
The aroma of thekua and the tadka of baati chokha
बिहार: बिहार सिर्फ अपने इतिहास, बौद्ध स्थलों या शिक्षा के लिए ही नहीं दुनिया में प्रसिद्ध है बल्कि बिहार की असली पहचान उसकी मिट्टी में रचे-बसे लोक पर्वों, मेलों और पारंपरिक व्यंजनों से होकर गुजरती है। यहां के त्योहार केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक भर नहीं हैं, बल्कि सामाजिक समरसता, लोकसंगीत, लोककला और देसी स्वाद का खजाना भी हैं। विदेशों तक अपनी दिव्यता और महिमा की बखान करता यहां का महापर्व छठ पूजा की गहरी आस्था हो या सोनपुर मेले की रौनक, हर आयोजन में बिहार की खास पहचान को बयां करती है। चहल-पहल और रौनकों के आकर्षण से जुड़े बिहार के रंग-बिरंगे मेले और त्योहार इस राज्य की परंपरा, आस्था और स्वाद की अनोखी मिसाल बन चुके हैं। आइए जानते हैं बिहार के ऐसे ही 9 अनोखे त्योहारों और मेलों के बारे में –
1. समा-चकेवा- ( भाई-बहन के प्रेम का पर्व)
मिथिला क्षेत्र की मिट्टी में बसी लोक परंपरा का प्रतीक माना जाता समा-चकेवा। यह त्योहार तब शुरू होता है जब सर्दी का मौसम आता है और हिमालय से पक्षी मैदानों की ओर लौटते हैं। महिलाएं और लड़कियां मिट्टी से पक्षियों की मूर्तियां बनाती हैं, उन्हें सजाती हैं और गीत गाती हैं। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर घरों में सोंठ और खोय की गुजिया, खाजा और दही-चूड़ा का आनंद लिया जाता है।
2. श्रावणी मेला- (108 किलोमीटर लंबी यात्रा)
सावन का महीना आते ही सुल्तानगंज से देवघर तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। यह वही मार्ग है जहां कांवड़िए गंगाजल लाकर बाबा बैद्यनाथ धाम में अर्पित करते हैं। 108 किलोमीटर की यह यात्रा भक्ति, अनुशासन और सामूहिकता का अद्भुत उदाहरण है। इस दौरान कांवड़ियों का पसंदीदा भोजन खिचड़ी, पूड़ी-तरकारी और गुड़ होता है। ये भोजन स्वाद के साथ ही साथ लोगों को उनकी लंबी यात्रा के लिए ऊर्जा भी देता है।
3. सोनपुर मेला- (एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला)
सोनपुर का मेला एशिया के सबसे बड़े और प्राचीन पशु मेलों में गिना जाता है। कहा जाता है कि इसका इतिहास चंद्रगुप्त मौर्य के समय तक जाता है। यहां हाथियों, ऊंटों, पर ⁷⁷घोड़ों और पक्षियों की खरीद-बिक्री होती है। लोकनृत्य, नाटक और झूले इस मेले की खास पहचान हैं। खाने के शौकीनों के लिए लिट्टी-चोखा, मच्छी-भात और तिलकुट जैसे व्यंजन इसका असली स्वाद बढ़ाते हैं।
4. मकर संक्रांति मेला- (धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन)
बिहार के राजगीर और मंदार पर्वत पर जनवरी में लगने वाला मकर संक्रांति मेला आमतौर पर एक धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। यहां श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यह आयोजन सितंबर महीने में फल्गु नदी के तट पर होता है। इस अवसर पर खीर-पूड़ी, चने की दाल और सीताभोग मिठाई का प्रसाद बनाया जाता है। इस मेले की रौनकों के बीच गया की गलियों में भक्ति और भावना का एक विशेष माहौल देखने को मिलता है।
5.पितृपक्ष मेला- (पूर्वजों की आत्मा की शांति का प्रतीक)
गया में होने वाला पितृपक्ष मेला बिहार का सबसे आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। यहां श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यह आयोजन सितंबर महीने में फल्गु नदी के तट पर होता है। इस अवसर पर खीर-पूड़ी, चने की दाल और सीताभोग मिठाई का प्रसाद बनाया जाता है। गया की गलियों में इस दौरान भक्ति और भावनाओं का एक विशेष माहौल देखने को मिलता है।
6. राजगीर महोत्सव (बिहार पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित)
हर साल अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में बिहार पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित राजगीर महोत्सव कला और संस्कृति का अनोखा संगम है। यहां नृत्य, संगीत, योग और लोककला का भव्य आयोजन देखने को मिलता है। राजगीर की प्राकृतिक सुंदरता में सजे हुए मंच पर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इस दौरान पर्यटक स्थानीय स्वादों का आनंद लेते हैं। खासतौर पर इस मौके पर खाजा, तिलकुट और बेलगाड़ी की जलेबी का लोग जमकर लुत्फ उठाते हैं।
7. बिहुला- (चर्चित लोक पर्व)
बिहुला-बिषहरी भागलपुर का सबसे चर्चित लोक पर्व है, जो अगस्त महीने में मनाया जाता है। यह देवी मनसा की पूजा से जुड़ा है और इसके साथ मंजूषा आर्ट की झलक भी देखने को मिलती है। जो मिथिला पेंटिंग जितनी ही प्रसिद्ध है। इस मौके पर लोग मालपुआ और सिलाव का खाजा बनाते हैं। जिसे परिवार और सभी समुदाय के बीच बांटा जाता है। यह त्योहार नारी सम्मान और लोककला दोनों का प्रतीक है।
8. बुद्ध जयंती (ध्यान और प्रार्थना का पर्व)
वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती बोधगया और राजगीर में बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण तीनों घटित हुए थे। इस अवसर पर बोधगया में हजारों बौद्ध भिक्षु ध्यान और प्रार्थना करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी, खीर और फलों का भोग लगाते हैं। यह पर्व लोगों को सादगी और संतुलन का संदेश देता है।
9. छठ पूजा (सूर्य उपासना की पवित्र परंपरा)
बिहार की पहचान मानी जाने वाली छठ पूजा सूर्य देव और छठी माई को समर्पित है। यह दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व में व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं और अस्ताचलगामी व उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह पर्व न केवल आस्था और भक्ति का बखान करता है बल्कि सामूहिक एकता का भी प्रतीक है। छठ के मौके पर घाटों पर गूंजते लोकगीत और सूर्य अर्घ्य का दिव्य दृश्य देखना बेहद अद्भुत अनुभव होता है। छठ का मुख्य प्रसाद होता है ठेकुआ, कसार और अदरक की डाली। इस प्रसाद को घरों में पूरी श्रद्धा और पवित्रता से तैयार किया जाता है।
इन मेलों और त्योहारों में आस्था के साथ बिहार की लोककला, संगीत, परंपरा और भोजन संस्कृति का सुंदर संगम देखने को मिलता है। बिहार के मेले और त्योहार सदियों से जीवित परंपराओं के तौर पर बिहार की महिमा का बखान करते चले आ रहें हैं।


