Nepal Ki Anokhi Pratha (Image Credit-Social Media)
Nepal Ki Anokhi Pratha: नेपाल, अपनी सांस्कृतिक विविधता और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है, और इनमें से सबसे प्रसिद्ध है ‘कुमारी देवी’ की परंपरा। कुमारी देवी का अर्थ है ‘जीवित देवी।’ यह परंपरा काठमांडू घाटी के भीतर अनुष्ठानिक और धार्मिक महत्व रखती है। कुमारी पूजा न केवल नेपाल के धार्मिक जीवन का हिस्सा है बल्कि दुनिया भर के लोगों को अपनी विशिष्टता और रहस्यमयता से आकर्षित करती है।कुमारी एक दिव्य बालिका होती है, जिसकी उम्र 3 से 4 वर्ष के बीच होती है। उसे देवी दुर्गा या तलेजु भवानी का जीवित अवतार माना जाता है। ‘कुमारी’ शब्द का संस्कृत अर्थ ‘कौमार्य’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘राजकुमारी’ होता है।
कुमारी प्रथा का इतिहास: कब और कैसे शुरू हुई?
कुमारी देवी की परंपरा का इतिहास नेपाल के मल्ला वंश के समय से जुड़ा है। यह 12वीं या 13वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी, जब मल्ला राजाओं ने बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के मिश्रण को बढ़ावा दिया।पौराणिक कथा के अनुसार, राजा जय प्रकाश मल्ला, जो काठमांडू के अंतिम मल्ला राजा थे, देवी ‘तलेजु’ की पूजा किया करते थे। कहा जाता है कि तलेजु स्वयं राजा के साथ शतरंज खेलती थीं और उनके राज्य की रक्षा करती थीं। एक दिन राजा ने देवी को मानवीय भावनाओं के साथ देखा, जिससे देवी क्रोधित हो गईं और प्रकट होकर राजा से कहा कि अब वह उनकी पूजा नहीं करेंगी।
राजा ने देवी से माफी मांगी, जिसके बाद देवी ने स्वप्न में प्रकट होकर उन्हें निर्देश दिया कि वह एक युवा कुमारी का चयन करें, जिसमें वह अवतरित होकर अपने भक्तों की पूजा स्वीकार कर सकें। हालांकि, उन्होंने वादा किया कि वह एक युवा लड़की के रूप में पुनः अवतरित होंगी और तभी उनकी पूजा जारी रह सकती है।तब से यह परंपरा शुरू हुई, जिसमें युवा कन्या को तलेजु देवी का अवतार मानकर पूजा किया जाने लगा।
कुमारी कैसे चुनी जाती है
कुमारी बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठोर और विस्तृत है। यह चयन प्रक्रिया बौद्ध शाक्य जाति की लड़कियों में से होती है। लड़की में शारीरिक दोष नहीं होना चाहिए। उसके शरीर पर कोई घाव या दाग नहीं होना चाहिए।लड़की का कुंडली मिलान किया जाता है।उसके शरीर की विशेषताएं देवी दुर्गा से मिलती-जुलती होनी चाहिए, जैसे 32 लक्षण, जिनमें कान, दांत, और आंखों का आकार शामिल है।लड़की को अंधेरे कमरे में बकरी के कटे सिरों और भयावह वस्तुओं के बीच बैठाया जाता है। अगर वह डरती नहीं है, तो उसे चुना जाता है।चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, लड़की को कुमारी घोषित किया जाता है और काठमांडू के कुमारी घर में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
कुमारी प्रथा पर विवाद और आलोचना
कुमारी प्रथा पर वर्षों से कई सवाल उठते रहे हैं।आलोचकों का कहना है कि यह परंपरा कुमारी के अधिकारों और बचपन की स्वतंत्रता का हनन करती है।कुमारी बनने के बाद लड़की का सामान्य जीवन शुरू करना मुश्किल होता है। लोग मानते हैं कि कुमारी से शादी करना अपशगुन है।यह परंपरा धार्मिक विश्वासों और सामाजिक दबावों पर आधारित है, जिससे बदलाव लाने में कठिनाई होती है।
नेपाल के अन्य क्षेत्रों में ऐसी परंपराएं
नेपाल के अन्य हिस्सों में कुमारी जैसी परंपराएं नहीं हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में देवी पूजा की गहरी परंपराएं हैं।
भक्तपुर और पाटन: कुमारी पूजा भक्तपुर और पाटन जैसे क्षेत्रों में भी होती है, लेकिन काठमांडू की कुमारी सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
स्थानीय देवी-देवता: नेपाल के गांवों में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा होती है, जिनका महत्व स्थानीय मान्यताओं और कहानियों पर आधारित है।
कुमारी देवी का चयन पांच वरिष्ठ बौद्ध बज्राचार्य द्वारा किया जाता है, जिनमें मुख्य राजगुरु, तलेजु के पुजारी, एक राज ज्योतिषी और तलेजु के अन्य पुजारी शामिल होते हैं।कुमारी ऐसे परिवार से नहीं हो सकती जहां अंतरजातीय विवाह हुआ हो, और उसे ईहि-बेल बिया (नेवार समुदाय की एक पारिवारिक रस्म) में भाग नहीं लिया होना चाहिए।
अगर वह इस परीक्षा को पास कर लेती है, तो उसे नेपाल की नई जीवित देवी कुमारी के रूप में मान्यता दी जाती है। यदि वह असफल होती है, तो दूसरी लड़की को उसी परीक्षा के लिए चुना जाता है।
कुमारी की शक्ति
नेपाल में हिंदू-बौद्ध समुदाय कुमारी को शक्ति (पॉवर) की देवी मानता है, क्योंकि उसे तलेजु भवानी और दुर्गा की जीवित अवतार के रूप में देखा जाता है। देवी को सभी से ऊपर माना जाता है, क्योंकि लोगों का विश्वास है कि देवी की शक्ति से ही सृष्टि की हर चीज़ अस्तित्व में आती है और जीवित रहती है। देवी की शक्ति के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसी कारण लोग कुमारी की पूजा करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि देवी की शक्ति उसके शुद्ध और जीवित रूप में विद्यमान है।
कुमारी बनने के बाद का जीवन
कुमारी बनने के बाद उसे कई नियमों और प्रतिबंधों का पालन करना पड़ता है। उसे गंभीर स्वभाव वाली लड़की होना चाहिए, जिसकी शारीरिक गतिविधियाँ बहुत सीमित होती हैं। उसे केवल उन स्थानों पर पैर रखने की अनुमति है, जहाँ उसकी पूजा की जाती है। कुमारी को जमीन पर कदम रखने की अनुमति नहीं है, क्योंकि उसे देवी का अवतार माना जाता है, और भूमि को भी भगवान का स्वरूप माना जाता है। इस कारण, कुमारी को दूसरे भगवान के संपर्क में आने की अनुमति नहीं होती। उसे हमेशा पालकी या अपने देखभालकर्ता द्वारा उठाकर ले जाया जाता है।
कुमारी के लिए रक्त का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे देवी दुर्गा की रचनात्मक ऊर्जा या शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन, चूंकि कुमारी देवी आधी हिंदू और आधी बौद्ध है, इसलिए उसे बलिदान देखने की अनुमति नहीं होती और जानवरों की बलि कुमारी के पूजा स्थल पर पहुँचने से पहले दी जाती है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि कुमारी के शरीर से कोई रक्त न निकले, क्योंकि रक्त निकलने से देवी की शक्ति अशुद्ध हो सकती है।माना जाता है कि कुमारी के शरीर से खून निकलने पर उनकी पवित्रता नष्ट हो जाती है और उनके भीतर की दिव्य शक्ति समाप्त हो जाती है।
वर्तमान समय में कुमारी देवी
वर्तमान समय में लगभग 10 कुमारी हैं। हाल ही में चुनी गई शाही कुमारी, त्रिशना शाक्य, 2017 में चुनी गई थीं और वह बसंतपुर दरबार स्क्वायर स्थित कुमारी घर में निवास कर रही हैं। पाटन की कुमारी, जो दूसरी सबसे महत्वपूर्ण जीवित देवी मानी जाती है, 2014 में उनीका बज्राचार्य को चुना गया था। कहा जाता है कि कुमारी देवी इंद्रजात्रा और दशैं के नवमी के दिन अपने सबसे शक्तिशाली रूप में होती है।
नवमी और दशमी का महत्व
दशहरा के पहले दिन (घटस्थापना) पर मंदिरों और हर घर की पूजा कक्ष में पवित्र मिट्टी के कलश स्थापित किए जाते हैं। इसमें जौ के बीज डाले जाते हैं, जो देवी की आत्मा का प्रतीक माने जाते हैं। हर सुबह कलश की पूजा की जाती है, उसे पवित्र जल से छिड़का जाता है और सूर्य की रोशनी से बचाकर रखा जाता है। जैसे-जैसे जौ के बीज उगते हैं, देवी दुर्गा की शारीरिक उपस्थिति और अधिक सशक्त होती जाती है।दशवें दिन, ये अंकुर (जवारे) लगभग 5 से 6 इंच लंबे हो जाते हैं और इन्हें देवी दुर्गा के आशीर्वाद के रूप में वितरित किया जाता है।
कुमारी का तीसरा नेत्र
दुनिया भर में ‘तीसरे नेत्र’ या ‘अग्नि नेत्र’ को एक पवित्र स्थान माना जाता है, जो माथे पर स्थित होता है। ऐसा कहा जाता है कि यह तीसरा नेत्र किसी को खुश कर सकता है या उसे राख में बदल सकता है। कुमारी दशहरे और इंद्रजात्रा के दौरान ‘तीसरा नेत्र’ पहनती है, जिसे ‘दृष्टि’ कहते हैं। यह देवी और कुमारी देवी के बीच संवाद का एक माध्यम माना जाता है। यह तीसरा नेत्र देवी के साथ शक्तिशाली संबंध स्थापित करने में सहायक होता है।
तलेजु मंदिर (कुमारी घर)
नेपाल में कई कुमारियां हैं, लेकिन शाही कुमारी काठमांडू में एक विशेष स्थान पर रहती हैं जिसे कुमारी घर कहा जाता है। अंतिम राजा जयप्रकाश मल्ल ने जीवित देवी के लिए दरबार स्क्वायर के पास इस निवास का निर्माण कराया था। यह स्थान केवल नौवें दिन (नवमी) पर खोला जाता है। कुमारी घर में केवल एक पुजारी को प्रवेश की अनुमति होती है और विदेशियों के लिए यहां प्रवेश सख्त रूप से प्रतिबंधित है।कुमारी घर, जिसे काठमांडू की जीवित देवी का मंदिर भी कहा जाता है, नेपाल की शानदार वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। इसमें देवी-देवताओं और विभिन्न प्रतीकों की जटिल लकड़ी की नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता को दर्शाती है।
पूर्व-कुमारी का जीवन
नेपाल में लगभग 12 कुमारियां हैं, जिनमें काठमांडू, पाटन, सांखु, भक्तपुर और अन्य स्थानों की जीवित देवियां शामिल हैं। अतीत में, कुमारी को विभिन्न अंधविश्वासों के कारण पूरी शिक्षा नहीं दी जाती थी। उन्हें शादी करने की अनुमति भी नहीं थी, क्योंकि यह मिथक था कि पूर्व-कुमारी से शादी करने वाले पति की आयु बहुत कम हो जाएगी।
हालांकि, यह मिथक अब टूट चुका है, और पूर्व-कुमारी अपनी इच्छा के अनुसार शादी कर सकती हैं। वर्तमान समय में, पूर्व-कुमारियों को कुमारी घर के अंदर पूरी शिक्षा दी जाती है, जब वे कुमारी के रूप में तैयार नहीं होतीं। उन्हें कुमारी घर के अंदर खेलने और अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का पूरा अधिकार दिया गया है।
�कुमारी जात्रा
कुमारी जात्रा एक रोमांचक त्योहार है, जो हर साल सितंबर महीने में मनाया जाता है। यह इंद्र जात्रा का हिस्सा है, जो काठमांडू घाटी में हिंदू और बौद्ध समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा सार्वजनिक त्योहार है। इंद्र जात्रा न्यूरी समुदाय का एक अत्यंत लोकप्रिय और रोमांचक त्योहार माना जाता है।
इस दिन जीवित देवी कुमारी को पूरी तरह से सजाया जाता है। उनके चेहरे पर विशेष श्रृंगार किया जाता है, लाल पोशाक पहनाई जाती है, होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाई जाती है और उनके माथे पर तीसरा नेत्र बनाया जाता है। उन्हें कुमारी घर से उनकी स्वर्णिम पालकी में बाहर निकाला जाता है। देवी के आशीर्वाद पाने और उनके जुलूस को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ पालकी के साथ चलती है।कुमारी देवी के रथ के पीछे दो अन्य रथ होते हैं, जो गणेश और भैरव के होते हैं। इंद्र जात्रा आठ दिनों तक मनाई जाती है, जिसमें मुखौटे पहनकर नृत्य करने वाले ‘लाखे’ शामिल होते हैं। लाखे हर शाम ढोल-नगाड़ों के साथ शहर के लगभग हर कोने में जाते हैं और सड़कों पर विशेष नृत्य ‘लाखे नृत्य’ प्रस्तुत करते हैं।
कुमारी जात्रा के अंतिम दिन, राष्ट्रपति (अतीत में राजा) कुमारी के समक्ष उपस्थित होकर अपने माथे पर लाल टीका लगवाते हैं। यह एक वार्षिक परंपरा है, जो उनके शासकीय अधिकार को वैधता प्रदान करती है। इस परंपरा की शुरुआत 18वीं शताब्दी में दिवंगत राजा जयप्रकाश मल्ल ने की थी।इंद्र जात्रा उत्सव के दौरान कुमारी देवी के रथ को देखने के लिए अधिक लोग आते हैं, जबकि अन्य पुरुष देवताओं के रथों को उतना महत्व नहीं मिलता। नेपाल एक पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक राष्ट्र रहा है, ऐसे में उच्च पदस्थ गणमान्य व्यक्तियों और राजाओं को एक छोटी लड़की के सामने झुकते देखना बेहद आकर्षक और अद्भुत प्रतीत होता है।