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    Home » Lingaraj Mandir Ka Itihas: बहुत फेमस है भगवान शिव का लिंगराज मंदिर, पढ़ें संक्षिप्त इतिहास
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    Lingaraj Mandir Ka Itihas: बहुत फेमस है भगवान शिव का लिंगराज मंदिर, पढ़ें संक्षिप्त इतिहास

    By March 10, 2025No Comments9 Mins Read
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    Lingaraj Mandir Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

    Lingaraj Mandir Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple: भुवनेश्वर (Bhuvneshwar) जिसे ‘मंदिरों का शहर’ कहा जाता है, अपने प्राचीन और भव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है, और लिंगराज मंदिर इसका सबसे प्रमुख आकर्षण है। ओडिशा (Odissa) की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित यह भव्य शिव मंदिर 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा ययाति केशरी द्वारा निर्मित किया गया था और कलिंग स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का प्रतीक है।

    यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहाँ ‘लिंगराज’ या ‘त्रिभुवनेश्वर’ के रूप में पूजा जाता है। इसकी भव्यता, अद्भुत शिल्पकारी और गहन धार्मिक महत्व इसे न केवल ओडिशा बल्कि संपूर्ण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान दिलाते हैं। इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु के हरि-हर स्वरूप की भी पूजा होती है, जो शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वय को दर्शाता है।

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जिससे इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। लिंगराज मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का जीवंत उदाहरण भी है।

    लिंगराज मंदिर का संक्षिप्त इतिहास – History Of Lingaraj Temple

    लिंगराज मंदिर(Lingaraj Temple) का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा ययाति केसरी द्वारा किया गया था। हालांकि, कुछ भागों का निर्माण 6वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। यह मंदिर भुवनेश्वर के विकास के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसे प्राचीन ग्रंथों में एकाम्र क्षेत्र कहा गया है।

    ऐतिहासिक रूप से, यह मंदिर शिव और विष्णु दोनों की पूजा के लिए जाना जाता है। मुख्य देवता “हरिहर” के रूप में पूजित हैं, जो शिव और विष्णु का संयुक्त रूप है। गंगा वंश के शासनकाल में भगवान जगन्नाथ की पूजा बढ़ने लगी, जिससे विष्णु के प्रति श्रद्धा भी इस मंदिर में सम्मिलित हुई।

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    मंदिर के निर्माण में कई राजाओं का योगदान रहा। 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजाओं ने इसे और विस्तारित किया। इसके अलावा, विभिन्न शिलालेखों से पता चलता है कि कई राजाओं ने इस मंदिर को दान दिया था।

    लिंगराज मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा – The mythological story related Lingaraj Temple

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताया कि भुवनेश्वर (एकाम्र क्षेत्र) उन्हें काशी से अधिक प्रिय है। पार्वती ने एक साधारण गाय चराने वाली महिला का रूप धारण कर इस क्षेत्र का भ्रमण किया। इस दौरान उन्हें लिट्टी और वसा नामक दो भयंकर राक्षसों ने परेशान किया जिसके बाद देवी पार्वती ने इसी स्थान पर देवी पार्वती ने दोनों राक्षसों का वध किया था। युद्ध के बाद जब देवी को प्यास लगी, तो भगवान शिव ने एक कूप (कुंड) बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान देने के लिए बुलाया। इसी से बिंदुसागर सरोवर की उत्पत्ति हुई, जो आज भी लिंगराज मंदिर के निकट स्थित है और श्रद्धालुओं के लिए एक पूजनीय स्थल है।

    सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर पूर्वोत्तर भारत में शैव सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र रहा है। कहा जाता है कि मध्ययुग में यहाँ सात हजार से अधिक मंदिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब लगभग पाँच सौ ही शेष बचे हैं।

    लिंगराज मंदिर की वास्तुकला – Architecture Of Temple

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    मंदिर की ऊँचाई 180 फीट है, जो इसे भुवनेश्वर का सबसे ऊँचा मंदिर बनाती है। इसका निर्माण मुख्यतः सैंडस्टोन (बलुआ पत्थर) से किया गया है। और इस पर की गई नक्काशी उत्कृष्ट शिल्पकला को दर्शाती है। लिंगराज मंदिर कलिंग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है और इसे ओडिशा के सबसे भव्य मंदिरों में गिना जाता है। लिंगराज मंदिर का परिसर विशाल है और इसमें कई छोटे-बड़े मंदिर शामिल हैं। इसकी प्रमुख संरचना चार भागों में विभाजित है।

    • विमान (गर्भगृह)-यह मंदिर का मुख्य भाग है, जहाँ भगवान लिंगराज (शिवलिंग) स्थित हैं।
    • जगमोहन (मंडप)-यह एक बड़ा हॉल है, जहाँ श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं।
    • नाटमंडप (नृत्य मंडप) – यहाँ भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
    • भोग मंडप – यहाँ भक्तों के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है।
    • वास्तुकला की विशेषताएँ – Architectural Features of Temple
    • मंदिर के शिखर पर कलश और आमलक लगे हुए हैं, जो पारंपरिक ओडिशी मंदिर स्थापत्य शैली का प्रतीक हैं।
    • दीवारों पर संगमरमर और बलुआ पत्थर की बारीक़ नक्काशी है, जिसमें देवी-देवताओं, अप्सराओं, मिथकीय जीवों और विभिन्न पौराणिक कथाओं के दृश्य अंकित हैं।
    • मंदिर के चारों ओर विभिन्न छोटे-बड़े 150 से अधिक मंदिर स्थित हैं, जिनमें भगवान गणेश, कार्तिकेय और भगवान विष्णु के हरि-हर स्वरूप की मूर्तियाँ स्थापित हैं।

    बिंदुसागर सरोवर – Bindusagar Lake

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    मंदिर के निकट स्थित बिंदुसागर सरोवर को अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर का जल विभिन्न पवित्र नदियों के जल से मिलकर बना है। भक्तों का विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

    लिंगराज मंदिर का धार्मिक महत्त्व – Religious Significance of Temple

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    History Of Lingaraj Temple (Image Credit-Social Media)

    लिंगराज मंदिर का धार्मिक महत्त्व लिंगराज मंदिर न केवल भुवनेश्वर का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि यह पूरे भारत में शैव और वैष्णव संप्रदायों के संगम का प्रतीक भी है। भगवान शिव के “लिंगराज” (त्रिभुवनेश्वर) स्वरूप की यहाँ पूजा की जाती है, जो उन्हें तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) का स्वामी दर्शाता है।

    लिंगराज मंदिर की सबसे खास विशेषता यह है कि यहाँ केवल भगवान शिव की ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के साथ उनके हरि-हर स्वरूप की भी पूजा की जाती है। यह मंदिर शैव और वैष्णव भक्तों के बीच आध्यात्मिक एकता का संदेश देता है।

    भुवनेश्वर प्राचीन काल से ही शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र रहा है। ऐसा कहा जाता है कि मध्यकाल में यहाँ 7,000 से अधिक शिव मंदिर थे, जिनमें से अब लगभग 500 मंदिर शेष हैं। लिंगराज मंदिर इस शैव परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

    हिंदू धर्म में मान्यता है कि लिंगराज मंदिर में दर्शन और पूजा करने से भक्त को मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव यहाँ निवास करते हैं और उनकी कृपा से सभी भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

    लिंगराज मंदिर में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार और उत्सव – Major festivals and celebrations

    लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है, जहाँ सालभर विभिन्न हिंदू त्योहार और उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं। ये पर्व न केवल आध्यात्मिक भक्ति और श्रद्धा को दर्शाते हैं, बल्कि ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का भी प्रतीक हैं।

    महाशिवरात्रि:- महाशिवरात्रि लिंगराज मंदिर का सबसे प्रमुख त्योहार है, जिसे अत्यंत श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया जाता है। भगवान लिंगराज (शिव) की पूजा रात्रि भर चलती है, जिसमें चार प्रहर की विशेष आरती होती है। इस दिन मंदिर में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं।

    चंदन यात्रा:- चंदन यात्रा लिंगराज मंदिर का सबसे लंबा चलने वाला उत्सव है, जो 22 दिनों तक चलता है। भगवान लिंगराज की मूर्ति और अन्य देवी-देवताओं को चंदन का लेप किया जाता है और भगवान लिंगराज की प्रतिमा को बिंदुसागर सरोवर में नौका विहार कराया जाता है। इस दौरान भजन-कीर्तन और ओडिशा की पारंपरिक नृत्य प्रस्तुतियाँ होती हैं।

    रथ यात्रा :- भगवान लिंगराज की विशेष रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में “अश्मा रथ उत्सव” कहा जाता है। इस दिन भगवान लिंगराज (शिव) को भगवान विष्णु के साथ मिलाकर “हरि-हर” रूप में पूजा जाता है। भक्तगण रस्सियों से रथ खींचते हैं, जिसे पवित्र कार्य माना जाता है और इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

    श्रावण मास :- श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है और इस दौरान हर सोमवार को मंदिर में विशेष पूजन होता है।

    प्रवेश और नियम

    • लिंगराज मंदिर में केवल हिंदू श्रद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति है।
    • गैर-हिंदू पर्यटकों के लिए दीवार के बाहर एक मंच बनाया गया है, जहां से वे बाहरी संरचना देख सकते हैं।
    • मंदिर में प्रवेश के लिए परंपरागत भारतीय परिधान पहनना अनिवार्य है।
    • मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी और मोबाइल फोन के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध है।
    • दर्शन के लिए मंदिर प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 3:30 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है।

    लिंगराज मंदिर का पर्यटन महत्व – Tourism Significance of Temple

    लिंगराज मंदिर न केवल एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, बल्कि यह ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक भी है। अपनी भव्य वास्तुकला, आध्यात्मिक शांति और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण यह मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। इसकी अद्भुत शिल्पकला, धार्मिक महत्ता और दिव्य वातावरण इसे एक अनूठा पर्यटन स्थल बनाते हैं, जहाँ भक्तों और इतिहास प्रेमियों को समान रूप से आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है।

    लिंगराज मंदिर कैसे पहुँचे – How to reach Lingaraj Temple

    हवाई मार्ग :- भुवनेश्वर का बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Biju Patnaik International Airport) लिंगराज मंदिर से सिर्फ 4-5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।हवाई अड्डे से टैक्सी, ऑटो या कैब लेकर 10-15 मिनट में मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।

    रेल मार्ग:- भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन से लिंगराज मंदिर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे टैक्सी या ऑटो रिक्शा से पहुंचा जा सकता है।

    सड़क मार्ग:- भुवनेश्वर शहर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-16) से जुड़ा हुआ है, जिससे भारत के विभिन्न हिस्सों से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। ओडिशा राज्य परिवहन (OSRTC) की बसें और प्राइवेट वॉल्वो बसें भुवनेश्वर के लिए नियमित रूप से उपलब्ध हैं। शहर के किसी भी कोने से ऑटो, टैक्सी और स्थानीय बसों द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।

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