौतियों के बीच डाल दिया था। मुखी के तीन भाई-बहन कठिन परिस्थितियों के चलते नहीं बच सके, लेकिन मुखी को वन्यजीव विशेषज्ञों और वेटरिनरी टीम ने विशेष देखभाल के साथ पाल-पोसकर सुरक्षित रखा। जन्म के बाद उसकी मां उसे लंबे समय तक अकेला छोड़ देती थी, ऐसे में विशेषज्ञों ने उसे हाथ से दूध पिलाया और उसे जीवित रखने के लिए नियंत्रित माहौल में रखा। धीरे-धीरे उसे प्राकृतिक वातावरण में आगे बढ़ने के लिए तैयार किया गया। उसकी शिकार पकड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए उसके आस-पास जीवित खरगोश छोड़े जाते थे, जिससे वह प्राकृतिक प्रवृत्तियों को सीख सके। आज उसी मुखी ने 33 महीने की उम्र में पांच शावकों को जन्म देकर दिखा दिया कि भारतीय वातावरण में पली-बढ़ी चीता भी खुद को अनुकूलित कर सफलतापूर्वक प्रजनन कर सकती है।
प्रोजेक्ट चीता – भारत में चीतों की वापसी का सफर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से आए आठ चीतों को कुनो में छोड़कर ‘प्रोजेक्ट चीता’ की औपचारिक शुरुआत की थी। लंबे अंतराल के बाद यह पहला अवसर था जब भारत ने चीतों को पुनः अपनी भूमि पर बसाने के लिए संगठित प्रयास किया था। बाद में दक्षिण अफ्रीका से भी चीतों को लाया गया। इस परियोजना का सबसे बड़ा लक्ष्य भारत में एक ऐसी स्थायी चीता आबादी तैयार करना है जो लंबे समय तक खुद को बनाए रख सके और आनुवंशिक रूप से भी मजबूत रहे। इस परियोजना की शुरुआत से अब तक भारत में करीब 29 चीते मौजूद हैं, जिनमें जंगली और भारत में जन्मे दोनों शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, मुखी का सफल प्रजनन यह साबित करता है कि चीतों ने भारतीय जलवायु, भोजन श्रृंखला और प्राकृतिक पर्यावरण को स्वीकार कर लिया है और यहां स्वस्थ रूप से विकास कर सकते हैं। यह उपलब्धि उन सभी वैज्ञानिक प्रयासों की सफलता है, जिनके आधार पर चीतों को भारतीय भूमि पर वापस लाने की योजना बनाई गई थी।
भारत में शावकों का जन्म क्यों है महत्वपूर्ण?
मुखी द्वारा पांच शावकों का जन्म केवल एक जैविक घटना भर नहीं है, बल्कि यह भारत में चीता संरक्षण की दिशा में एक ठोस प्रगति है। इससे पहले भारत में लाए गए विदेशी चीतों द्वारा तो शावकों का जन्म हुआ था, लेकिन किसी भारत में जन्मे चीते ने यहां प्रजनन किया यह पहली बार हुआ है। यह उपलब्धि संकेत देती है कि भारत में जन्मे चीते अब पूरी तरह प्राकृतिक चक्र का हिस्सा बनकर आगे बढ़ सकते हैं। यह प्रजनन इस बात को भी दर्शाता है कि भारत का पारिस्थितिकी तंत्र चीतों की जरूरतों के अनुरूप ढल रहा है। इससे यह उम्मीद और प्रबल होती है कि आने वाले वर्षों में भारत चीतों की एक मजबूत और स्वावलंबी आबादी विकसित करने में सफल हो सकेगा।
कूनो की चुनौतियां और आगे की राह
हालांकि मुखी का यह जन्म संरक्षण की सफलता है, लेकिन आगे की राह भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि, शावकों का शुरुआती जीवन हमेशा जोखिम से भरा होता है। तापमान में उतार-चढ़ाव, शिकार की उपलब्धता, प्राकृतिक शिकारी और वन्य परिवेश में अनिश्चितताएं हमेशा नवजात चीतों के लिए चुनौती रहती हैं। संरक्षकों को सुनिश्चित करना होगा कि शावकों को सुरक्षित वातावरण मिले और उनकी वृद्धि लगातार निगरानी में रहे। इसके अलावा, आनुवांशिक विविधता बनाए रखना भी ज़रूरी है। अगर प्रजनन केवल सीमित चीतों के बीच होता रहा, तो आगे चलकर कमजोर जीन पूल का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए विदेशी चीतों की नई खेप और अन्य क्षेत्रों में चीता पुनर्स्थापन की योजना भी जारी रखनी होगी। भारत के भीतर चीतों के लिए नए आवास विकसित करना जैसे राजस्थान का मुकुंदरा हिल्स या मध्य भारत के अन्य उपयुक्त क्षेत्र बहुत जरूरी होगा ताकि आबादी का विस्तार स्वाभाविक रूप से हो सके। मुखी द्वारा पांच शावकों का जन्म भारत के लिए केवल संरक्षण की उपलब्धि नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रतिप्रतिबद्धता का भी प्रतीक बन चुका है।


