सुप्रीम कोर्ट ने जजों से कहा है कि वे ऐसी टिप्पणियाँ न करें जो आपके सांप्रदायिक या लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर करें। इसने कहा कि भारत के किसी भी हिस्से को ‘पाकिस्तान’ कहना देश की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ है। सीजेआई ने बुधवार को यह टिप्पणी की। अदालत ने इस महीने की शुरुआत में कर्नाटक हाई कोर्ट के जज द्वारा की गई टिप्पणियों पर सुनवाई की।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के जज द्वारा की गई टिप्पणियों के वीडियो क्लिप का स्वत: संज्ञान लिया था। बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, बी आर गवई, सूर्यकांत और ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे। बेंच ने 20 सितंबर को मामले का स्वत: संज्ञान लिया और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी। बुधवार को पीठ ने उस रिपोर्ट को देखा जिसमें कहा गया था कि न्यायाधीश ने 21 सितंबर को सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ’21 सितंबर, 2024 को खुली अदालत की कार्यवाही के दौरान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा मांगी गई माफी को ध्यान में रखते हुए, हम इसे न्याय और संस्था की गरिमा के हित में मानते हैं कि इन कार्यवाहियों को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।’
अदालत ने कहा, ‘रजिस्ट्रार जनरल द्वारा पेश रिपोर्ट पर्याप्त रूप से संकेत देती है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के दौरान जो टिप्पणियाँ की गईं, वे कार्यवाही के दौरान असंबंधित थीं और उन्हें टाला जाना चाहिए था। समाज के हर वर्ग के लिए न्याय की धारणा उतनी ही अहम है, जितना कि न्याय को एक वस्तुनिष्ठ तथ्य के रूप में पेश करना।’
अदालत ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और कार्यवाही की लाइव स्ट्रीम न्याय तक पहुँच को बढ़ावा देने के लिए अदालतों की एक महत्वपूर्ण सुविधा है। इसने कहा कि सभी को इस तथ्य के बारे में सचेत रहना होगा कि अदालत में होने वाली कार्यवाही की पहुँच केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं है जो अदालत में मौजूद हैं, बल्कि अदालत के परिसर से कहीं आगे के दर्शकों तक भी पहुँचती है।
पीठ ने कहा, ‘न्यायाधीशों के रूप में हम यह तथ्य जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के पास जीवन के अपने अनुभवों के आधार पर कुछ पूर्वाग्रह होते हैं, चाहे वे शुरुआती अनुभव हों या बाद में मिले हों। साथ ही, यह अहम है कि प्रत्येक जज को अपने खुद के पूर्वाग्रहों के बारे में पता होना चाहिए। न्याय करने का मूल निष्पक्ष होना है।’
अदालत ने कहा कि न्यायालयों को न्यायिक कार्यवाही के दौरान ऐसी टिप्पणियाँ न करने के प्रति सावधान रहना होगा, जिन्हें स्त्री-द्वेषी या हमारे समाज के किसी भी वर्ग के लिए प्रतिकूल माना जा सकता है।
अदालत ने कहा, ‘ऐसी टिप्पणियों को नकारात्मक रूप में समझा जा सकता है, जिससे न केवल न्यायालय या उन्हें व्यक्त करने वाले न्यायाधीश पर बल्कि व्यापक न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है। इस विचार से… जबकि हम कार्यवाही को बंद करने के लिए इच्छुक हैं, हमने ये टिप्पणियाँ इस उम्मीद और अपेक्षा के साथ की हैं कि इलेक्ट्रॉनिक युग में न्यायिक प्रणाली में सभी हितधारकों पर जो मांगें रखी गई हैं, वे भविष्य में बार और बेंच दोनों की ओर से व्यवहार में उचित बदलाव लाएँगी।’