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    Home » Narmada Nadi Ki Utpatti Aur Itihas: क्यों नर्मदा नदी रह गई कुंवारी, क्या है उलटी दिशा में बहने का राज, यहां जानें मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदी के बारे में
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    Narmada Nadi Ki Utpatti Aur Itihas: क्यों नर्मदा नदी रह गई कुंवारी, क्या है उलटी दिशा में बहने का राज, यहां जानें मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदी के बारे में

    By February 1, 2025No Comments7 Mins Read
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    Madhya Pradesh Famous Narmada Nadi History

    Madhya Pradesh Famous Narmada Nadi History:�नर्मदा नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है, जिसे ‘जीवनदायिनी’ (Jeevandayani Nadi) भी कहा जाता है। यह भारत की सात पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है और मध्य प्रदेश एवं गुजरात की प्रमुख जलधारा है। नर्मदा नदी (Narmada River) का नाम संस्कृत शब्द ‘नर्म’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है आनंद। इसे ‘रेवा’ नाम से भी जाना जाता है। इस नदी का ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व बहुत अधिक है।

    भगवान शिव से हुई है नर्मदा नदी की उत्पत्ति (Narmada Nadi Ki Utpatti Kaise Hui)

    धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी का उद्गम भगवान शिव से संबंधित है। इसलिए इसे शंकर जी की पुत्री या शंकरी भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा के किनारे पाए जाने वाले पत्थर शिवलिंग के आकार के होते हैं। इन लिंग के आकार के पत्थरों को बाणलिंग या बाण शिवलिंग कहा जाता है। ये पत्थर हिंदू धर्म के लोगों द्वारा दैनिक पूजा के लिए अत्यधिक पूजनीय माने जाते हैं।

    तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजा चोल ने बनवाया था, इसमें सबसे बड़े बाणलिंग को स्थापित किया गया है।नर्मदा के किनारे कई महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल स्थित हैं जैसे अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर, महादेव मंदिर, नेमावर सिद्धेश्वर मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर और चौबीस अवतार मंदिर। ये सभी स्थान नर्मदा नदी की आध्यात्मिक महिमा को दर्शाते हैं.

    नर्मदा नदी का उद्गम स्थल (Origin of Narmada River)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अमरकंटक पहाड़ियों से होता है, जो विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 1057 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अमरकंटक हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

    नदी की भौगोलिक विशेषताएँ (Geographical Features of Narmada Nadi)

    नर्मदा नदी पश्चिमी दिशा में बहने वाली भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका प्रवाह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर गुजरता है और अंततः यह अरब सागर में गिरती है। यह नदी लगभग 1312 किलोमीटर लंबी है। अन्य भारतीय नदियों के विपरीत, यह पश्चिम की ओर बहने वाली एक महत्वपूर्ण नदी है।

    नर्मदा नदी की सहायक नदियाँ (Narmada Nadi Ki Sahayak Nadiyan)

    नर्मदा नदी की कई सहायक नदियाँ हैं, जो इसके जल प्रवाह को और समृद्ध करती हैं। इनमें प्रमुख सहायक नदियाँ हैं: बंजर नदी, शेर नदी, तवा नदी, हाथी नदी, शक्कर नदी, दुधी नदी, गोई नदी, करम नदी। इन सहायक नदियों से नर्मदा का जल प्रवाह बना रहता है। यह अपने आसपास के क्षेत्रों को सिंचित करने में सहायक होती है।

    नर्मदा नदी का प्रवाह मार्ग

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मध्य प्रदेश: नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, खंडवा, खरगोन, धार, बड़वानी और अलीराजपुर जिलों से होकर गुजरती है। यह जबलपुर के पास भेड़ाघाट में प्रसिद्ध संगमरमर की चट्टानों के बीच से बहती है।

    महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में यह नदी बहुत कम क्षेत्र में बहती है। लेकिन यहाँ यह जल संसाधन के रूप में उपयोगी है।

    गुजरात: गुजरात में प्रवेश करने के बाद यह नदी भरूच जिले में बहती हुई अरब सागर में गिरती है।

    नर्मदा नदी पर प्रमुख बाँध एवं परियोजनाएँ (Major Dams and Projects on Narmada River)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    सरदार सरोवर बाँध: यह भारत के सबसे बड़े बाँधों में से एक है और गुजरात में स्थित है। यह बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

    इंदिरा सागर बाँध: यह मध्य प्रदेश में स्थित है और जलविद्युत उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

    ओंकारेश्वर बाँध: यह भी मध्य प्रदेश में स्थित एक प्रमुख बाँध है।

    महेश्वर बाँध: यह नर्मदा नदी पर प्रस्तावित एक और महत्वपूर्ण परियोजना है।

    नर्मदा नदी का आर्थिक महत्त्व (Narmada Nadi Ka Mahatva)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    नर्मदा नदी मध्य भारत के लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत है। इस नदी के तट पर बसे कई शहर कृषि, मत्स्य पालन, उद्योग और जल परिवहन के लिए इस पर निर्भर हैं। मध्य प्रदेश और गुजरात में इस नदी के जल से बड़े पैमाने पर सिंचाई होती है।

    नर्मदा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व

    नर्मदा परिक्रमा: नर्मदा नदी की परिक्रमा हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। यह परिक्रमा लगभग तीन वर्षों में पूरी होती है।

    ओंकारेश्वर और महेश्वर: यह दो प्रसिद्ध तीर्थस्थल नर्मदा के तट पर स्थित हैं।

    भेड़ाघाट: जबलपुर के पास स्थित यह स्थान संगमरमर की चट्टानों और धुआँधार जलप्रपात के लिए प्रसिद्ध है।

    नर्मदा नदी से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दे (Environmental Issues Related To Narmada Nadi)

    जल प्रदूषण: औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट के कारण नदी का जल प्रदूषित हो रहा है।

    बाँध निर्माण से पर्यावरणीय प्रभाव: बाँधों के निर्माण से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हुआ है।

    वनों की कटाई: बाँधों और अन्य परियोजनाओं के कारण जंगलों का विनाश हुआ है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ा है।

    सरंक्षण और पुनर्वास प्रयास

    सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए कार्यरत हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन, जो मेधा पाटकर द्वारा चलाया गया, इस नदी के संरक्षण के लिए सबसे प्रमुख आंदोलनों में से एक था। सरकार द्वारा भी विभिन्न योजनाओं के तहत जल शुद्धिकरण और पुनर्वास कार्य किए जा रहे हैं।

    नर्मदा नदी केवल एक जलधारा नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक धरोहर भी है। इसके संरक्षण के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसके जल और सांस्कृतिक महत्व से लाभान्वित हो सकें। यह नदी मध्य भारत के जीवन की धुरी है और इसे संरक्षित करना हमारा नैतिक दायित्व भी है।

    नर्मदा नदी के उल्टी दिशा में बहने का रहस्य और महत्व (Narmada Nadi Ulti Disha Me Kyu Behti Hai)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, नर्मदा राजा मेकल की पुत्री थीं। जब वह विवाह योग्य हुईं, तो राजा मेकल ने घोषणा की कि जो भी गुलबकावली का फूल लाएगा, वही नर्मदा से विवाह करेगा। इस चुनौती को पूरा करने के लिए कई राजकुमार आए। लेकिन कोई भी यह अनोखा फूल नहीं ला सका। अंततः राजकुमार सोनभद्र ने इस शर्त को पूरा कर लिया और नर्मदा से उनका विवाह तय हो गया। लेकिन नर्मदा ने पहले राजकुमार को देखने की इच्छा जताई और अपनी सहेली जोहिला को गहने पहनाकर सोनभद्र के पास संदेश लेकर भेजा।

    जब सोनभद्र ने जोहिला को देखा, तो उन्हें नर्मदा समझकर प्रेम प्रस्ताव रख दिया। जोहिला भी यह प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकीं और सोनभद्र से प्रेम करने लगीं। जब नर्मदा को यह बात पता चली, तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण लिया। क्रोध में आकर उन्होंने विपरीत दिशा में बहना शुरू कर दिया और अंततः अरब सागर में जाकर मिल गईं।

    नर्मदा नदी का वैज्ञानिक कारण

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो नर्मदा नदी के विपरीत दिशा में बहने का कारण भूगर्भीय संरचना है। नर्मदा नदी नर्मदा-सोन रिफ्ट वैली के अंदर बहती है, जो एक गहरी घाटी के रूप में विकसित हुई है। यह घाटी अरब सागर की ओर ढलान बनाए हुए है, जिससे नदी का प्रवाह पश्चिम की ओर हो जाता है।आमतौर पर नदियां गुरुत्वाकर्षण और ढलान के कारण बहती हैं। नर्मदा नदी की घाटी पश्चिम की ओर झुकी हुई है, इसलिए यह पूर्व की बजाय पश्चिम की ओर बहती है।भारत की ज्यादातर नदियां हिमालय और विंध्याचल पर्वतमाला से निकलकर बंगाल की खाड़ी की ओर बहती हैं, लेकिन नर्मदा का स्रोत अमरकंटक में स्थित है, जो पश्चिमी ढलान के कारण पश्चिम दिशा में बहती है।

    नर्मदा नदी न केवल एक प्राकृतिक चमत्कार है बल्कि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी अद्वितीय है। इसके विपरीत प्रवाह के पीछे जहां एक ओर रोचक पौराणिक कथा है, वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक कारण भी स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि यह नदी अपनी अनूठी भौगोलिक संरचना के कारण अरब सागर में मिलती है।

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