सांकेतिक फोटो (Pic – Social Media)
OBC, SC-ST Reservation : लोकसभा चुनाव के बाद से संविधान और आरक्षण का मुद्दा राजनीति की धुरी बना हुआ है। इस मामले को लेकर सड़क से लेकर सदन तक हंगामा देखने को मिला है, हालांकि अभी हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है। संविधान और आरक्षण के मुद्दे को एक बार फिर तब हवा मिल गई, जब संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) ने लैटरल एंट्री के जरिए भर्तियों को लेकर एक नोटीफिकेशन जारी किया। इसे लेकर विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हैं। ये मुद्दा थमा भी नहीं था कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मंगलवार को सोशल मीडिया एक्स पर एक और पोस्ट कर इसे और हवा दे दिया।
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, यूपीएसी में लैटरल एंट्री के बाद अब संविधान और आरक्षण विरोधी मोदी सरकार ने कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग अंतर्गत विज्ञापित 368 पदों की नियुक्ति में भी एकल पद के तहत विज्ञापन प्रकाशित कर और यह लिखकर कि 𝐀𝐥𝐥 𝐭𝐡𝐞 𝐯𝐚𝐜𝐚𝐧𝐜𝐢𝐞𝐬 𝐚𝐫𝐞 𝐮𝐧-𝐫𝐞𝐬𝐞𝐫𝐯𝐞𝐝 (अर्थात् सभी रिक्तियां अनारक्षित हैं“) दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण को समाप्त कर दिया है। आरएसएस कथित नकली ओबीसी प्रधानमंत्री और अप्रभावी ओबीसी कृषि मंत्री के हाथों अब कृषि विभाग की नियुक्तियों में भी आरक्षण समाप्त करवा रही है। क्या नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतनराम मांझी दलित-पिछड़ों की इस हकमारी के विरुद्ध कुछ बोलेंगे?
केंद्र सरकार ने लिया यूटर्न
बता दें कि इससे पहले मोदी सरकार ने लैटरल एंट्री पर हो रहे विरोध के बाद यूटर्न ले लिया है। केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को एक पत्र लिखकर, भर्तियों से संबंधित विज्ञापन को रद्द करने का निर्देश दिया है। यूपीएससी ने 17 अगस्त एक विज्ञापन निकाला था, जिसमें केंद्र सरकार के मंत्रालयों में 45 पदों के लिए भर्ती निकाली थी। इसके तहत उन सरकारी सेवा के लिए निजी क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों की नियुक्ति होनी थी। इसके साथ इसके लिए न्यूनतम उम्र 45 साल थी और 15 साल का अनुभव जरूरी था। आपको बता दें कि कार्मिक विभाग ने अपने पत्र में कहा था कि लैटरल एंट्री के तहत निकली भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं था, इसलिए इसे वापस ले लिया गया है।�
इन विभागों को रखा गया आरक्षण व्यवस्था से दूर
संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्ष के हल्ला बोल के बीच यहां यह भी जानना जरूरी है कि आखिर केंद्र सरकार की ओर से की जा रही सरकारी नौकरियों की भर्तियों में किन-किन विभागों को आरक्षण की व्यवस्था से दूर रखा गया है। तो आइए जानते हैं -�
न्यायपालिका : भारतीय न्यायिक व्यवस्था को आरक्षण से दूर रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 में कहा गया है कि सप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की भर्ती में आरक्षण लागू नहीं होगा। इसके लिए यहां ये तर्होक दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले नजीर बनते हैं, ऐसे में यहां अनुभव ज्यादा मायने रखता है। हालांकि यहां भी मुद्दा उठ चुका है कि कॉलेजियम न्यायिक नियुक्तियों के लिए अधिक महिलाओं और आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की सिफारिश करने पर विचार करे।
रक्षा विभाग : भारत में रक्षा से जुड़े क्षेत्र में जैसे – आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में भी आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तर्क दिया जाता है कि यह क्षेत्र देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां भर्तियां शारीरिक और मानसिक फिटनेस के साथ ही लीडरशिप स्किल आदि को देखते हुए की जाती हैं।� यहां मेरिट को आधार बनाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण का नियम लागू होने से भारतीय सेना के मानक कमजोर हो सकते हैं, इसलिए इस सेक्टर को आरक्षण व्यवस्था से दूर रखा गया है।
इसरो और डीआरडीओ : रक्षा और विज्ञान से जुड़े भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और�रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को भी आरक्षण व्यवस्था से दूर रखा गया है। यहां तर्क दिया जाता है कि ये संगठन देश के लिए काम करते हैंं। ये संगठन मिसाइलें-हथियार बनाते हैं, अंतरिक्ष के लिए काम करते हैं, इसलिए आरक्षण की व्यवस्था केा लागू करके इसके मानकों को कमजोर नहीं किया जा सकता है।�
पदोन्नति : देश की ऑल इंडिया सर्विसेज या कहें सिविल सर्विसेज में वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों की पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं होती है। यहां तर्क दिया जाता है कि महत्वपूर्ण पदों पर आरक्षण इसलिए नहीं लागू होता है, क्योंकि यहां अनुभव और उपलब्धियों के आधार पर पदोन्नति की जाती है। इसके लिए कई ऐसे अन्य विभाग हैं, जहां आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं होती है।