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    Home » Nalanda Vishwavidyalaya Ka Itihas: स्वर्णकाल से लेकर विनाशकाल, नालंदा विश्वविद्यालय का क्या है इतिहास?
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    Nalanda Vishwavidyalaya Ka Itihas: स्वर्णकाल से लेकर विनाशकाल, नालंदा विश्वविद्यालय का क्या है इतिहास?

    By January 26, 2025No Comments7 Mins Read
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    Nalanda Vishwavidyalaya Ka Itihas (Photo – Socia Media)

    Nalanda Vishwavidyalaya Ka Itihas: वर्तमान समय में, भारत से हर साल लाखों छात्र ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लगभग 800 साल पहले, दुनियाभर के हजारों छात्र भारत के एक ऐसे प्राचीन विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए लालायित रहते थे, जहां दाखिला पाना बेहद कठिन था?

    इस विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए छात्रों को कई कठोर परीक्षाओं से गुजरना पड़ता था, और इसके बावजूद हजारों में से केवल 20 प्रतिशत छात्रों को ही दाखिला मिल पाता था। हम बात कर रहे हैं भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध विश्वविद्यालय “नालंदा”(Nalanda University) की। यह वह स्थान था, जहां छात्र संस्कृत पढ़ने के लिए उत्सुक रहते थे, और यहां प्रवेश से पहले द्वारपाल स्वयं छात्रों का साक्षात्कार करता था।

    नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत और विश्व के सबसे पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है। यह विश्वविद्यालय बिहार(Bihar) राज्य के वर्तमान नालंदा जिले(Nalanda District) में स्थित था।इस विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। नालंदा विश्वविद्यालय में भारत सहित कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और अन्य देशों से छात्र ज्ञान प्राप्त करने आते थे। यहाँ शिक्षा का प्रमुख माध्यम संस्कृत था और बौद्ध धर्म, दर्शन, विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, चिकित्सा, ज्योतिष और अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती थी। इस विश्वविद्यालय में करीब 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक हुआ करते थे। 12वीं शताब्दी में, नालंदा विश्वविद्यालय को तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था।

    “नालंदा विश्वविद्यालय: प्राचीन भारत का शिक्षा केंद्र और विश्वविख्यात गौरव”

    पटना(Patna) से 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से करीब 12 किलोमीटर दूरी पर दक्षिण में आज भी विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय नालंदा के अवशेष मौजूद है। नालंदा विश्वविद्यालय, जिसे प्राचीन भारत का गौरव माना जाता है, एक समय में शिक्षा और ज्ञान का ऐसा केंद्र था, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में, 450 ई. में गुप्त वंश के महान सम्राट कुमारगुप्त प्रथम(Kumargupt First) ने की थी। यह बिहार के नालंदा जिले में स्थित था। संस्कृत में “नालंदा” का अर्थ है, “ज्ञान का दाता”। इसे दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है, जहाँ छात्रों और शिक्षकों के रहने की भी व्यवस्था थी।

    “नालंदा विश्वविद्यालय: शासकों का समर्थन और समृद्धि का सफर”

    नालंदा विश्वविद्यालय को हेमंत कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ। गुप्त वंश के पतन के बाद भी, सभी आने वाले शासकों ने नालंदा की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसे महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों से भी संरक्षण प्राप्त हुआ था। न केवल स्थानीय शासकों, बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विदेशी शासकों से भी इसे अनुदान मिला, जो इसके विकास में सहायक बने।

    नालंदा विश्वविद्यालय के विशिष्ट स्नातक, जो यहाँ से शिक्षा प्राप्त करते थे, बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। यह विश्वविद्यालय नौवीं से बारहवीं शताब्दी तक अंतरराष्ट्रीय(International) ख्याति प्राप्त कर चुका था, और यहाँ से पढ़ाई करने वाले छात्रों ने दुनिया भर में बौद्ध धर्म और भारतीय ज्ञान का प्रसार किया।

    नालंदा का विशाल स्वरुप

    यह विश्वविद्यालय अत्यंत सुनियोजित और विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ था, जो स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इस विशाल विश्वविद्यालय में व्याख्यान के लिए 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय का समावेश था।

    इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार मौजूद था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार के साथ मठों के सामने कई भव्य स्तूप और मंदिर मौजूद थे, जिनमें बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियाँ शुशोभित थीं।

    अभी तक की गई खुदाई में तेरह मठ मिले हैं और अधिक मठों के होने ही संभावना है। यह मठ एक से अधिक मंजिल के होने के साथ प्रत्येक मठ में सोने के लिए पत्थर की चौकी, दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले मौजूद थे।तथा मठ के आँगन में एक कुआँ भी था।इस विश्वविद्यालय में आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन कक्ष के अलावा सुंदर बगीचे तथा झीलों का भी समावेश था।

    इस विश्वविद्यालय में एक समय 2700 से ज्यादा अध्यापक 10 हजार से अधिक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।इस विश्वविद्यालय में भारत के अलावा कोरिया,जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के छात्र भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

    विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय

    इतिहास के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में ‘धर्म गूंज’ नामक 9 मंजिला पुस्तकालय का समावेश था, जहां एक समय 3 लाख से भी अधिक किताबें मौजूद होती थीं। इस पुस्तकालय के 9 मंजिलों में तीन भाग थे, जिनके नाम ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’ थे।

    “प्रबंधन, समितियाँ और संसाधनों का संचालन”

    नालंदा विश्वविद्यालय का प्रबंधन कुलपति या प्रमुख आचार्य द्वारा किया जाता था, जिन्हें भिक्षुओं द्वारा चुना जाता था। कुलपति दो प्रमुख समितियों के परामर्श से विश्वविद्यालय के संचालन की जिम्मेदारी संभालते थे। पहली समिति शिक्षा और पाठ्यक्रम से संबंधित कार्यों को देखती थी, जबकि दूसरी समिति विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था और प्रशासन की देखरेख करती थी। इस समिति के द्वारा दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त आय का उपयोग छात्रों के भोजन, कपड़े और आवास की व्यवस्था में किया जाता था।

    “आचार्यों की भूमिका और प्रमुख विद्वान”

    नालंदा विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य होते थे, जिनकी योग्यता के आधार पर उन्हें प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में रखा जाता था। प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में, ह्वेनसांग के समय शीलभद्र विश्वविद्यालय के प्रमुख थे, जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध थे।

    “विविध विषयों का अध्ययन और समृद्ध पाठ्यक्रम”

    नालंदा विश्वविद्यालय में महायान बौद्ध धर्म के प्रवर्तक जैसे नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग और धर्मकीर्ति की रचनाओं का गहन अध्ययन होता था। यहाँ वेद, वेदांत, सांख्य, व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र और चिकित्साशास्त्र भी पढ़ाए जाते थे। नालंदा की खुदाई में मिली काँसे की मूर्तियाँ यह संकेत देती हैं कि यहाँ धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन हुआ था। इसके अतिरिक्त खगोलशास्त्र का भी यहाँ विशेष विभाग था।

    “कठिन प्रवेश परीक्षा और आचार संहिता”

    नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी, और केवल प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही इसे पास कर सकते थे। छात्रों को तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना पड़ता था, जो विश्व में अपनी तरह का पहला उदाहरण था। इसके अलावा, शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अनिवार्य था।

    “बख्तियार खिलजी का आक्रमण और विश्वविद्यालय का विनाश”

    इतिहासकारों के अनुसार अफगानिस्तान में जन्मे तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी 1200 ईस्वी के आसपास बंगाल और बिहार पर कब्ज़ा करना चाहता था ।इस कारन खिलजी ने इन राज्यों में भारी उत्पात मचाया। 12वीं शताब्दी में ही इस अफगान आक्रमणकारी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया ।इस दौरान खिलजी ने कई बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की, तथा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया ।जिस कारन यहाँ मौजूद विशाल पुस्तकालय, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ और दुर्लभ ग्रंथ थे, आग की चपेट में आ गए ।कहा जाता है, उस समय नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में इतनी किताबें थीं की, तीन महीनों तक यह किताबे जलती रही। और इसतरह इस विनाश के साथ, नालंदा विश्वविद्यालय और उसके अद्वितीय ज्ञान का अंत हो गया।

    “ह्वेनसांग और इत्सिंग द्वारा ऐतिहासिक उल्लेख”

    नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास 7वीं शताब्दी में चीन के यात्रियों ह्वेनसांग और इत्सिंग द्वारा खोजा गया था। दोनों भारत आए और नालंदा के बारे में विस्तार से लिखा। चीन लौटने के बाद, उन्होंने इसे विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया।

    “ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक प्रमाण”

    खुदाई के दौरान यहां 1.5 लाख वर्ग फीट में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं।जहाँ सभी इमारतें लाल पत्थर से निर्मित हैं। मिले अवशेषों में मठ (विहार), मंदिर (चैत्य) ,विहार-1 परिसर की सबसे प्रमुख इमारत की दो मंजिला संरचना, भगवान बुद्ध की भग्न प्रतिमा के साथ एक छोटा सा प्रार्थनालय, परिसर का सबसे बड़ा मंदिर नं. 3 का समावेश है |

    “वर्त्तमान समय में नालंदा”

    21वीं सदी में, नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई। 2014 में इसे आधुनिक विश्वविद्यालय के रूप में फिर से स्थापित किया गया, जो नालंदा की प्राचीन परंपराओं को आगे बढ़ा रहा है। नालंदा वर्तमान समय में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल बन चुका है। यह बिहार राज्य के बिहार शरीफ जिले के पास स्थित है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर अब ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित हैं, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक और शोधार्थी आते हैं।

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