Sinhagad Kile Ka Itihas�in Hindi: महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित,’सिंहगढ़ किला’ भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग है । सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में 1328 की ऊँचाई पर स्थित यह किला कई लड़ाइयों का स्थल होने के साथ – साथ अपने रणनीतिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है|
प्रारंभिक इतिहास
सिंहगढ़ महाराष्ट्र के पुणे शहर से लगभग 49 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक प्राचीन किला है। सिंहगढ़ किले का मूल नाम ‘कोंढाणा’ था। इस ऐतिहासिक किले का इतिहास, 14वीं शताब्दी से जुड़ा है|
दक्कन सल्तनत के मुस्लिम इतिहासकार, फरिश्ता द्वारा दर्ज विवरण के अनुसार, सिंहगढ़ किले को 1340 में दिल्ली सल्तनत के मोहम्मद बिन तुगलक ने तत्कालीन शासक, कोली सरदार नाग नायक से छीन लिया था । इस किले पर कब्जा करने के लिए मोहम्मद बिन तुगलक की सेना को आठ महीने की घेराबंदी करनी पड़ी थी।
दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद, किला बहमनी सल्तनत का हिस्सा बन गया। जबकि 1485 में किला अहमदनगर की निज़ामशाही के अधीन आ गया। तथा 15वीं शताब्दी के अंत तक बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत ने किले पर अपना नियंत्रण कर लिया ।
17वीं सदी का संघर्ष
17वीं सदी में सिंहगढ़ का इतिहास आदिलशाही और मुगल साम्राज्य की कूटनीति के साथ-साथ मराठा साम्राज्य के संघर्ष का गवाह बना।
जानते है उसी संघर्ष और कूटनीति से जुड़े कुछ तथ्य-
- छत्रपति शिवजी महाराज के पिता ‘शाहजी भोसले ‘, जो आदिलशाही के अधीन सेनापति थे, उन्हें पुणे क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। हालांकि शिवाजी महाराज ने अपने पिता की अधीनता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और स्वतंत्र स्वराज्य की स्थापना के लिए प्रयास शुरू किया। 1647 में, शिवाजी महाराज ने आदिलशाही सरदार सिद्दी अंबर को विश्वास में लेकर कोंढाणा किले (सिंहगढ़) पर नियंत्रण हासिल किया|
- सिद्दी अंबर को शिवाजी महाराज पर पूर्ण भरोसा था कि वह किले की सुरक्षा बेहतर तरीके से कर सकते हैं। हालांकि आदिलशाह ने इसे देशद्रोही कृत्य मानते हुए सिद्दी अंबर को जेल में डाल दिया। तथा शाहजी भोसले को एक मनगढ़ंत अपराध में कैद कर लिया, ताकि वो शिवाजी महाराज पर दबाव बना सके।
- इसके बाद शिवाजी महाराज ने 1656 में बापूजी मुद्गल देशपांडे की मदद से किले पर फिर से कब्जा कर लिया। जिसके लिए बापूजी मुद्गल देशपांडे ने किले के तत्कालीन कमांडर को शिवाजी महाराज के पक्ष में आने के लिए खेड़ शिवपुर गांव में जमीन देकर राजी कर लिया था । और इस तरह बिना किसी बड़े युद्ध के शिवाजी महाराज ने किले पर नियंत्रण कर लिया था।
- इसके बाद 1662, 1663 और 1665 में कोंढाणा किले पर मुगलों द्वारा कई हमले किये गए । 1664 में मुगल सेनापति शाइस्ता खान ने रिश्वत देकर किले को कब्जे में लेने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा।
- 1665 में, मुगल सेनापति मिर्जा राजा जय सिंह प्रथम तथा शिवजी महाराज के बिच पुरंदर की संधि हुई। इस संधि के तहत शिवाजी महाराज को मजबूरन कोंढाणा सहित 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े।
‘गढ़ आला पण सिंह गेला’
1670 में सिंहगढ़ का युद्ध हुआ। यह युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति तानाजी मालुसरे और उनके तथा मुगल सेना के बिच हुआ जिसका नेतृत्व उदयभान सिंह राठौड़ कर रहे थे, जो एक राजपूत सरदार थे ।इस युद्ध में तानाजी मालुसरे शहीद हो गए लेकिन उनके भाई सूर्याजी ने कमान संभाली और कोंडाना किले पर कब्जा कर लिया । जिसके बाद किले का मूल नाम ‘कोंढाणा’ बदलकर सिंहगढ़ रखा गया ।
युद्ध के बाद जब शिवाजी महाराज को उनके सेनापति तानाजी मालुसरे के मौत की खबर मिली तो उन्होंने अपना दुःख व्यक्त करते हुए कहा की, ‘गढ़ आला, पण सिंह गेला’। युद्ध में तानाजी के योगदान की याद में किले पर तानाजी मालुसरे की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई थी।
- इस युद्ध के द्वारा शिवाजी महाराज तीसरी बार सिंहगढ़ किले पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे । जिसके बाद 1689 तक किले पर मराठा साम्राज्य का राज रहा।
- 1689 में छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद एक बार फिर से मुगल साम्राज्य ने किले पर कब्ज़ा कर लिया । हालांकि 1693 में, मराठा सरदार बलकवड़े ने सिंहगढ़ किले पर फिरसे विजय प्राप्त करते हुए मुगलों से छीन लिया।
- जब मुगलों ने सतरा किलों पर हमला किया, तो छत्रपति राजाराम महाराज ने सिंहगढ़ किले में ही शरण ली थी । हालांकि 3 मार्च, 1700 को सिंहगढ़ किले पर राजाराम महाराज की मृत्यु हो गई ।
- 1703 में औरंगज़ेब ने अपने दक्षिण भारत अभियान के तहत एक बार फिर इस किले को मराठाओं से छीन लिया। हालांकि 1706 में एक बार फिर किला मराठाओं के नियंत्रण में था ।।
पेशवा युग
- सिंहगढ़ किला मराठा साम्राज्य और बाद में 1817 तक पेशवा शासन के अधीन रहा। इस दौरान किले का उपयोग, पुणे पर होने वाले आक्रमणों से शरण लेने और विद्रोहियों को बंदी बनाने के लिए किया जाता था।
- 1817 में, तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच निर्णायक लड़ाई हुई । जिसमे मराठा सम्राज्य को शिकस्त का सामना करना पड़ा और सिंहगढ़ किला और कई अन्य मराठा किले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गए।
सिंहगढ़ का रणनीतिक और प्राकृतिक महत्त्व
रणनीतिक महत्त्व के कारण सिंहगढ़ किला मराठा साम्राज्य, आदिलशाही और मुगलों के बीच लगातार विवाद का केंद्र बना रहा ।किले की खड़ी चट्टानें और दुर्गम मार्ग इसे अभेद्य बनाते थे। यह किला पुणे क्षेत्र की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण गढ़ था। किले के मुख्य द्वार को पुणे दरवाजा और कोटा दरवाजा कहा जाता है। यह दोनों द्वार दुश्मनों के आक्रमण को रोकने के लिए बनाए गए थे। तथा किले की बनावट में गुप्त सुरंगें, विशाल द्वार, और पानी के कुंड शामिल हैं। इसकी संरचना इस तरह से बनाई गई थी कि दुश्मनों के लिए इसे जीतना लगभग असंभव हो।
यह किला सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में भुलेश्वर रेंज की एक अलग चट्टान पर समुद्र तल से लगभग 1312 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। जो इसे प्राकृतिक सुंदरता भी प्रदान करती है तथा इसकी रणनीतिक स्थिति इसे दुश्मनों के लिए एक चुनौतीपूर्ण किला बनाती थी।
सिंहगढ़ का पर्यटक तथा संस्कृतिक महत्त्व
कई ऐतिहासिक लड़ाइयों का गवाह बना सिंहगढ़ का किला, मराठा साम्राज्य की वीरता, साहस, संस्कृति और बलिदान का प्रतीक है ।
यह किला न केवल तानाजी मालुसरे के बलिदान के लिए बल्कि मराठा साम्राज्य के संघर्ष के लिए भी जाना जाता है । तथा मराठा साम्राज्य का गौरवान्वित करने वाला इतिहास भी दर्शाता है ।तथा वर्त्तमान समय में सिंहगढ़ किला महाराष्ट्र के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। जिसका इतिहास पर्यटकों को आकर्षित करता है।