
Sri Lanka Famous Kelaniya Temple (Photo – Social Media)
Sri Lanka Famous Kelaniya Temple (Photo – Social Media)
Sri Lanka Famous Kelaniya Temple: श्रीलंका अपने प्राकृतिक सुंदरता, भव्य इतिहास और धार्मिक परंपरा के लिए जगभर में लोकप्रिय है। इस द्वीपीय देश की पहचान उसके पुरातन मंदिरों, स्तूपों और आध्यात्मिक स्थानों से जुड़ी है। जो न केवल बौद्ध का अनुसरण करनेवाले उनके अनुयायियों के लिए पवित्र हैं, बल्कि सांस्कृतिक पर्यटन के प्रमुख केंद्र बिंदु भी हैं। इन्हीं अलौकिक स्थलों में से एक है केलानिया राज महा विहार (Kelaniya Raja Maha Vihara), जिसे प्रचलित रूप से केलानिया मंदिर भी कहा जाता है। श्रीलंका के सबसे पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थलों यह मंदिर कोलंबो से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में, केलानी नदी के तट पर स्थित है।
केलानिया मंदिर का पुरातात्विक महत्व

पुरातन सिंहल ग्रंथों महावंश और दीपवंश के अनुसार भगवान बुद्ध ने अपने बुद्धत्व प्राप्त करने के पाँच वर्षों बाद,लगभग 580 ईसा पूर्व परिनिर्वाण से पहले श्रीलंका की तीसरी और अंतिम यात्रा के दौरान केलानिया का भ्रमण किया था। यह यात्रा उन्होंने नागराज मणियक्किक (Maniakkhika) के निमंत्रण पर की थी। उस समय नागराज चूलोदरा और महोदरा के बीच एक रत्नजड़ित सिंहासन को लेकर विवाद चल रहा था। ऐसे में भगवान बुद्ध ने दोनों के बीच मध्यस्थता की उन्हें धर्म का उपदेश दिया और विवाद को शांत किया। यह माना जाता है कि जहाँ उन्होंने उपदेश दिया, वही स्थान आज केलानिया मंदिर का प्रमुख गर्भगृह है। महावंसा सहित कई प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में इस यात्रा के दौरान गौतम बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेश का विवरण मिलता है। जिसकारण यह स्थल श्रीलंका के बौद्ध इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और श्रद्धास्पद स्थान बन जाता है। यही कारण है कि केलानिया मंदिर आज भी लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
रामायण से संबंध

केलानिया मंदिर केवल बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, बल्कि यह श्रीलंका की सांस्कृतिक बहुलता और धार्मिक सामंजस्य का भी जीवंत प्रतीक है। मंदिर परिसर में रावण के अनुज विभीषण से जुड़ी एक महत्वपूर्ण लोककथा लोकप्रिय है। जिसके अनुसार भगवान राम द्वारा रावण के पराजय के बाद उनके अनुज विभीषण का राज्याभिषेक इसी स्थल पर किया गया था। यह मान्यता श्रीलंका के ‘रामायण ट्रेल’ से संबंधित धार्मिक स्थलों में प्रमुख स्थान रखती है। मंदिर की दीवारों पर बने भित्ति चित्रों में इस ऐतिहासिक दृश्य को दर्शाया गया है, जो दर्शकों को उस कालखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक गहराइयों से जोड़ता है। श्रीलंकाई लोक आस्था में विभीषण को देश के चार प्रमुख संरक्षक देवताओं में से एक माना जाता है। विशेष रूप से पश्चिमी क्षेत्र का रक्षक, जहाँ यह मंदिर स्थित है।
मंदिर का निर्माण

बौद्ध अनुयायियों का विश्वास है कि भगवान बुद्ध ने अपनी बुद्धत्व प्राप्ति के आठवें वर्ष लगभग 580 ईसा पूर्व, इस स्थान पर पदार्पण किया था, जिससे यह स्थल पवित्र हुआ। महावंश जैसे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि यहां बने मूल स्तूप में वही रत्नजड़ित सिंहासन प्रतिष्ठित है जिस पर भगवान बुद्ध ने उपदेश दिया था। इस सिंहासन की कहानी नागदीप क्षेत्र में बुद्ध की दूसरी यात्रा से जुड़ी है जहाँ उन्होंने दो नाग राजाओं – चूलोदरा और महोदरा के बीच के विवाद को शांत किया। इस उपदेश से प्रभावित होकर नागराज मणियक्किक ने वह सिंहासन पूजा हेतु प्राप्त किया और उसे केलानिया में स्थापित कर एक चैत्य का निर्माण करवाया।
भगवान बुद्ध की इस यात्रा की स्मृति में वहाँ एक स्तूप का निर्माण किया गया, जहाँ वह रत्नजड़ित सिंहासन प्रतिष्ठित किया गया। समय के साथ इस मंदिर का विस्तार होता गया और यह श्रीलंका के बौद्ध धर्म के केंद्रों में से एक बन गया। पोलोन्नारुवा काल (11वीं से 13वीं शताब्दी) के दौरान यह मंदिर बौद्ध शिक्षा और साधना का प्रमुख केंद्र बन गया था।
हालाँकि 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा किए गए आक्रमणों में इस मंदिर को गंभीर क्षति पहुँची। उसके बाद 18वीं शताब्दी में किंग कीर्ति श्री राजसिंह के संरक्षण में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रसिद्ध समाजसेविका हेलेना विजेवार्धने (Helena Wijewardene) के आर्थिक सहयोग से इस मंदिर का सौंदर्यीकरण हुआ और श्रीलंका के प्रसिद्ध चित्रकार सोलियस मेंडिस (Solias Mendis) द्वारा भित्ति चित्रों का निर्माण किया गया।
वास्तुकला और कलात्मक विशेषताएँ

केलानिया मंदिर की निर्माण कला प्राचीन और आधुनिक सिंहली स्थापत्य का सुंदर मिश्रण है। मंदिर परिसर में कई प्रमुख बनावट हैं जिनमें मुख्य मूर्ति भवन (विहार गे), स्तूप (डगोबा), और पवित्र बोधि वृक्ष शामिल हैं।
मुख्य मूर्ति भवन (Vihara Ge) – मुख्य मूर्ति भवन इस मंदिर का प्रमुख बिंदु है जिसे दो भागों में बाँटा गया है – पुराना मूर्ति भवन और नया मूर्ति भवन। पुराने भाग में प्राचीन भित्तिचित्र और मूर्तियाँ हैं जबकि नया भवन अपने भव्य और जीवंत भित्तिचित्रों के लिए लोकप्रिय है, जिन्हें सोलियस मेंडिस ने चित्रित किया था। इन चित्रों में जातक कथाओं (बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ), बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएँ और श्रीलंका में बौद्ध धर्म के इतिहास से जुड़ी कहानियाँ दर्शाई गई हैं।
इस भवन के भीतर भगवान बुद्ध की कई मनमोहक मूर्तियाँ स्थापित हैं जिनमें खड़ी, बैठी और लेटी हुई मुद्राएँ शामिल हैं। विशेष रूप से बुद्ध की लेटी हुई मूर्ति (Reclining Buddha) परम निर्वाण (Parinibbana) की अवस्था को दर्शाती है और दर्शकों को गहरे ध्यान और शांति का अनुभव कराती है।
स्तूप (Dagoba) – केलानिया का स्तूप धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठकर उपदेश दिया था। श्रीलंकाई परंपरा के अनुसार यह घंटी-आकृति वाला स्तूप श्रद्धालुओं के लिए पूजा, ध्यान और पुष्प अर्पण का प्रमुख स्थल है।
पवित्र बोधि वृक्ष – मंदिर परिसर में स्थित बोधि वृक्ष भी अत्यंत पूजनीय है। यह वृक्ष श्री महा बोधि (अनुराधापुर) से लाई गई एक पवित्र शाखा से उत्पन्न हुआ है।जिसका मूल बोधगया (भारत) का वह वृक्ष है जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह वृक्ष श्रद्धालुओं के चिंतन, पूजा और आराधना का प्रमुख केंद्र है।
धार्मिक महत्त्व और परंपराएँ

केलानिया मंदिर न केवल ऐतिहासिक रूप से बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं के कारण भी श्रीलंका का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ हर वर्ष दुरुतु पेराहेरा (Duruthu Perahera) नामक एक भव्य धार्मिक शोभायात्रा आयोजित की जाती है जो जनवरी माह की पूर्णिमा (Poya Day) को होती है। इस पर्व के दौरान इस शोभायात्रा में भगवान बुद्ध की श्रीलंका यात्रा की झाँकी, पारंपरिक नृत्य, हाथी और दीपों से सुसज्जित जुलूस निकाला जाता है। यह उत्सव बौद्ध अनुयायियों के लिए एक आध्यात्मिक उत्सव बन गया है और दुनियाभर से सैलानी इसे देखने आते हैं।
भारतीय संदर्भ में केलानिया मंदिर

केलानिया मंदिर न केवल श्रीलंका की धार्मिक परंपरा का प्रतीक है, बल्कि भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक तथा आध्यात्मिक संबंधों का भी सजीव उदाहरण है। सम्राट अशोक के काल में उनके पुत्र अर्हत महिंद और पुत्री संघमित्रा ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु जो ऐतिहासिक प्रयास किए, उन्होंने इस पवित्र परंपरा को और भी सुदृढ़ किया। महिंद ने राजा देवानंपिया तिस्सा को बौद्ध धर्म से परिचित कराया, जबकि संघमित्रा बोधि वृक्ष की एक पावन शाखा भारत से श्रीलंका लेकर आईं, जिसे अनुराधापुर में स्थापित किया गया। यही वृक्ष आज श्री महा बोधि के नाम से प्रसिद्ध है और अत्यंत श्रद्धा से पूजा जाता है। हालांकि यह उल्लेखनीय है कि केलानिया मंदिर का इतिहास इन घटनाओं से भी पूर्व का है। क्योंकि इसकी स्थापना का संबंध स्वयं भगवान बुद्ध की तीसरी और अंतिम श्रीलंका यात्रा से जुड़ा हुआ है।
केलानिया मंदिर से जुड़ी दिलचस्प तथ्य

केलानिया मंदिर श्रीलंका के 16 सबसे पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है जिन्हें ‘Solosmasthana’ कहा जाता है।
कहा जाता है कि जब जब सम्राट अशोक के पुत्र, अर्हत महिंद (Arhath Mahinda), श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रसार करने आए थे, तब उन्होंने कई पवित्र स्थानों का भ्रमण किया और ध्यान किया था।
मंदिर की दीवारों पर बने भित्ति चित्र, जो 20वीं सदी के प्रसिद्ध कलाकार सोलियास मेंडिस (Solias Mendis) द्वारा बनाए गए हैं, बौद्ध धर्म के इतिहास को दर्शाते हैं।
केलानिया मंदिर का वार्षिक पेराहेरा उत्सव, जिसे ‘दुरूथु पेराहेरा’ (Duruthu Perahera) के नाम से जाना जाता है, श्रीलंका के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध जुलूसों में से एक है। यह विशेष रूप से कैंडी (Kandy) के प्रसिद्ध ‘एसाला पेराहेरा’ (Esala Perahera) के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध और भव्य माना जाता है।
केलानिया मंदिर कैसे पहुँचें?
केलानिया मंदिर की यात्रा करना श्रीलंका आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक आसान और सरल अनुभव है। यह पवित्र स्थल कोलंबो शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित केलानिया कस्बे में स्थित है जो कोलंबो(Colombo)जिले का हिस्सा है। अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए बंडारानायके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (Bandaranaike International Airport) इस मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा है । जो लगभग 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह दूरी ट्रैफिक की स्थिति के अनुसार 45 मिनट से एक घंटे तक में तय की जा सकती है। रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए कोलंबो फोर्ट रेलवे स्टेशन से केलानिया रेलवे स्टेशन तक नियमित लोकल ट्रेन सेवाएँ उपलब्ध हैं। स्टेशन से मंदिर तक की दूरी छोटी है, जिसे पैदल या टुक-टुक से आसानी से तय किया जा सकता है। सड़क मार्ग भी अत्यंत सुविधाजनक है । कोलंबो से टैक्सी, बस या टुक-टुक जैसे स्थानीय साधनों के माध्यम से मंदिर तक आराम से पहुँचा जा सकता है, जिससे यह तीर्थ स्थल श्रद्धालुओं के लिए सुलभ और आकर्षक बन जाता है।