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    Prayagraj Akbar Kila Ka Itihas: अक्षय वट और सरस्वती कुंड जैसी कई ऐतिहासिक विरासतों का साक्षी है प्रयागराज का अकबर का किला,जानिए इसकी खासियत

    By January 11, 2025No Comments6 Mins Read
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    Prayagraj Mein Akbar Ka Sabse Bada Kila Ka Itihas in Hindi 

    Prayagraj Akbar Fort History�in Hindi:�अगर आप महाकुंभ के दौरान प्रयागराज की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो इस धार्मिक यात्रा में अकबर के किले को देखना जरूर शामिल करें। पौराणिक नदियों के पवित्र संगम के तट पर अनगिनत रहस्यों और कहानियों को समेटे यह किला विदेशी पर्यटकों के लिए हमेशा रोचकता का केंद्र रहा है। यह किला आगंतुकों के लिए हमेशा खुला रहता है। लेकिन चूंकि यह आंशिक रूप से कार्यात्मक सैन्य अड्डा भी है, इसलिए यहां कुछ क्षेत्र प्रतिबंधित भी हैं। किले के अंदर घूमने के अलावा यहां पिकनिक मनाने की अनुमति नहीं है। आइए जानते हैं इसकी आश्चर्यजनक वास्तुकला और भारतीय इतिहास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में।

    प्रयागराज किले का इतिहास�

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)


    �मुगल काल से संबंध रखने वाले प्रयागराज घाट के समीप स्थित इस किले को 1583 ईस्वी में सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था। इस क्षेत्र में मुगल सेना को मजबूत करने के लिए खास तौर से इसका निर्माण कराया गया था। अकबर ने शहर का नाम ’इलाहाबास’ रखा, जिसका अर्थ है ’ईश्वर का निवास’, जो बाद में इलाहाबाद बन गया। विभिन्न शासकों के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य और प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य कर रहा यह किला सदियों से कई ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा रहा है।

    बेहद अनोखी है इसकी वास्तुकला

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)


    �प्रयागराज स्थित यह किला अपनी ऐतिहासिक विरासत और भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाता है। बड़े क्षेत्र में फैले हुए इस ऊंची ऊंची दीवारों से घिरे महलनुमा किले में कई विशालकाय मिनारें और मंदिर मौजूद हैं। इस किला पहला भाग खूबसूरत आवास है,जो फैले हुए उद्यानों के बीच में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है।दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर चाकर की रहने की व्यवस्था थी।चौथे भाग में सैनिकों के लिए आवास बनाए गए थे।इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा टोडरमल, सईद खान, मुखलिस खान, राय भरतदीन, प्रयागदास मुंशी की देख-रेख में हुआ था। सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक अशोक स्तंभ है, जो 232 ईसा पूर्व का है और कौशाम्बी से यहाँ स्थानांतरित किया गया था। सम्राट अशोक द्वारा लिखित शिलालेखों से अंकित यह स्तंभ भारत के प्राचीन इतिहास और स्थायी विरासत का प्रतीक है। किले के भीतर एक और उल्लेखनीय संरचना सरस्वती कूप है, जिसे पौराणिक सरस्वती नदी का स्रोत माना जाता है। पातालपुरी मंदिर, एक प्राचीन भूमिगत मंदिर और अक्षय वट या अमर बरगद का पेड़ भी मुख्य आकर्षण हैं। इन स्थलों का अत्यधिक धार्मिक महत्व है और देश भर से तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। किले का समृद्ध इतिहास और रणनीतिक महत्व इसे भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित करता है। मुगल बादशाह अकबर का यह किला 30 हजार वर्ग फुट में बना है। यह लगभग 45 सालों में बनकर तैयार हुआ था। इसके निर्माण में उस समय छह करोड़,17 लाख, 20 हजार 214 रुपये की बड़ी रकम खर्च हुई थी।

    कई संघर्षों का स्थल रहा है यह किला

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)


    �कई बड़े सत्ता पलट और संघर्षों का स्थल रहा प्रयागराज का किला। मुगल काल के दौरान, यह एक सैन्य गढ़ और प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता था। बाद में, यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। किले का महत्व आधुनिक युग में भी जारी रहा। यह भारतीय सेना के लिए एक बेस के रूप में कार्य करता था और आंशिक रूप से उनके नियंत्रण में है। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान इसने एक रणनीतिक भूमिका निभाई थी।यह ऐतिहासिक किला 1583 में बना,तब से लेकर वर्तमान में यह किला कई लोगों के अधिकार में आया। वर्तमान में यह पूरी तरह से भारतीय सेना के नियंत्रण में है।जिस जगह पर सेना का नियंत्रण है वहां आम लोगों का जाना सख्त मना है। 1773 में अंग्रेज इस किले में आए थे।1775 में अंग्रेजों ने इस किले को 50 लाख में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ बेच दिया था।1798 में नवाब शाजत अली और अंग्रेजों में एक संधि के बाद किला फिर अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। आजादी के बाद किला भारत सरकार के नियंत्रण में आया और अब भारतीय सेना के नियंत्रण में है।

    ऐतिहासिक महत्व के साथ सांस्कृतिक और परंपराओं से भी है इस किले का संबंध

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)


    �प्रयागराज घाट पर मौजूद किले का ऐतिहासिक महत्व के साथ इसका विभिन्न सांस्कृतिक और परंपराओं से भी गहरा नाता है। इस किले के भीतर समय-समय पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और त्यौहार होते हैं, जो इसके महत्व के संवाहक बनते हैं। मुगलकालीन इस किले के अंदर सरस्वती कूप, जनानी महल, जहांगीर का महल, पारसी भाषा के कई शिलालेख, अशोक स्तंभ आदि मौजूद है। कुंभ के दौरान आमलोग पातालपुरी,अक्षयवट, सरस्वती कूप के दर्शन कर सकते हैं। 44 देवी-देवताओं वाला पातालपुरी मंदिर और अक्षयवट, जैसे हिंदू संस्कृति से जुड़े स्थलों पर दर्शन करने के लिए वर्ष पर श्रद्धालुओं और पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। पातालपुरी मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि यह वह स्थान है जहां त्रेता युग में माता सीता ने अपने कंगन दान किए थे। इसीलिए आज भी इस स्थान पर गुप्त दान किया जाता है। यहां शिव अपने अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान है, साथ ही तीर्थों के राजा प्रयाग की भी प्रतिमा है। यहां भगवान शनि को समर्पित एक अखंड ज्योति है, जो 12 महीने प्रज्वलित होती रहती है।

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    Prayagraj Ka Akbar Ka Qila (Image Credit-Social Media)

    इसके अतिरिक्त यहां मौजूद अक्षयवट और सरस्वती कूप श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। अगर बात करें अक्षय वट की तो यह वह पवित्र बरगद का वृक्ष है, जिसका कभी नाश नहीं हो सकता। कहा जाता है कि यह चार युगों से यहां विद्यमान है। मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण त्रेता युग में यहां आए थे और इस वृक्ष के नीचे तीन रात्रि विश्राम किया था। साथ ही यह भी मान्यता है कि जब प्रलय आएगी और संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न रहेगी, उस समय भी अक्षयवट का अस्तित्व बरकरार रहेगा। सरस्वती कूप या काम्यकूप वह स्थान है । जहां पहले लोग कूदकर अपनी जान दे देते थे,उनका मानना था कि इसके जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अकबर ने अपने शासनकाल में इसे ढकवा दिया था। वर्तमान में इस स्थान पर कूंए का ढका हुआ भाग ही दिखाई देता है। किला एक ऐतिहासिक स्थल और शहर के अतीत का प्रतीक दोनों के रूप में कार्य करता है।

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