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    Home » Sabse Jyada Mote Log Wala Desh: दुनिया के सबसे मोटे लोग किस देश में रहते हैं, क्या है उनकी दिनचर्या आइए जानते हैं
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    Sabse Jyada Mote Log Wala Desh: दुनिया के सबसे मोटे लोग किस देश में रहते हैं, क्या है उनकी दिनचर्या आइए जानते हैं

    By January 20, 2025No Comments6 Mins Read
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    World Fattest Country Nauru Land History

    Sabse Jyada Mote Log Wala Desh: मोटापा एक वैश्विक समस्या बन चुका है। लेकिन कुछ देश ऐसे हैं जहाँ यह समस्या ज्यादा गंभीर है। इनमें सबसे ऊपर आता है नाउरू। यह दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटा द्वीप देश है, जिसे दुनिया के सबसे मोटे लोगों के देश के रूप में जाना जाता है। दुनिया में सबसे अधिक मोटे लोगों का प्रतिशत ओशिनिया (प्रशांत महासागर के द्वीप देश), संयुक्त राज्य अमेरिका, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देशों में पाया जाता है। इनमें से विशेष रूप से ओशिनिया के देशों, जैसे नाउरू, समोआ, तोंगा, और अमेरिका की स्थिति काफी चिंताजनक है।

    1. नाउरू एक छोटा द्वीप देश है, जिसका क्षेत्रफल मात्र 21 वर्ग किलोमीटर है। यह दुनिया का तीसरा सबसे छोटा देश है (क्षेत्रफल के आधार पर) और लगभग 12,000 लोगों की आबादी वाला एक स्वतंत्र द्वीप है।
    2. आज यहाँ के लोग कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं।देश की अधिकांश अर्थव्यवस्था आयातित सामान और विदेशी मदद पर निर्भर है।कभी यह देश अपनी खूबसूरती और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन अब पर्यावरण और स्वास्थ्य संकट ने इसे घेर लिया है।
    3. मोटापा न केवल एक शारीरिक स्थिति है, बल्कि यह कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बनता है। यह लेख मोटापे के कारणों, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, प्रभाव और भविष्य की चुनौतियों पर प्रकाश डालेगा।

    मोटापा: क्या है और इसे कैसे मापा जाता है

    मोटापा तब होता है जब शरीर में अत्यधिक वसा जमा हो जाती है। इसे बॉडी मास इंडेक्स (BMI) के आधार पर मापा जाता है।यदि किसी व्यक्ति का BMI 25 से 29.9 के बीच हो, तो उसे ‘अधिक वजन’ और30 या उससे अधिक हो, तो उसे ‘ मोटा (obese)’ माना जाता है।

    नाउरू का इतिहास: दुनिया का सबसे मोटा देश कैसे बना

    नाउरू, जो किसी समय एक खूबसूरत और समृद्ध द्वीप था, अब दुनिया का सबसे मोटा देश बन चुका है।

    यह कहानी केवल इसके लोगों के जीवनशैली में बदलाव की नहीं, बल्कि इसके इतिहास और संसाधनों के दोहन की भी है। इस लेख में हम नाउरू के इतिहास, फॉस्फेट की माइनिंग और इसके आर्थिक पतन से लेकर मोटापे की समस्या तक सबकुछ समझेंगे।

    ब्रिटिश जहाजों का आगमन और प्रारंभिक व्यापार

    1798 में पहली बार एक ब्रिटिश जहाज नाउरू पहुँचा। जहाज के यात्रियों ने नाउरू की प्राकृतिक खूबसूरती को देखकर इसे अपने यात्रा मार्ग में एक मिड-जर्नी ब्रेक पॉइंट के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया।

    ब्रिटिश शिप्स यहाँ से साफ पानी, पाम ऑयल और नारियल जैसी चीजें लेकर जाती थीं।बदले में, वे नाउरू के निवासियों को शराब और हथियार दिया करते थे।

    आदिवासी संघर्ष और गृह युद्ध

    1830 के आसपास, नाउरू में 12 अलग-अलग जनजातियाँ बसी हुई थीं।

    गन के बढ़ते उपयोग के कारण, 1878 में यहाँ 10 साल का एक गृह युद्ध छिड़ गया।इस संघर्ष में आधे से अधिक जनसंख्या की मृत्यु हो गई।

    जर्मनी का कब्जा और फॉस्फेट की खोज

    गृह युद्ध के बाद, जर्मनी ने नाउरू पर कब्जा कर लिया और हथियार जब्त कर लिए।1900 में, फॉस्फेट की खोज ने इस द्वीप को अंतरराष्ट्रीय महत्व का बना दिया।फॉस्फेट, जो खेती के लिए आवश्यक आर्टिफिशियल फर्टिलाइज़र के रूप में इस्तेमाल होता था, उस समय एक कीमती संसाधन था।1906 में जर्मनी ने पेसिफिक फॉस्फेट कंपनी बनाकर माइनिंग शुरू की। लेकिन इससे नाउरू के स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिला।

    प्रथम विश्व युद्ध और ब्रिटिश नियंत्रण

    प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद, नाउरू पर ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का नियंत्रण हो गया।इन देशों ने नाउरू से फॉस्फेट का बड़े पैमाने पर दोहन शुरू किया।फॉस्फेट रिजर्व का अधिकांश हिस्सा ब्रिटिश हाथों में चला गया।

    जापानी कब्जा और द्वितीय विश्व युद्ध

    1942 में, जापान ने नाउरू पर कब्जा कर लिया।जापानी नियंत्रण के दौरान, स्थानीय लोगों पर भारी अत्याचार किए गए।

    द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, नाउरू फिर से ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के संयुक्त नियंत्रण में आ गया।

    आज़ादी और समृद्धि का दौर

    1968 में नाउरू ने स्वतंत्रता प्राप्त की।आजादी के बाद, नाउरू के नेताओं ने फॉस्फेट बिजनेस को जारी रखा।नाउरू इतना समृद्ध हो गया कि यह दुनिया का दूसरा सबसे अमीर देश बन गया।नाउरू एयरलाइंस जैसी परियोजनाएँ भी शुरू की गईं। लेकिन इस समृद्धि का बड़ा हिस्सा नेताओं और अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार और गलत प्रबंधन में खत्म हो गया।

    फॉस्फेट के खत्म होने का असर

    1970 के दशक में फॉस्फेट का दोहन चरम पर पहुँच गया।1980 के दशक तक फॉस्फेट रिजर्व खत्म होने लगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह गिर गई।

    खनन ने द्वीप के पर्यावरण को नष्ट कर दिया।साफ पानी और खेती लायक जमीन समाप्त हो गई।

    आयातित भोजन और मोटापे की समस्या

    खनन के खत्म होने के बाद, नाउरू ने खाद्य आयात पर निर्भरता बढ़ा दी।ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से सस्ता जंक फूड आयात किया जाने लगा।टर्की टेल्स और मटन फ्लैप्स जैसे कम गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ, जिन्हें अन्य विकसित देशों में फेंक दिया जाता है, यहाँ के मुख्य आहार बन गए।यह खाद्य पदार्थ वसा और कैलोरी में उच्च हैं, जिससे नाउरू के लोग तेजी से मोटे होते गए।

    मोटापा और स्वास्थ्य संकट

    आज, नाउरू की 61 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मोटापे की समस्या से जूझ रही है।मोटापे के कारण डायबिटीज, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियाँ आम हो गई हैं।

    लगभग 40 प्रतिशत लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं।देश में स्वास्थ्य सेवाएँ भी सीमित हैं, जिससे समस्या और बढ़ रही है।

    नाउरू का वर्तमान परिदृश्य

    नाउरू में 61 प्रतिशत से अधिक वयस्क मोटे हैं। यह समस्या औपनिवेशिक काल से जुड़ी हुई है।पहले नाउरू के लोग समुद्री भोजन और प्राकृतिक फलों का सेवन करते थे। यूरोपीय उपनिवेशवाद के बाद आयातित भोजन, जैसे डिब्बाबंद मांस, फास्ट फूड और चीनी, उनकी भोजन शैली का हिस्सा बन गए।खनन के दौरान लोगों की नौकरियाँ कम मेहनत वाली थीं। फॉस्फेट खनन खत्म होने के बाद बेरोजगारी बढ़ी, और लोग निष्क्रिय जीवनशैली जीने लगे।खनन खत्म होने के बाद नाउरू पूरी तरह से आयातित भोजन पर निर्भर हो गया। ये भोजन उच्च कैलोरी और वसा युक्त होते हैं, जिससे मोटापा बढ़ा।नाउरू में शरीर के बड़े आकार को एक समय समृद्धि का प्रतीक माना जाता था। यह सामाजिक दृष्टिकोण भी मोटापे के बढ़ने का एक कारण बना।

    वैश्विक दृष्टिकोण

    1. दुनिया के सबसे मोटे देश (BMI के आधार पर): ओशिनिया (नाउरू, तोंगा, समोआ): पारंपरिक भोजन छोड़ने और आयातित फूड का सेवन मोटापे का कारण बना।
    2. संयुक्त राज्य अमेरिका: फास्ट फूड संस्कृति और शारीरिक गतिविधियों की कमी।
    3. खाड़ी देश (कुवैत, सऊदी अरब): आधुनिक जीवनशैली और उच्च कैलोरी वाले भोजन।
    4. महत्वपूर्ण कारण: फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता प्रचलन।शारीरिक गतिविधियों की कमी।आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव।

    भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान

    1. मोटापे से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ।नाउरू जैसे देशों में स्वास्थ्य बजट बढ़ाना।
    2. लोगों को स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधियों के महत्व के बारे में जागरूक करना।
    3. आयातित भोजन पर निर्भरता कम करके स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ाने के प्रयास।
    4. फास्ट फूड और चीनी पर कर लगाना।शारीरिक फिटनेस प्रोग्राम शुरू करना।

    नाउरू, जो कभी दुनिया का सबसे अमीर देश था, अब सबसे अधिक मोटापे से जूझ रहा है। यह देश मोटापे की समस्या का एक जीवंत उदाहरण है, जो सांस्कृतिक बदलाव, आर्थिक अस्थिरता और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के कारण उत्पन्न हुई। मोटापे के समाधान के लिए वैश्विक और स्थानीय दोनों स्तरों पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएँ, तो नाउरू और अन्य प्रभावित देश एक स्वस्थ और संतुलित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।

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