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    Rajkumari Ratnavati Girls School: राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय, रेगिस्तान में शिक्षा की एक अनोखी मिसाल

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 13, 2025No Comments8 Mins Read
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    Rajkumari Ratnavati Girls School History 

    Rajkumari Ratnavati Girls School History 

    Rajkumari Ratnavati Girls School History: थार रेगिस्तान की तपती रेत के बीच, जहां गर्मी का पारा 50 डिग्री तक पहुंच जाता है, वहां एक ऐसी जगह है जो न केवल शिक्षा का केंद्र है, बल्कि वास्तुकला का एक चमत्कार भी है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जैसलमेर में स्थित राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय की। यह स्कूल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि बेटियों के सपनों को पंख देने और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का एक जीवंत प्रतीक है। इस लेख में हम इस स्कूल की हर खासियत, इसकी स्थापना, डिजाइन और सामाजिक प्रभाव को विस्तार से जानेंगे, वो भी इस तरह कि यह पढ़ते वक्त आपको लगे जैसे आप रेगिस्तान की उस ठंडी हवा का अहसास कर रहे हैं, जो इस स्कूल की दीवारों से होकर गुजरती है।

    एक अनोखी शुरुआत

    जैसलमेर का कनोई गांव, जहां रेत के टीलों के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता, वहां राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय की स्थापना एक क्रांतिकारी कदम है। इस स्कूल को अमेरिका की गैर-लाभकारी संस्था सीआईटीटीए (CITTA) ने बनवाया है, जिसका मकसद दुनिया भर में शिक्षा और स्वास्थ्य के जरिए कमजोर समुदायों को सशक्त करना है। इस स्कूल की नींव जैसलमेर राजपरिवार के सदस्य चैतन्य राज सिंह और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने वाले मानवेंद्र सिंह ने मिलकर रखी। उनका सपना था कि इस रेगिस्तानी इलाके में, जहां लड़कियों की साक्षरता दर सिर्फ 32 फीसदी के आसपास है, बेटियां पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनें।

    यह स्कूल 22 बीघा जमीन पर फैला हुआ है और इसका उद्घाटन 21 जुलाई 2021 को हुआ। यह ज्ञान केंद्र (GYAAN Centre) का हिस्सा है, जिसमें तीन मुख्य इमारतें शामिल हैं: स्कूल, मेधा (एक प्रदर्शन और प्रशिक्षण केंद्र) और एक कपड़ा संग्रहालय। इस पूरे परिसर का मकसद न केवल शिक्षा देना है, बल्कि स्थानीय महिलाओं को पारंपरिक हस्तशिल्प और बुनाई जैसे कौशलों में प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाना है।

    वास्तुकला का चमत्कार

    जब आप इस स्कूल की इमारत को देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे रेगिस्तान में कोई शाही महल खड़ा हो। इसे न्यूयॉर्क की मशहूर आर्किटेक्ट डायना केलॉग ने डिजाइन किया है, जिन्होंने स्थानीय पीले बलुआ पत्थर का इस्तेमाल कर इसे एक अंडाकार (oval) आकार दिया है। यह डिजाइन न केवल देखने में खूबसूरत है, बल्कि रेगिस्तान की चिलचिलाती गर्मी से बचाने में भी कारगर है।

    स्कूल की दीवारें जालीदार हैं, जो हवा को अंदर-बाहर आने-जाने देती हैं। छत को इस तरह बनाया गया है कि सूरज की तेज किरणें सीधे कमरों में न पड़ें। ऊपर की टाइल्स पर चीनी-मिट्टी की परत चढ़ाई गई है, जो गर्मी को सोखने की बजाय उसे परावर्तित करती है। यही वजह है कि बिना किसी एयर कंडीशनर या कूलर के यह स्कूल गर्मियों में भी ठंडा रहता है। सोलर पैनल्स इस स्कूल को पूरी तरह सौर ऊर्जा से चलाते हैं, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। सोलर पैनल न केवल बिजली पैदा करते हैं, बल्कि छाया भी देते हैं, ताकि बच्चे धूप से बचे रहें।

    यह स्कूल स्थानीय कारीगरों के हुनर का भी नमूना है। हर पत्थर को हाथ से तराशा गया है और इमारत का डिजाइन रेगिस्तान के टीलों से प्रेरित है। अंडाकार आकार को इसलिए चुना गया, क्योंकि यह नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह डिजाइन न केवल व्यावहारिक है, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भी गहरा अर्थ रखता है।

    शिक्षा का अनोखा मॉडल

    राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय में पढ़ाई पूरी तरह मुफ्त है। यहां किंडरगार्टन से लेकर चौथी कक्षा तक की पढ़ाई होती है और वर्तमान में करीब 120 छात्राएं यहां पढ़ रही हैं। भविष्य में इसे 10वीं कक्षा तक विस्तार करने की योजना है। स्कूल में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई होती है और चार स्थायी शिक्षकों के अलावा गेस्ट टीचर भी बच्चों को पढ़ाने आते हैं।

    यहां का पाठ्यक्रम सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है। बच्चों को अंग्रेजी, कंप्यूटर और जीवन कौशल जैसे विषय भी सिखाए जाते हैं, ताकि वे भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें। इसके अलावा, स्कूल में मिड-डे मील भी मुफ्त दिया जाता है, जो बच्चों के पोषण का भी ख्याल रखता है। यह सुविधा खास तौर पर उन परिवारों के लिए वरदान है, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं।

    यूनिफॉर्म की खासियत

    इस स्कूल की एक और खास बात है इसकी यूनिफॉर्म, जिसे मशहूर फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने डिजाइन किया है। नीले रंग की घुटनों तक की फ्रॉक और मैरून रंग की वेस्ट पैंट का यह कॉम्बिनेशन न केवल खूबसूरत है, बल्कि स्थानीय संस्कृति को भी दर्शाता है। यूनिफॉर्म में प्राकृतिक रंग और ब्लॉक प्रिंट का इस्तेमाल हुआ है, जो इसे और खास बनाता है। सब्यसाची ने अपने इंस्टाग्राम पर इन यूनिफॉर्म्स की तस्वीरें शेयर की थीं, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं।

    सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

    यह स्कूल सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक क्रांति का प्रतीक है। जैसलमेर जैसे इलाके में, जहां लड़कियों की शिक्षा को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, यह स्कूल बेटियों को नई राह दिखा रहा है। यहां पढ़ने वाली ज्यादातर लड़कियां उन परिवारों से हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। मुफ्त शिक्षा और भोजन की सुविधा ने इन परिवारों का बोझ कम किया है और लड़कियों को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया है।

    स्कूल का मेधा हिस्सा प्रदर्शन और प्रशिक्षण के लिए है, जहां स्थानीय महिलाओं को बुनाई और हस्तशिल्प जैसे पारंपरिक कौशलों में प्रशिक्षण दिया जाता है। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर करता है, बल्कि जैसलमेर की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा को भी जिंदा रखता है। कपड़ा संग्रहालय इस परंपरा को पर्यटकों तक पहुंचाता है, जिससे स्थानीय कारीगरों को नया बाजार मिलता है।

    पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी

    इस स्कूल की एक और खासियत है इसका पर्यावरण के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण। सौर ऊर्जा से चलने वाला यह स्कूल बिजली की खपत को न्यूनतम रखता है। जालीदार दीवारें और हवादार छतें गर्मी को कम करती हैं, जिससे एयर कंडीशनर की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, स्कूल में पानी की आपूर्ति भी बेहद मीठी और स्वच्छ है, जो रेगिस्तान जैसे इलाके में किसी चमत्कार से कम नहीं।

    पर्यटकों के लिए आकर्षण

    राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक बड़ा आकर्षण बन गया है। दूर-दूर से लोग इसकी अनोखी वास्तुकला और सामाजिक योगदान को देखने आते हैं। स्कूल की इमारत को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह रेगिस्तान में कोई नखलिस्तान हो। इसका डिजाइन और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक इसे विश्व स्तर पर चर्चित बनाती है।

    हालांकि यह स्कूल एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसे चलाने में कुछ चुनौतियां भी हैं। जैसलमेर जैसे ग्रामीण इलाके में शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या है। वर्तमान में सिर्फ चार स्थायी शिक्षक हैं और गेस्ट टीचरों पर निर्भरता रहती है। इसके अलावा, स्कूल को और विस्तार करने के लिए और फंडिंग की जरूरत है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लड़कियां यहां पढ़ सकें।

    भविष्य में इस स्कूल को 10वीं कक्षा तक विस्तार करने की योजना है और ज्ञान केंद्र के अन्य हिस्सों को भी और विकसित किया जाएगा। सीआईटीटीए और स्थानीय प्रशासन मिलकर इसे एक मॉडल स्कूल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा बन सके।

    यह स्कूल सिर्फ पत्थर और सीमेंट का ढांचा नहीं है। यह उन बेटियों की उम्मीदों का प्रतीक है, जो रेगिस्तान की तपती रेत में भी अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहती हैं। हर सुबह, जब ये लड़कियां अपनी नीली-मैरून यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल आती हैं, तो उनके चेहरों पर एक अलग सी चमक होती है। यह चमक सिर्फ शिक्षा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की है।

    एक स्थानीय शिक्षक ने बताया कि कई लड़कियां ऐसी हैं, जिनके माता-पिता पहले उन्हें स्कूल भेजने को तैयार नहीं थे। लेकिन मुफ्त शिक्षा, भोजन और इस स्कूल की खूबसूरत इमारत ने उनके मन को बदल दिया। आज ये लड़कियां न केवल पढ़ रही हैं, बल्कि अपने परिवारों के लिए भी प्रेरणा बन रही हैं।

    राजकुमारी रत्नावती बालिका विद्यालय सिर्फ एक स्कूल नहीं, बल्कि एक ऐसी पहल है, जो रेगिस्तान में शिक्षा की हरियाली बो रही है। यह वास्तुकला, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक बदलाव का एक अनोखा संगम है। डायना केलॉग का डिजाइन, सब्यसाची की यूनिफॉर्म और सीआईटीटीए का विजन इस स्कूल को एक वैश्विक मिसाल बनाता है। यह स्कूल हमें सिखाता है कि जब इरादे मजबूत हों, तो रेगिस्तान में भी सपनों का नखलिस्तान बनाया जा सकता है।

    अगर आप जैसलमेर जाएं, तो इस स्कूल को जरूर देखें। यह न केवल आपका मन मोह लेगा, बल्कि आपको यह भी एहसास कराएगा कि शिक्षा और इंसानियत की ताकत क्या होती है। आइए, हम सब मिलकर ऐसी पहलों को समर्थन दें, ताकि हर बेटी पढ़े, आगे बढ़े और अपने सपनों को उड़ान दे।

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