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    Tourism

    Sahasralinga Temple Story: शलमाला नदी में बसा सहस्रलिंग मंदिर, जहां जल में छिपे हैं हजारों शिवलिंग

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 30, 2025No Comments5 Mins Read
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    Sahasralinga Temple Story and History

    Sahasralinga Temple Story and History

    Sahasralinga Temple Story: भारत की आध्यात्मिक भूमि पर अनेक रहस्यमयी और चमत्कारी स्थल मौजूद हैं, लेकिन कर्नाटक के सहस्रलिंग मंदिर की बात ही कुछ और है। यह मंदिर शलमाला नदी के बीचों-बीच स्थित है, जहां हजारों शिवलिंग नदी की चट्टानों पर उकेरे गए हैं। सावन और महाशिवरात्रि के पावन अवसरों पर यह स्थल भक्तों के लिए अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र बन जाता है।आइए जानते हैं भगवान शिव का माहत्म्य दर्शाने वाले इस दिव्य स्थल के बारे में-

    सहस्रलिंग में एक साथ होते हैं हजारों शिवलिंगों के दर्शन

    कर्नाटक राज्य के सिरसी शहर से लगभग 14 किलोमीटर दूर स्थित यह पवित्र स्थल सहस्रलिंग के नाम से जाना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यहां नदी की चट्टानों पर हजारों शिवलिंग खुदे हुए हैं। जैसे ही शलमाला नदी का जलस्तर कम होता है, इन शिवलिंगों का समूह एक साथ उभरकर भक्तों के सामने आता है। हर शिवलिंग के ठीक सामने नंदी की कलात्मक प्रतिमा उकेरी गई है, जो इस स्थान को और भी विशिष्ट बना देती है। इस दृश्य को देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो जाते हैं और भगवान शिव की महिमा का साक्षात अनुभव करते हैं।

    विजयनगर के राजा ने करवाया था इनका निर्माण

    इतिहास के पन्नों में दर्ज जानकारी के अनुसार, इन शिवलिंगों का निर्माण 17वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के राजा सदाशिवराय वर्मा द्वारा करवाया गया था। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कि वर्ष के 365 दिन शिवलिंगों का प्राकृतिक जलाभिषेक होता रहे, इन्हें शलमाला नदी की धारा में ही स्थापित कराया। राजा की इस दूरदर्शिता ने सहस्रलिंग को न केवल धार्मिक रूप से पवित्र बनाया, बल्कि यह स्थापत्य और प्रकृति के अनोखे संगम का उदाहरण भी बन गया।

     संतान प्राप्ति के लिए श्रद्धालु करते हैं विशेष पूजा

    यह स्थल सिर्फ तीर्थ नहीं, बल्कि भक्तों की आस्था का केंद्र भी है। यहां यह मान्यता है कि जो दंपति संतान की प्राप्ति में बाधा का अनुभव कर रहे होते हैं, वे यहां आकर पूजा करते हैं तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सहस्रलिंग में की गई पूजा, विशेष रूप से सावन महीने में या महाशिवरात्रि पर, भगवान शिव की कृपा पाने का श्रेष्ठ माध्यम मानी जाती है।

     शिव के साथ-साथ अन्य देवताओं की भी होती है आराधना

    हालांकि सहस्रलिंग मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है, फिर भी यहां केवल शिवलिंग ही नहीं बल्कि नंदी, गणेश और नाग देवता की भी अनेक मूर्तियां चट्टानों पर उकेरी गई हैं। कुछ स्थानों पर एक ही चट्टान पर एक से अधिक शिवलिंग भी बने हुए हैं। यह धार्मिक विविधता श्रद्धालुओं को संपूर्ण देव परिवार के दर्शन का अनुभव कराती है।

     विशाल नंदी की प्रतिमा बनती है आकर्षण का केंद्र

    इस स्थान पर बनी नंदी की प्रतिमा अपने आकार और कलात्मकता के लिए विशेष प्रसिद्ध है। लगभग 12 फीट लंबी और 5 फीट चौड़ी यह मूर्ति एक ही पत्थर से निर्मित है और यह सहस्रलिंग का सबसे बड़ा आकर्षण बन चुकी है। इसे देखकर न केवल श्रद्धालु बल्कि इतिहास और शिल्पकला में रुचि रखने वाले पर्यटक भी अभिभूत हो जाते हैं।

    जल स्तर घटते ही उभर आता है शिवलिंगों का अद्भुत दृश्य

    श्रद्धालुओं के लिए सबसे रोमांचक और मनोहारी दृश्य तब होता है जब नदी का जलस्तर घटने लगता है। बारिश के मौसम में अधिकांश शिवलिंग जल में छिपे रहते हैं, लेकिन जब जल कम हो जाता है तो हजारों शिवलिंग एक साथ नजर आते हैं। यह दृश्य आस्था और रोमांच का अद्भुत संगम है। जो भक्तों को आत्मिक शांति और दिव्यता का अनुभव कराता है।

     सावन और महाशिवरात्रि पर लगता है भव्य मेला

    हर वर्ष सावन मास और महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल धार्मिक आयोजन होते हैं। इन पर्वों पर सहस्रलिंग में मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। शिवभक्त विशेष अनुष्ठान, रुद्राभिषेक, मंत्रोच्चार और व्रत-उपवास के साथ यहां भगवान शिव की उपासना करते हैं। यह अवसर सहस्रलिंग को भक्ति, भजन और भंडारों से जीवंत कर देता है।

    सहस्रलिंग मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह शिल्पकला, प्रकृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण भी है। शांत, हरियाली से घिरी शलमाला नदी और उसके भीतर शिवलिंगों की मौजूदगी इस बात की साक्षी है कि प्राचीन भारत की संस्कृति कितनी उन्नत और संवेदनशील थी। यहां का वातावरण ध्यान, साधना और शांति के लिए अत्यंत अनुकूल है।

    यात्रा से जुड़ी उपयोगी जानकारी

    सहस्रलिंग पहुंचने के लिए निकटतम प्रमुख शहर सिरसी है, जहां से टैक्सी या ऑटो से आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मई तक होता है। जब नदी का जलस्तर कम होता है और सभी शिवलिंग स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। स्थानीय प्रशासन द्वारा प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बनाए जाने के प्रयास भी सराहनीय हैं, जिससे यह स्थल साफ-सुथरा और पर्यावरण के अनुकूल बना हुआ हैं।

    सहस्रलिंग मंदिर एक आध्यात्मिक यात्रा है जो भक्तों को भौतिक और आत्मिक दोनों स्तरों पर संतोष देती है। यह मंदिर यह सिद्ध करता है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत में कितनी शक्ति, रहस्य और भक्ति छिपी हुई है। अगर आप भी एक बार इस धाम के दर्शन कर लें, तो यह अनुभव जीवन भर आपके साथ रहेगा।

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