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    Home » Rajasthan Famous Shiv Mandir: गाय के दूध से प्रकट हुआ 5,000 साल पुराना शिवलिंग, जानिए इनका रहस्य
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    Rajasthan Famous Shiv Mandir: गाय के दूध से प्रकट हुआ 5,000 साल पुराना शिवलिंग, जानिए इनका रहस्य

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 23, 2025No Comments6 Mins Read
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    Rajasthan Famous Shiv Mandir 5000 Years Old Shivling (Image Credit-Social Media)

    Rajasthan Famous Shiv Mandir 5000 Years Old Shivling (Image Credit-Social Media)

    Rajasthan Famous Shiv Mandir: खास लोक परम्पराओं, खानपान और धार्मिक सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए राजस्थान न की सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी मजबूत पहचान रखता है। बल्कि इसे अपने सिद्ध शिव मंदिरों के लिए भी लोकप्रियता हासिल है। जिसकी राजधानी जयपुर के आमेर सागर रोड पर स्थित अंबिकेश्वर मंदिर और सीकर जिले के हर्ष भैरवनाथ मंदिर, दोनों शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र हैं। खासकर सावन में इन मंदिरों में भक्तों की भीड़ और धार्मिक आयोजन पूरे माहौल को भक्ति रस से सराबोर कर देते हैं। इन मंदिरों का इतिहास, लोक मान्यताएं और रहस्यमय घटनाएं इन्हें और भी खास बनाते हैं। आइए जानते हैं इन दोनों ही मंदिरों से जुड़े इतिहास के बारे में विस्तार से –

    5 हजार साल पुराना अंबिकेश्वर महादेव मंदिर- शिव यहां विराजमान हैं शिला रूप में

    आमेर सागर रोड पर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव शिला रूप में विराजमान हैं। यहां सावन और भादो महीनों में शिवलिंग भूगर्भ से निकलने वाले जल से स्वतः जलमग्न हो जाता है, और वर्षा समाप्त होते ही पानी अपने आप सूख जाता है। यह शिवशिला हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती है, जबकि मंदिर का निर्माण लगभग 900 साल पहले हुआ था। इस मंदिर का गर्भगृह भूतल से करीब 22 फीट गहरा है और यह 14 खंभों पर टिका हुआ है। शिवलिंग की जलहरी से बहता जल पास के ऐतिहासिक पन्ना-मीणा कुंड में जाकर गिरता है।

    रहस्यमयी जलधारा-विज्ञान भी रह गया हैरान 

    इस मंदिर के महंत के अनुसार बारिश के दौरान भूगर्भ से जल ऊपर आकर शिवलिंग को डुबो देता है, लेकिन वर्षा खत्म होते ही यह जल वापस भूगर्भ में चला जाता है। खास बात यह है कि श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाया गया जल या अन्य जल गर्भगृह में नहीं टिकता बल्कि सीधे कुंड में चला जाता है। यह प्रक्रिया आज भी रहस्य बनी हुई है।

    गाय के दूध से प्रकट हुआ स्वयंभू शिवलिंग 

    इस मंदिर को लेकर प्रचिलत मान्यताओं के अनुसार, एक गाय रोज वहां घास चरने आती थी लेकिन दूध नहीं देती थी। जब ग्रामीणों ने देखा कि वह गाय एक गड्ढे के पास खड़ी होकर दूध गिरा रही है, तो उन्होंने खुदाई करवाई। करीब 22 फीट गहरी खुदाई के बाद वहां स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ।

    नंद बाबा और श्रीकृष्ण से भी जुड़ी हैं लोक मान्यता 

    लोक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण और नंद बाबा यहां आए थे तो उन्होंने शिवरात्रि के दिन अपने केश (मुंडन संस्कार) यहां छोड़े थे। तभी से इस स्थान को ‘अंबिका वन’ कहा जाने लगा और इसी अंबिकेश्वर मंदिर के नाम पर इस क्षेत्र का नाम ‘आमेर’ पड़ा। इस मंदिर की महत्ता को देखते हुए ही आमेर राज्य की स्थापना की गई।

    आमेर किले और मंदिर का गहरा रिश्ता 

    आमेर का विश्वविख्यात किला भी इसी अंबिकेश्वर मंदिर से जुड़ा है। इस मंदिर के महत्व को ध्यान में रखते हुए आमेर राज्य की राजधानी यहीं स्थापित की गई थी। यह मंदिर आज भी आस्था, इतिहास और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बना हुआ है।

    औरंगजेब का हमला और मंदिर का ध्वंस 

    1739 में दिल्ली सल्तनत के शासक औरंगजेब ने खंडेला अभियान के दौरान इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। अंबिकेश्वर मंदिर पर भी हमला कर शिवलिंग और अन्य मूर्तियों को खंडित कर दिया गया। इन खंडित मूर्तियों के अवशेष आज भी हर्ष पर्वत स्थित प्राचीन शिव मंदिर में देखे जा सकते हैं।

    हर्ष पर्वत पर पुनर्निर्माण शिवसिंह का योगदान 

    औरंगजेब के आक्रमण के बाद सीकर के राव राजा शिवसिंह ने संवत 1781 में हर्ष पर्वत पर नए शिव मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। स्तंभों पर बेल-बूटी की सुंदर नकाशी, पंचमुखी शिव की मूर्ति, विष्णु, शिव शक्ति, गणेश, इंद्र, कुबेर, नर्तकी और योद्धाओं सहित 84 प्रकार की कलात्मक प्रतिमाएं इस मंदिर को विशिष्ट बनाती हैं। मंदिर में बना विशाल सफेद संगमरमर का शिवलिंग भी दर्शनीय है, जिसका आधार चौकोर बनाया गया है।

    हर्ष भैरवनाथ मंदिर मान्यताओं और भक्ति का केंद्र 

    हर्ष पर्वत के पास स्थित हर्ष भैरवनाथ मंदिर की भी अपनी रोचक कथा है। मान्यता है कि मां जीण भवानी के भाई हर्ष भैरव उन्हें मनाने के लिए यहां आए थे, लेकिन बहन के न मानने पर वे भी यहीं तपस्या में लीन हो गए। तभी से इस पहाड़ी का नाम हर्ष भैरव पर्वत पड़ा। आज भी यह मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

    सावन में विशेष आयोजन और मेलों की रौनक 

    सावन के महीने में अंबिकेश्वर मंदिर और हर्ष भैरवनाथ मंदिर में विशेष पूजा, अभिषेक और आरती का आयोजन किया जाता है। पूरे माह यहां भक्तगण उपवास रखते हुए भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। मंदिर परिसर में झांकियां, भंडारे, भजन-कीर्तन और धार्मिक प्रवचन होते हैं, जो भक्तों के दिलों को आध्यात्मिक आनंद से भर देते हैं। इन दिनों यहां देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं, जो माहौल को भक्तिमय और उल्लासपूर्ण बनाता है।

    मंदिरों से जुड़ी लोक परंपराएं और भजन 

    इन मंदिरों के आस-पास के गांवों में शिवरात्रि, सावन के सोमवार और महाशिवरात्रि पर लोक गीत, भजन और कथाएं गाई जाती हैं। भक्ति संगीत की इन पारंपरिक परंपराओं में स्थानीय कलाकार भाग लेते हैं, जो भक्तों को भगवान शिव की महिमा का एहसास कराते हैं। कई स्थानों पर भैरव वादन और डमरू की धुनें सुनाई देती हैं, जो वातावरण को दिव्य बनाती हैं।

    संरक्षण प्रयास और वर्तमान प्रशासनिक पहल 

    इन प्राचीन मंदिरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए स्थानीय प्रशासन और मंदिर समितियां निरंतर प्रयासरत हैं। कई बार पुरानी मूर्तियों और स्थापत्य को ठीक करने का काम किया गया है। स्थानीय लोगों और भक्तों की मांग है कि सरकार यहां बेहतर सुविधाएं प्रदान करे जैसे साफ-सफाई, पार्किंग, शौचालय और सुरक्षा व्यवस्था। पर्यटन विभाग भी इन स्थलों को धार्मिक पर्यटन के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा है।

    सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन की संभावनाएं 

    हर्ष पर्वत और अंबिकेश्वर मंदिर केवल धार्मिक महत्व के केंद्र नहीं हैं, बल्कि ये राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक स्थापत्य कला, ऐतिहासिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य का अनोखा संगम देख सकते हैं। अगर सरकार और प्रशासन यहां की सुविधाएं विकसित करें तो यह स्थल धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।

    जयपुर का अंबिकेश्वर महादेव मंदिर और सीकर का हर्ष भैरवनाथ मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र हैं, बल्कि राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक भी हैं। इन मंदिरों से जुड़ी मान्यताएं, ऐतिहासिक घटनाएं और प्राकृतिक रहस्य इन्हें और भी विशेष बनाते हैं। आवश्यकता है कि इन स्थलों को संरक्षित कर भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जाए और साथ ही धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जाए।

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