
Uttarakhand Roopkund Lake Mystery
Uttarakhand Roopkund Lake Mystery
Uttarakhand Roopkund Lake Mystery: रूपकुंड झील, जिसे ‘कंकालों की झील’ या ‘रहस्यमयी झील’ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक उच्च हिमालयी हिमनदीय झील है। यह समुद्र तल से लगभग 5,029 मीटर (16,500 फीट) की ऊंचाई पर त्रिशूल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित है। इस झील की गहराई लगभग 3 मीटर है और इसका व्यास लगभग 40 मीटर तक होता है। झील वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती है, लेकिन गर्मियों में बर्फ के पिघलने पर इसके किनारों और तल में सैकड़ों मानव कंकाल दिखाई देते हैं, जो इसे विश्व की सबसे रहस्यमयी झीलों में से एक बनाते हैं।
खोज और प्रारंभिक सिद्धांत
1942 में, एक ब्रिटिश वन रेंजर हरी किशन मधवाल ने इस झील के पास सैकड़ों मानव कंकालों की खोज कीउस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था, इसलिए प्रारंभिक अनुमान था कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के हैं जो भारत में घुसपैठ करते समय मारे गए थेहालांकि, बाद में जांच में पाया गया कि ये कंकाल कई शताब्दियों पुराने हैं, जिससे यह सिद्धांत खारिज हो गया

वैज्ञानिक अनुसंधान और निष्कर्ष
2003 में, नेशनल ज्योग्राफिक चैनल द्वारा आयोजित एक वैज्ञानिक अभियान में लगभग 30 कंकालों को झील से निकाला गया और डीएनए परीक्षण के लिए भेजा गय। इन परीक्षणों से पता चला कि ये कंकाल दो अलग-अलग समूहों के हैं: एक समूह भारतीय मूल का था, जबकि दूसरा समूह भूमध्यसागरीय क्षेत्र से संबंधित थ। रेडियोकार्बन डेटिंग से यह भी पता चला कि ये कंकाल दो अलग-अलग समय अवधियों के हैं: एक समूह लगभग 800 ईस्वी के आसपास मरा था, जबकि दूसरा समूह 1800 ईस्वी के आसपा। इसके अलावा, कंकालों की खोपड़ियों पर गहरे गोल घाव पाए गए, जो दर्शाते हैं कि उनकी मृत्यु सिर पर ऊपर से गिरने वाली किसी कठोर वस्तु, संभवतः बड़े ओलों, के कारण हुई थ। यह निष्कर्ष स्थानीय लोककथाओं से मेल खाता है, जिसमें कहा गया है कि एक तीर्थयात्रियों का समूह भारी ओलावृष्टि में फंस गया था और उनकी मृत्यु हो गई थी।

स्थानीय लोक कथाएं और मिथ
स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती रानी बलंपा, सेवकों और नर्तकियों के साथ नंदा देवी मंदिर की तीर्थयात्रा पर जा रहे उनकी यात्रा में नाच-गाना और भव्यता शामिल थी, जिससे देवी नंदा क्रोधित हो गईं और उन्होंने बड़े-बड़े ओलों की वर्षा कर दी, जिससे पूरा समूह मारा गा इस कथा का समर्थन स्थानीय महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों से भी होता है, जिनमें देवी के क्रोध और ओलावृष्टि का वर्णन मिलता है।
भूगोल और पर्यावरणीय स्थिति
रूपकुंड झील एक हिमनदीय झील है, जो वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहतीह। गर्मियों में बर्फ के पिघलने पर झील के किनारों और तल में कंकाल दिखाई देते है। झील के चारों ओर त्रिशूल और नंदा घुंटी जैसे हिमालयी पर्वत हैं, जो इसे एक सुरम्य स्थल बनाते हैं.. हालांकि, हाल के वर्षों में पर्यावरणीय बदलावों और भूस्खलनों के कारण झील का आकार सिकुड़ गयाहै।

भारत के हिस्से में आने वाले हिमालयी क्षेत्र में बर्फीली चोटियों के बीच स्थित रूपकुंड झील में एक अरसे से इंसानी हड्डियां बिखरी हैं.रूपकुंड झील समुद्रतल से क़रीब 16,500 फीट यानी 5,029 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है. ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल जैसी दिखने के कारण त्रिशूल के नाम से जाना जाता है, के बीच स्थित है.त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है जो कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित हैं.
पर्यटन और संरकषण
रूपकुंड झील एक लोकप्रिय ट्रेकिंग स्थल है, जो बेदनी बुग्याल और त्रिशूल ग्लेशियर के रास्ते में पड़त है। हालांकि, बढ़ते पर्यटन और कंकालों की चोरी के कारण स्थानीय प्रशासन ने झील के संरक्षण के लिए प्रयास शुरू किएहं। पर्यावरणीय संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए झील क्षेत्र में पर्यटन को नियंत्रित किया जा रह है।
रूपकुंड झील: एक रहस्य जिससे आज भी वैज्ञानिक हैं हैरान
झीलों का शांत और मनमोहक नजारा किसे नहीं भाता? गर्मियों की छुट्टियों में जब लोग भीड़-भाड़ से दूर सुकून की तलाश में निकलते हैं, तो अक्सर झीलों के किनारे बैठकर प्रकृति का आनंद लेते हैं। लेकिन सोचिए, अगर किसी झील में आपको तैरती हुई मछलियां नहीं, बल्कि नरकंकाल नजर आएं तो कैसा लगेगा? जाहिर है, आप घबरा जाएंगे और वहां से भागने में ही भलाई समझेंगे।

ऐसी ही एक रहस्यमयी झील है — उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित ‘रूपकुंड झील’, जिसे स्थानीय लोग ‘कंकालों की झील’ कहते हैं।
रूपकुंड झील की रहस्यमयी पहचान
समुद्र तल से लगभग 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील तक पहुंचना किसी रोमांच से कम नहीं। ऊंचे बर्फीले पहाड़, दुर्गम रास्ते और बेहद ठंडा मौसम इस झील को और भी रहस्यमय बना देता है। लेकिन इसकी सबसे अनोखी और चौंकाने वाली बात है — इसमें पाए जाने वाले सैकड़ों इंसानी कंकाल।

यह बात सबसे पहले 1942 में सामने आई थी, जब नंदा देवी शिकार आरक्षण के रेंजर एच.के. माधवल ने झील में बड़ी संख्या में कंकालों की खोज की। प्रारंभ में यह समझा गया कि ये कंकाल किसी महामारी, भूस्खलन या हिमस्खलन के कारण मारे गए लोगों के हो सकते हैं। लेकिन जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ा, कहानी और भी जटिल होती चली गई।
कंकालों का रहस्य: मौत की वजह क्या थी
1960 के दशक में हुई कार्बन डेटिंग से यह पता चला कि ये कंकाल 12वीं से 15वीं सदी के बीच के हो सकते हैं। पहले यह अनुमान लगाया गया था कि ये सभी लोग एक ही घटना में मारे गए होंगे, लेकिन 2004 में जब भारत और यूरोप के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने इस क्षेत्र का दौरा किया, तो इस थ्योरी पर भी सवाल उठने लगे।
हैदराबाद, पुणे और लंदन के वैज्ञानिकों ने जब इन अवशेषों की डीएनए जांच की, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए — ये लोग किसी बीमारी से नहीं, बल्कि अचानक आई भीषण ओलावृष्टि या तूफान का शिकार हुए थे। इनमें से कई कंकालों की खोपड़ी पर गहरी चोट के निशान पाए गए, मानो कोई भारी वस्तु ऊपर से गिरी हो।
कितने कंकाल मिले और क्या थे उनके रहस्य
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 तक रूपकुंड झील से करीब 600 से 800 कंकाल बरामद किए जा चुके हैं। उनमें से कई अब भी बर्फ में सुरक्षित अवस्था में हैं और कुछ पर तो आज भी मांस के अवशेष पाए जाते हैं।

हाल ही में हुई एक और विस्तृत रिसर्च से यह अनुमान भी गलत साबित हो गया कि ये सभी लोग एक ही समय पर मारे गए थे।
पांच वर्षों की रिसर्च और चौंकाने वाला निष्कर्ष
करीब पांच साल तक चली एक
अंतरराष्ट्रीय रिसर्च में भारत, जर्मनी और अमेरिका के 16 संस्थानों के 28 वैज्ञानिकों ने मिलकर 38 कंकालों का जेनेटिक और कार्बन डेटिंग के आधार पर अध्ययन किया।
इसमें पता चला कि ये सभी लोग एक-दूसरे से आनुवांशिक रूप से भिन्न थे।
उनके मरने के समय में करीब 1000 साल तक का अंतर था।
इनमें से 15 कंकाल महिलाओं के थे और कुछ अवशेष करीब 1200 साल पुराने हैं।
अध्ययन की प्रमुख लेखिका, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की शोध छात्रा ईडेओइन हार्ने ने कहा, “ये कंकाल किसी एक प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों के नहीं हैं। हर समूह की मृत्यु अलग-अलग समय में हुई है।”
क्या यूरोप से भी लोग पहुंचे थे रूपकुंड
इस रिसर्च का सबसे चौंकाने वाला पहलू था — इन लोगों की उत्पत्ति। डीएनए विश्लेषण से पता चला कि इनमें से एक समूह के लोग आज के दक्षिण एशिया, यानी भारत के विभिन्न क्षेत्रों से थे, लेकिन दूसरा समूह यूरोप, खासकर यूनान के क्रीट द्वीप से मिलता-जुलता था।
अर्थात्, इस झील में पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र के लोग भी पहुंचे थे।
अब सवाल यह उठता है — यूरोपीय लोग भारत के ऊंचे हिमालय में क्या करने आए थे? न तो ये कोई व्यापारिक मार्ग था, न ही इनके साथ हथियार या कोई कारोबारी सामग्री मिली। ऐसे में मानना मुश्किल है कि ये लोग व्यापार या युद्ध के लिए यहां आए थे।
क्या ये तीर्थयात्रा पर आए थे
झील के मार्ग में एक प्राचीन तीर्थस्थल स्थित है, जो इस रहस्य पर थोड़ी रोशनी डालता है। हालांकि, 19वीं सदी के अंत तक इस क्षेत्र में तीर्थयात्रा के ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन 8वीं से 10वीं सदी के मंदिरों और शिलालेखों से यह अंदाजा लगता है कि यहां लोग धार्मिक यात्राएं किया करते थे।
संभव है कि कुछ लोग तीर्थयात्रा पर यहां पहुंचे हों और उनकी मृत्यु प्राकृतिक आपदाओं में हो गई हो।
लेकिन यूरोपीय लोग? वो क्यों यहां आए? वैज्ञानिक अब तक इस सवाल का सटीक उत्तर नहीं दे सके हैं।
रहस्य अभी भी बरकरार है
रूपकुंड झील आज भी रहस्य और रोमांच का प्रतीक बनी हुई है। जहां एक ओर यह साहसिक पर्यटकों के लिए रोमांचकारी स्थल है, वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिकों के लिए यह एक रहस्य है जिसे सुलझाने में दशकों लग चुके हैं, लेकिन पूर्ण समाधान अभी दूर है।
क्या यह किसी अदृश्य त्रासदी की गवाह है? या फिर यह एक भूले-बिसरे तीर्थमार्ग की शोकगाथा है? या कोई ऐसा ऐतिहासिक अध्याय, जो समय की बर्फ में दब गया?