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    Shivaji Maharaj Ka Kila: शिवाजी महाराज ने जिसे ‘भारत का सबसे अभेद्य किला’ कहा, जानिए जिंजी किले की संपूर्ण गौरवगाथा

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 29, 2025No Comments9 Mins Read
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    Shivaji Maharaj Ka Kila Gingee Fort History (Photo – Social Media)

    Shivaji Maharaj Ka Kila Gingee Fort History (Photo – Social Media)

    History Of Gingee Fort: भारत की धरती पर अतीत के अद्भुत चिह्न आज भी जीवंत हैं। ऐतिहासिक दुर्गों और किलों की श्रृंखला में ‘जिंजी किला’ (Gingee Fort) एक ऐसा नाम है, जिसे “दक्षिण का अभेद्य दुर्ग” कहा जाता है। तमिलनाडु के विलुप्पुरम जिले में स्थित यह किला न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि इसकी रणनीतिक स्थिति और अपराजेयता ने इतिहास में इसे एक विशेष स्थान दिलाया। चोल राजाओं से लेकर मराठाओं और अंग्रेजों तक, जिंजी किले की कहानी शक्ति, संघर्ष और साहस की कहानी है। आइए इस महान किले के इतिहास, वास्तुकला और महत्व को विस्तार से जानें।

    कहाँ स्थित है जिंजी किला?

    जिंजी किला (Gingee Fort) भारत के तमिलनाडु(Tamil Nadu)राज्य के विलुप्पुरम(Villupuram) जिले में स्थित है। यह किला चेन्नई शहर से लगभग 157 किलोमीटर दूर और पांडिचेरी (पुडुचेरी) से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक ऊँची पहाड़ी क्षेत्र में बना हुआ है, जो इसे स्वाभाविक रूप से अभेद्य बनाता है।

    जिंजी किले का निर्माण

    जिंजी किले का निर्माण मूल रूप से 9वीं से 10वीं सदी के बीच चोल वंश के शासनकाल में प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में यह एक साधारण पत्थर की संरचना थी, जिसका उपयोग मुख्यतः एक चौकी या गढ़ी के रूप में होता था।

    बाद में, 11वीं से 12वीं सदी के दौरान चोल वंश के पतन के बाद, काकतीय वंश और फिर पांड्य वंश ने इस क्षेत्र पर अधिकार किया और किले का और भी विस्तार किया। लेकिन जिंजी किले को आज जिस भव्य रूप में देखा जाता है, उसका प्रमुख निर्माण कार्य 13वीं सदी के उत्तरार्ध और 16वीं सदी के बीच हुआ, जब स्थानीय शासकों ने इसकी रणनीतिक महत्ता को पहचानकर इसे एक विशाल दुर्ग में तब्दील किया।

    विजय नगर साम्राज्य का काल

    14वीं सदी के मध्य में, जब दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य का उदय हुआ, तो जिंजी किला उनकी महत्वपूर्ण चौकियों में से एक बन गया। विजयनगर के शासकों ने इस किले की किलेबंदी को और भी अधिक सुदृढ़ किया। विशेष रूप से, विजयनगर साम्राज्य के जनरल नायक वंश (जिन्हें सेनापति नायक कहा जाता था) ने इस किले का बहुत विकास किया। किले के चारों ओर मजबूत दीवारें, गुप्त सुरंगें, विशाल द्वार, जलाशय, मंदिर और अनगिनत सुरक्षात्मक निर्माण इसी काल में बने। तीन प्रमुख पहाड़ियों राजा गिरि, कृष्ण गिरि और चंद रायन दुर्ग पर फैले इस किले का ऐसा जाल बिछाया गया कि शत्रु के लिए इसमें प्रवेश कर पाना लगभग असंभव था।

    मुस्लिम आक्रमण और मारवाड़ नायक

    1565 ई. में तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य की हार के बाद दक्षिण भारत में सत्ता का संतुलन बिगड़ गया।

    जिंजी किले पर मारवाड़ नायकों (Maratha Nayaks) का नियंत्रण हो गया, जिन्होंने इसे एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में चलाया। यह समय जिंजी के लिए स्वर्णयुग जैसा था। उन्होंने किले की मरम्मत करवाई, नये भवन बनवाए और इसे एक सम्पन्न केंद्र बनाया। मारवाड़ नायकों के अधीन, जिंजी किला एक शक्तिशाली गढ़ और सांस्कृतिक केंद्र बनकर उभरा। वे किले से स्वतंत्र रूप से शासन करते थे और दक्षिण भारत के कई हिस्सों पर अपना प्रभाव फैलाते थे।

    मुगलों का आक्रमण

    17वीं सदी के अंत में, औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत में अपने शासन को फैलाने के लिए सेना भेजी। 1687-1698 के बीच, लगभग 8-9 वर्षों तक मुगलों ने जिंजी किले को घेरकर रखा।

    इस समय किले में मराठा सेनापति राजा राम (छत्रपति शिवाजी के पुत्र) ने मुगलों के विरुद्ध शानदार प्रतिरोध किया। हालांकि अंततः भारी संख्या में सैनिकों और लंबी घेराबंदी के बाद मुगलों ने किले पर अधिकार कर लिया, परन्तु इस संघर्ष ने जिंजी किले को अमर कर दिया। इसने दक्षिण में मराठा शक्ति और मुगलों के बीच तनाव की एक नई कहानी लिखी।

    मराठा साम्राज्य और शिवाजी का संबंध

    17वीं सदी में जब मुगलों ने दक्षिण भारत की ओर अपना विस्तार करना शुरू किया, तब जिंजी किला एक बार फिर इतिहास के केंद्र में आ गया। सन 1677 में मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिंजी किले पर अधिकार कर लिया। शिवाजी ने इसे अपने दक्षिणी अभियानों का प्रमुख केंद्र बनाया। किले की कठिन स्थिति और मजबूत किलेबंदी ने शिवाजी की सेनाओं को मुगलों के विरुद्ध मजबूती प्रदान की।

    शिवाजी की मृत्यु के बाद, उनके बेटे राजाराम महाराज ने मुगलों के अत्याचारों से बचने के लिए जिंजी किले में शरण ली। मुगल सम्राट औरंगजेब ने राजाराम को पकड़ने के लिए विशाल सेना भेजी, लेकिन जिंजी किले की अपराजेयता के आगे मुगलों को तीन साल तक संघर्ष करना पड़ा।

    अंततः 1698 में, लंबी घेराबंदी और छल-कपट के बाद मुगलों ने किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन राजाराम पहले ही सुरक्षित भागने में सफल हो गए थे। इस घटना ने जिंजी किले की अपराजेयता और रणनीतिक महत्व को एक बार फिर सिद्ध कर दिया।

    यूरोपीय शक्तियों का आगमन

    18वीं सदी में जिंजी किले ने एक नया मोड़ देखा। मुगलों के बाद यह किला कार्नाटिक नवाबों के अधिकार में आया, जिन्होंने बाद में फ्रांसीसियों के साथ हाथ मिलाया। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच चल रहे संघर्ष जिसे ‘कर्नाटक युद्ध’ कहा जाता है में जिंजी किले का रणनीतिक महत्व बहुत बढ़ गया था।

    अंततः 1761 में अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा कर लिया और इसे अपने प्रशासनिक और सैन्य नियंत्रण में ले लिया। अंग्रेजों के अधीन आने के बाद जिंजी किले का सैन्य महत्व धीरे-धीरे कम होता गया, और यह एक ऐतिहासिक धरोहर बनकर रह गया।

    जिंजी किले का भूगोल

    यह किला लगभग 800 फीट (लगभग 240 मीटर) ऊँचा है, जो समुद्र तल से नहीं बल्कि आसपास के मैदानी क्षेत्र के सापेक्ष मापा गया है। चेन्नई से जिंजी (सेनजी) की दूरी लगभग 157 किलोमीटर है। यहाँ की भू-आकृति में तीन प्रमुख पहाड़ियाँ शामिल हैं, जिनमें तीसरी पहाड़ी का सही नाम चंद्रगिरि या चंद्रयानदुर्ग है, हालांकि कुछ स्रोतों में चंद्ररेन्दुर्ग का भी उल्लेख मिलता है। किले का निचला परकोटा लगभग 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, और इसकी दीवारों की लंबाई लगभग 13 किलोमीटर है। किला त्रिकोणीय संरचना में बना है और चट्टानी पहाड़ियों तथा घने जंगलों से घिरा हुआ है। इसकी सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत थी कि अंग्रेजों ने इसे “पूर्व का ट्रॉय” कहा था। यहाँ 60 फीट चौड़ी दीवारें और 80 फीट चौड़ी खाई मौजूद है, जो इसकी अभेद्यता को और भी मजबूत बनाती हैं। वर्षा जल संचयन के लिए किले के भीतर जलाशय (हौज) और परिष्कृत जल वितरण प्रणाली विकसित की गई थी, जिससे लम्बी घेराबंदी के दौरान भी जल आपूर्ति सुनिश्चित रहती थी।

    जिंजी किले की संरचना

    त्रिभुजाकार सुरक्षा संरचना – जिंजी किले का प्रमुख आकर्षण उसकी त्रिभुज जैसी रचना है। तीनों पहाड़ियों पर अलग-अलग किले बने हैं, और इनके बीच घाटी में प्रमुख नागरिक और सैनिक गतिविधियाँ संचालित होती थीं। प्रत्येक किले का अपना द्वार, दीवारें और रक्षा प्रबंध थे।

    राजगिरी दुर्ग – यह सबसे ऊँची और मजबूत पहाड़ी है। यहाँ से पूरे क्षेत्र पर नजर रखी जा सकती थी। इसके भीतर महल, जलाशय, दरबार हॉल और गोदाम जैसे कई निर्माण मौजूद हैं।

    कृष्णगिरी दुर्ग – यह किला मुख्यतः चौकसी और आपातकालीन शरण के लिए था। यहाँ से शत्रु की हलचल पर निगरानी रखी जाती थी।

    चंद्रयान दुर्ग – अपेक्षाकृत छोटा लेकिन रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किला। इसका उपयोग युद्ध के समय संदेश संप्रेषण और संकेत देने के लिए किया जाता था।

    परकोटा (Outer Fortifications) – पूरा किला ऊँची और मजबूत दीवारों से घिरा है। दीवारें 13 फीट से 25 फीट तक मोटी हैं और ऊंचाई भी 30 फीट तक जाती है। परकोटा के भीतर कई द्वार और छोटे-छोटे रास्ते बनाए गए हैं ताकि शत्रु की घुसपैठ को रोका जा सके।

    सुरक्षा के लिए खाइयाँ और पत्थर की बाड़ – किले के चारों ओर गहरी खाइयाँ खोदी गई थीं, जिनमें पानी भरा रहता था। इससे सीधे आक्रमण को रोका जाता था। साथ ही, चट्टानों का ऐसा जाल बनाया गया था जिससे घुसपैठ मुश्किल हो जाती थी।

    महल और भवन – राजगिरी में मुख्य महल परिसर था जिसमें राजा और सेना के प्रमुख अधिकारी रहते थे। इसमें विशाल दरबार हॉल, शयनकक्ष, स्नानगृह और पूजा स्थल भी थे। महल की दीवारों पर भित्तिचित्र और मूर्तिकला के नमूने भी मिलते हैं।

    जल प्रबंधन प्रणाली – किले में जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था थी। बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए कई टैंक, कुएं और बावड़ियाँ बनाई गईं। सबसे प्रसिद्ध जलाशय अन्नाकुलम और चेरुकुलम हैं, जो आज भी देखे जा सकते हैं।

    मंदिर और पूजा स्थल – किले के भीतर कई छोटे-बड़े मंदिर बने हुए हैं, जिनमें भगवान रंगनाथस्वामी का मंदिर प्रमुख है। ये मंदिर दर्शाते हैं कि युद्ध और राजनीति के बीच भी धार्मिक गतिविधियाँ निरंतर चलती रहीं।

    निर्माण शैली

    दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का गहरा प्रभाव इस किले पर दिखाई देता है।

    ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित दीवारें और भवन, युद्ध-प्रतिरोधक तकनीकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।

    संकरी और घुमावदार चढ़ाई वाली रास्तों से किले की पहाड़ियों तक पहुँचना संभव है, ताकि हमलावर सेना आसानी से एक साथ ऊपर न पहुँच सके।

    पत्थरों की सतह पर स्थान-स्थान पर जल निकासी के लिए विशेष चैनल बने हुए हैं, जिससे वर्षा का पानी आसानी से बाहर निकल जाता है।

    जिंजी किले का सांस्कृतिक महत्व

    तमिलनाडु के विलुप्पुरम जिले में स्थित जिंजी किला भारत के सबसे अभेद्य दुर्गों में से एक माना जाता है। चोल वंश द्वारा निर्मित इस किले का विस्तार होयसाल, विजयनगर, मराठा और मुगल शासकों के अधीन होता रहा। छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके पुत्र राजाराम ने इसे दक्षिण भारत में मराठा प्रतिरोध का केंद्र बनाया। कठिन भूगोल, विशाल प्राचीरें, गहरी खाइयाँ और गुप्त सुरंगों के कारण यह किला सदियों तक लगभग अजेय बना रहा। जिंजी किला न केवल एक सैन्य शक्ति का प्रतीक रहा, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक विविधता और स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल भी है। आज यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्यटन स्थल और भारत की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित है, जो अतीत की वीरता और शौर्य की गाथाओं को जीवंत करता है।

    जिंजी किले का पर्यटन महत्व

    आज जिंजी किला तमिलनाडु का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। इतिहास प्रेमियों और साहसिक यात्रियों के लिए यह एक अद्भुत गंतव्य है। किले की भव्यता, ऊँचाई से दिखने वाला मनोरम दृश्य और इसके भीतर बिखरे हुए प्राचीन अवशेष आज भी आगंतुकों को अतीत में ले जाते हैं।2024 में जिंजी किले को मराठा सैन्य परिदृश्य के हिस्से के रूप में यूनेस्को की सूची के लिए नामांकित किया गया। इसके अलावा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा इस किले का संरक्षण किया गया है और इसे राष्ट्रीय महत्त्व की धरोहर घोषित किया गया है।

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