
Maharajganj Tourism Lehra Devi Dham
Maharajganj Tourism Lehra Devi Dham
Maharajganj Tourism: महराजगंज जनपद का गठन वर्ष 1989 में गोरखपुर जिले से अलग करके किया गया। यह जनपद इंडो–नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है; उत्तर में नेपाल, पूर्व में कुशीनगर एवं बिहार का पश्चिम चंपारण, दक्षिण में गोरखपुर और पश्चिम में सिद्धार्थनगर व संतकबीरनगर की सीमाएँ मिलती हैं।
महराजगंज अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, बौद्ध–जैन अवशेषों, देवी–धामों, घने जंगलों और सीमापार व्यापार के लिए जाना जाता है। जिला तराई क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है और धान, गन्ना, गेहूँ व दलहन की भरपूर खेती होती है।
जनपद में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ नारायणी / बड़ी गंडक, छोटी गंडक, राप्ती, चंदन, प्यास, घोंघी एवं डंडा हैं। नारायणी (बड़ी गंडक) नदी के किनारे बना बी–गैप एवं उससे जुड़ा बाँध तंत्र उत्तर प्रदेश और बिहार के सिंचाई तंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है और यहाँ का प्राकृतिक जल–दृश्य पर्यटन की दृष्टि से आकर्षण बन रहा है।
जिले में फर्नीचर कारोबार प्रसिद्ध है। यहाँ बड़े पैमाने पर फर्नीचर के उत्पाद तैयार किए जाते हैं और उनकी सप्लाई न केवल जिले में बल्कि प्रदेश से बाहर भी की जाती है। थारू और मुसहर जैसी जनजातियाँ परंपरागत रूप से लकड़ी, बांस और वन–उत्पादों पर आधारित शिल्प में जुड़ी रही हैं, जिसके कारण महराजगंज का फर्नीचर एवं लकड़ी–उद्योग धीरे–धीरे पर्यटन और बाज़ार–दोनों स्तरों पर पहचान बना रहा है।
सीमा–जिला होने के कारण सोनौली अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से होकर रोज़ाना बड़ी संख्या में पर्यटक, तीर्थयात्री और कारोबारी नेपाल जाते–आते हैं, जिससे होटल, लॉज, ट्रैवल एजेंसी और परिवहन–सेवा जैसे आधुनिक सेवा–उद्योग भी यहाँ तेज़ी से विकसित हो रहे हैं।
प्रमुख धार्मिक, ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थल
• प्राचीन भगवान जगन्नाथ का मंदिर, बधरा महंत
यह मंदिर नारायणी नहर के दाएँ किनारे, गोरखपुर–महराजगंज मार्ग पर शाहपुर से लगभग 7 किमी दूर बधरा महंत गाँव में स्थित है। लोक–मान्यता है कि 18वीं शताब्दी के अंत में वैष्णव संत रामानुजदास जगन्नाथपुरी से मुक्तिनारायण (नेपाल) की यात्रा के दौरान यहाँ ठहरे, तब स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने यहीं विराजमान होने की आज्ञा दी। उसी के बाद इस प्राचीन मंदिर की स्थापना हुई और आज भी यहाँ श्रीजगन्नाथ रथयात्रा, चंदन–यात्रा, झूलोत्सव और कृष्ण जन्माष्टमी बड़े उत्साह से मनाई जाती हैं।
• लेहड़ा देवी मंदिर (अद्रवनवासिनी शक्तिपीठ)
फरेंदा (अनंदनगर) क्षेत्र के निकट घने जंगलों के बीच स्थित यह शक्तिपीठ महराजगंज का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है। मान्यता है कि महाभारत काल में वनवास/अज्ञातवास के दौरान Pandav यहीं रुके थे और अर्जुन ने वनदेवी के रूप में माँ दुर्गा की विशेष उपासना की थी। नवरात्र के दोनों पर्वों पर यहाँ विशाल मेले और अखंड ज्योति के दर्शन के लिए दूर–दूर से श्रद्धालु आते हैं।
• कटहारा शिवलिंग
जिला मुख्यालय से पश्चिम की ओर कटहारा गाँव के पास ऊँचे टीलों पर काले पत्थर से बने दो प्राचीन शिवलिंग स्थित हैं। एक शिवलिंग पर हाल के वर्षों में मंदिर का निर्माण हो चुका है, जबकि दूसरा आज भी खुले आकाश के नीचे पूजित होता है। शिवरात्रि पर यहाँ का वार्षिक मेला आसपास के ग्रामीण अंचल का बड़ा सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है।
• बनार सियागढ़ (वनरसिया कला)
फरेंदा–सोनौली हाईवे के निकट स्थित इस क्षेत्र में प्राचीन टीले, तलैया, प्राचीन शिवलिंग और विष्णु विग्रह के अवशेष मिले हैं। कई विद्वान इसे वीर–काव्य नायक “आल्ह–उदल” और सैय्यद बरनस के किले से जोड़कर देखते हैं; यहाँ का शिवरात्रि मेला साम्प्रदायिक सद्भाव और लोक–संस्कृति का जीवंत उदाहरण है।
• सोनाड़ी देवी मंदिर, चौक वन क्षेत्र
घने बरगद के प्राचीन वृक्षों, टीलेनुमा भू–आकृति और तालाबों से घिरा यह स्थल एक ओर शैव–शक्ति उपासना का केंद्र है, दूसरी ओर बौद्ध “श्रमानेर” परंपरा से भी जोड़ा जाता है। यहाँ स्थित गोरखनाथी मठ और पुरानी तप–कुटियाँ इस क्षेत्र की योग–साधना परंपरा की झलक देती हैं।
• प्राचीन शिव मंदिर, इतहिया
निचलौल तहसील मुख्यालय से लगभग 13 किमी दूर स्थित यह शिवालय आधुनिक निर्माण (1960 के दशक) होते हुए भी स्थानीय आस्था का बड़ा केंद्र है। श्रावण मास और शिवरात्रि पर यहाँ विशेष भीड़ रहती है और मुंडन, विवाह व रुद्राभिषेक जैसे संस्कारों के लिए यह मंदिर बेहद शुभ माना जाता है।
• सोहगीबरवा वन्यजीव अभयारण्य
महराजगंज और कुशीनगर जिलों में फैला यह अभयारण्य वर्ष 1987 में निर्मित किया गया था।
लगभग 428 वर्ग किलोमीटर में फैले सोहगीबरवा को तराई पारिस्थितिकी तंत्र का अनूठा नमूना माना जाता है। यहाँ के 75% क्षेत्र में साल के घने जंगल हैं, शेष भाग में घास के मैदान, गीली भूमि और बांस–वन पाए जाते हैं।
यहाँ बाघ, तेंदुआ, हिरण, नीलगाय, जंगली बिल्ली, सियार, जंगली सूअर, साही आदि के साथ–साथ सैकड़ों प्रजाति के देशी–विदेशी पक्षी (ब्राह्मणी बतख, कॉर्मोरेंट, बगुले, आइबिस आदि) देखे जा सकते हैं, इसलिए वन–सफारी, बर्ड–वॉचिंग और नेचर–ट्रेल्स के लिए यह तेजी से उभरता हुआ गंतव्य है।
• अंतरराष्ट्रीय सीमा – सोनौली
सोनौली भारत–नेपाल के बीच सबसे व्यस्त स्थलीय बॉर्डर–पोस्ट में से एक है, जहाँ प्रतिदिन हज़ारों पर्यटक और ट्रक–वाहन आवाजाही करते हैं। यहाँ का प्रवेश–द्वार, कस्टम–मार्केट, होटल और लॉज मिलकर सीमांत–पर्यटन और व्यापारिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र बना चुके हैं। नेपाल के लुम्बिनी, पोखरा, चितवन आदि गंतव्यों के लिए यही मुख्य सड़क मार्ग है, इसलिए महराजगंज “गेटवे टू नेपाल” के रूप में भी पहचाना जा रहा है।
उद्योग, संस्कृति और आधुनिक पर्यटन
• फर्नीचर उद्योग –
पारंपरिक बढ़ईगिरी और आधुनिक मशीन–आधारित इकाइयों के कारण महराजगंज का फर्नीचर उद्योग पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में जाना जाता है; यहाँ से तैयार बेड, टेबल, अलमारी, दरवाज़े–खिड़कियाँ आदि गोरखपुर, बस्ती, देवरिया और बिहार तक भेजे जाते हैं।
• कृषि और सीमापार व्यापार –
गन्ना, धान और सब्ज़ी–उत्पादन के साथ–साथ सोनौली मार्ग से होने वाला सीमापार व्यापार स्थानीय बाज़ारों – फ़रेन्दा, निचलौल, नौतनवाँ और महाराजगंज सदर – को बड़ा थोक मंडी–केंद्र बना रहा है।
• लोक–संस्कृति –
बोली के स्तर पर यहाँ भोजपुरी का प्रभाव प्रमुख है; रामलीला, बिरहा, कजरी, फगुआ और झांकी–यात्राएँ स्थानीय सांस्कृतिक जीवन की पहचान हैं। नवरात्र, चैत्र–रामनवमी, शिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर लेहड़ा देवी, जगन्नाथ मंदिर, सोनाड़ी देवी और अन्य धामों में लगने वाले मेले धार्मिक–पर्यटन के साथ–साथ स्थानीय हस्तशिल्प व व्यंजन–संस्कृति को भी आगे बढ़ाते हैं।
पहुँच मार्ग
महराजगंज तक सड़क, रेल और वायु मार्ग से सुविधाजनक आवागमन उपलब्ध है –
• सड़क मार्ग :
महाराजगंज एनएच 27 और एनएच 730 जैसे राष्ट्रीय राजमार्गों से गोरखपुर, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर एवं लखनऊ से जुड़ा है; साथ ही यूपी एसएच 1, यूपी एसएच 1ए और यूपी एसएच 81 द्वारा जनपद के भीतर मुख्य नगरों और नेपाल सीमा तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
• रेल मार्ग :
महराजगंज रेलवे स्टेशन से गोरखपुर, नौतनवाँ, निचलौल आदि के लिए नियमित रेल–सेवाएँ उपलब्ध हैं। सिसवा, फ़रेन्दा (अनंदनगर) और नौतनवाँ जैसे निकटवर्ती स्टेशन सोहगीबरवा अभयारण्य तथा सीमा–क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए मुख्य जंक्शन का काम करते हैं।
• वायु मार्ग :
निकटतम हवाई अड्डा गोरखपुर है, जो महराजगंज से लगभग 76 किमी दूर स्थित है और दिल्ली, मुंबई सहित प्रमुख महानगरों से जुड़ा हुआ है। www.uptourism.gov.in


