
Bihar Famous Dish Litti-Chokha History
Bihar Famous Dish Litti-Chokha History
Bihar Famous Dish Litti-Chokha History: उपलों की मध्यम आंच पर सोंधी ख़ुशबू से लबरेज़ सिंकती लिट्टियां साथ में तड़का लगाती सिलबट्टे पर पीसी धनिया, टमाटर, लहसुन की चटनी और चोखे का चटकीला स्वाद भला कौन नहीं चखना चाहेगा। ये वो भोजन है जो सिर्फ पेट ही नहीं भरता बल्कि खासतौर से सर्दियों के मौसम में अलावा बनकर राहगीरों से लेकर जीवजंतुओं तक के लिए कड़कती ठंड में गर्माहट देने का भी जरिया बन जाता है। अक्सर आपको खासतौर से बिहार में तड़के ही ऐसा नजारा देखने को जरूर मिल जाएगा। जहां कोयले या उपलों की आंच पर तैयार होते इस खास व्यंजन की खुशबू आपको स्वाद चखने को बेचैन कर देगी। वैसे तो भारत का हर व्यंजन अपनी विविधता और स्वाद की वजह से विश्वभर में मशहूर हैं। हर राज्य की अपनी खास डिश होती है, जो न केवल स्वाद में लाजवाब होती है, बल्कि संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक होती है। इसी कड़ी में बिहार का लिट्टी-चोखा अपनी अलग पहचान बना चुका है। जुबां के साथ जेब के लिए भी मुफीद इस व्यंजन के चाहे मजदूर हो या बड़े से बड़ा अधिकारी, हर उम्र और वर्ग के लोग दीवाने हैं। स्वाद ऐसा कि एक बार जुबां पर चढ़ गया तो फिर चिर स्थाई हो जाता है। यही वजह है कि न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी लोग लिट्टी-चोखा के स्वाद का आनंद लेते हैं। यह व्यंजन बिहार की मिट्टी, संस्कृति और परंपरा के साथ इतिहास से भी गहरा जुड़ाव रखता है।
आइए जानते हैं बिहार के सबसे लोकप्रिय व्यंजन लिट्टी-चोखा से जुड़े इतिहास के बारे में विस्तार से –
मगध काल से हुई थी लिट्टी-चोखा की शुरुआत
इतिहास में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक माना जाता है कि लिट्टी-चोखा की शुरुआत मगध काल में हुई। उस समय मगध एक विशाल साम्राज्य था। जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज का पटना) थी। युद्ध और लंबी यात्राओं के दौरान सैनिकों को हल्का, जल्दी बनने वाला और लंबे समय तक खराब न होने वाला भोजन चाहिए होता था। लिट्टी-चोखा इन सभी जरूरतों को पूरा करता था। लिट्टी के अंदर भरा सत्तू प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्रोत होता है। साथ ने देसी घी और चोखा इसमें स्वाद और पोषण का तड़का लगाता है। सैनिक इसे अपने साथ ले जाते थे क्योंकि इसे पैक करना आसान था और खाने के बाद युद्ध या सफर के दौरान लंबे समय के लिए ऊर्जा मिल जाती थी।
स्वतंत्रता संग्राम में भी रहा है लिट्टी-चोखा का योगदान
इतिहास में यह भी मिलता है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने जब अंग्रेजों से टक्कर ली और यह युद्ध लंबे समय तक चला, तब इनकी सेनाओं में शामिल सैनिकों के लिए पेट भरने के विकल्प के तौर पर लिट्टी-चोखा ही उनका पसंदीदा भोजन बना। यह व्यंजन युद्धभूमि में सैनिकों की ताकत बढ़ाने और भूख शांत करने के लिए बेहतर माना जाता था। लिट्टी-चोखा की बनावट और पोषण इसे युद्ध और लंबी यात्राओं के लिए आदर्श बनाते थे
मुगल काल में लिट्टी-चोखा
मुगल काल में भी लिट्टी-चोखा का जिक्र मिलता है। उस समय शाही रसोइयों के व्यंजन मुख्यतः मांसाहारी होते थे, लेकिन लिट्टी-चोखा ने अपनी अलग जगह बनाई। इसे मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी बड़े स्वाद से खाया जाता था और धीरे-धीरे यह आम जनता के बीच भी लोकप्रिय होने लगा। समय के साथ इसमें नए प्रयोग हुए और आज यह हर शहर की सड़कों के किनारे बने खोमचों से लेकर बड़े-बड़े रेस्तरां और होटलों में आसानी से उपलब्ध मिलता है।
लिट्टी-चोखा स्वाद के साथ स्वास्थ्य के फायदे
लिट्टी-चोखा सिर्फ स्वाद में ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य में भी फायदेमंद है। लिट्टी का मुख्य हिस्सा सत्तू होता है, जो प्रोटीन, फाइबर और मिनरल्स से भरपूर होता है और पाचन तंत्र के लिए भी अच्छा है। लिट्टी खाने से शरीर को लंबे समय तक ऊर्जा मिलती है, जिससे यह लंबे काम या यात्रा के लिए आदर्श भोजन बन जाता है। चोखा आलू, बैंगन, टमाटर से बनाया जाता है। जिसमें विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं। पारंपरिक रूप से लिट्टी को तल कर नहीं बल्कि सेंककर तैयार किया जाता है, जिससे यह स्वास्थ्यवर्धक विकल्प बनता है।
बिहार की सांस्कृतिक विरासत में रचा-बसा है लिट्टी-चोखा
लिट्टी-चोखा सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक विरासत भी बन चुका है। यह व्यंजन ग़रीबी और संघर्ष के समय में भी लोगों के जीवन का हिस्सा रहा। लंबे समय से यह भोजन मजदूरों, किसानों और यात्रियों के लिए ताकत और संतोष का प्रतीक रहा। आज के समय में लिट्टी-चोखा के स्टॉल शहर-शहर में लोकप्रिय हैं और विदेशों में भी भारतीय रेस्त्रां इसे मेन्यू में शामिल करते हैं। इसकी लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि यह व्यंजन केवल स्वाद नहीं बल्कि बिहार की संस्कृति, सरलता और परंपरा की पहचान बन चुका है।
यही वजह है कि लिट्टी-चोखा आज न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत और विश्वभर में लोकप्रिय है। इसका इतिहास मगध काल से शुरू होकर मुगल काल तक फैला और आज यह स्ट्रीट फूड के रूप में बहुत ही कम खर्च में लोगों की भूख और स्वाद दोनों को शांत करता है।


