PoK का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
PoK की कहानी 19वीं सदी से शुरू होती है, जब 1846 की अमृतसर संधि के तहत महाराजा रणजीत सिंह के सिपहसालार रहे गुलाब सिंह ने 75 लाख नानकशाही सिक्कों के बदले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से जम्मू-कश्मीर रियासत खरीदी। इसमें जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, और बाल्टिस्तान शामिल थे। यह इतिहास का एक दुर्लभ उदाहरण था, जब एक राज्य बिना जनता की राय के खरीदा गया।पहले सिख-अंग्रेज़ युद्ध के बाद गुलाब सिंह ने पाला बदला था।
1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब गुलाब सिंह के वंशज, महाराजा हरि सिंह, इस रियासत के शासक थे। हरि सिंह के सामने तीन विकल्प थे: भारत में शामिल होना, पाकिस्तान में जाना, या स्वतंत्र रहना। वे स्विट्जरलैंड जैसा स्वतंत्र देश बनाने का सपना देख रहे थे। लेकिन अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने, सेना की मदद से, कश्मीर पर धावा बोल दिया। हरि सिंह की सेना असमर्थ थी। भारत से मदद माँगने पर जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने स्पष्ट किया कि पहले विलय पत्र पर हस्ताक्षर जरूरी हैं। 26 अक्टूबर 1947 को हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, और जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना।
इसके बाद शुरू हुआ भारत-पाक युद्ध, जो 1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र के युद्धविराम के साथ खत्म हुआ। नतीजा? जम्मू-कश्मीर का बंटवारा। पाकिस्तान ने 78,000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा रखा, जो आज PoK के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र दो हिस्सों में बंटा: जम्मू और कश्मीर, जो 13,297 वर्ग किलोमीटर में फैला है, और गिलगित-बाल्टिस्तान, जो 72,871 वर्ग किलोमीटर में है। भारत इसे अवैध कब्जा मानता है, क्योंकि पूरा जम्मू-कश्मीर कानूनी तौर पर भारत में विलय हो चुका था।
PoK की वर्तमान स्थिति
PoK की प्रशासनिक स्थिति जटिल है। उसकी राजधानी मुजफ्फराबाद है और1974 के अंतरिम संविधान के तहत चलता है। यहाँ एक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और 49 सीटों वाली विधानसभा है। कागजों पर यह अर्ध-स्वायत्त है, लेकिन वास्तव में सारी शक्ति इस्लामाबाद के पास है। गिलगित-बाल्टिस्तान, जिसे 2009 तक उत्तरी क्षेत्र कहा जाता था, और भी कम स्वायत्त है। यहाँ 33 सीटों वाली विधानसभा और एक मुख्यमंत्री हैं, लेकिन पाकिस्तान की सेना और नौकरशाही का दबदबा है। मानवाधिकार संगठन बोलने की आजादी और विरोध पर पाबंदियों की शिकायत करते हैं। स्थानीय लोग इसे ‘आजाद’ के बजाय ‘गुलाम कश्मीर’ कहते हैं।
PoK की 60 लाख की आबादी है जिसमें 20 लाख गिलगित-बाल्टिस्तान में— हाल के वर्षों में आर्थिक उपेक्षा, बिजली की कमी, और मानवाधिकार हनन के खिलाफ प्रदर्शन बढ़े हैं। यूनाइटेड कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी (UKPNP) जैसे समूह अधिक स्वायत्तता या भारत में शामिल होने की माँग करते हैं, क्योंकि वे भारत के जम्मू-कश्मीर को फलता-फूलता देखते हैं। लेकिन सभी भारत के पक्ष में नहीं हैं—कुछ स्वतंत्रता चाहते हैं, तो कुछ पाकिस्तान के प्रति वफादार हैं।
भारत का दृष्टिकोण
भारत का रुख स्पष्ट है: PoK भारत का अभिन्न हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। 22 फरवरी 1994 को संसद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान से PoK और अक्साई चिन खाली करने की माँग की। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 सीटें और लोकसभा में 7 सीटें PoK के लिए आरक्षित हैं, जो भारत के संकल्प का प्रतीक हैं।
एकीकरण की संभावनाएँ
PoK को भारत में शामिल करना आसान नहीं। तीन रास्ते संभव हैं। पहला, कूटनीति—भारत संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर दबाव डाल सकता है, लेकिन चीन, जो गिलगित-बाल्टिस्तान से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) चला रहा है, इसे जटिल बनाता है। दूसरा, सैन्य कार्रवाई—भारत की सेना सक्षम है, लेकिन युद्ध जोखिम भरा है, खासकर परमाणु हथियारों की मौजूदगी में। तीसरा, स्थानीय विद्रोह—PoK में असंतोष बढ़ रहा है, और भारत इसे समर्थन दे सकता है, लेकिन पाकिस्तान इसका विरोध करेगा। कूटनीति सबसे व्यवहारिक रास्ता है, जिसमें भारत जम्मू-कश्मीर के विकास को प्रदर्शित कर PoK के लोगों का दिल जीत सकता है।
पाक अधिकृत कश्मीर न केवल एक भू-राजनीतिक चुनौती है, बल्कि उन 60 लाख लोगों की जमीन भी है जो शांति और प्रगति चाहते हैं। 1947 का बंटवारा और भारत का अटल संकल्प इसे विभाजन और उम्मीद का प्रतीक बनाते हैं। युद्ध अंतिम रास्ता है, लेकिन कूटनीति और विकास के जरिए भारत PoK के लोगों का विश्वास जीत सकता है। यह राह लंबी और कठिन है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव कुछ भी नहीं। PoK का भविष्य भारत और पाकिस्तान के फैसलों पर टिका है, और इसमें शांति की जीत ही सबसे बड़ी उम्मीद है।