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    The story of the name Bihar: बिहार नाम एक बौद्ध विहारों से ‘बिहार’ बनने तक की दिलचस्प कहानी

    Janta YojanaBy Janta YojanaNovember 6, 2025No Comments4 Mins Read
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    बिहार: चुनावी हलचलों के चलते आजकल सुर्खियों में चल रहे बिहार के बारे में क्या आपने कभी सोचा है कि यह नाम आखिर आया कहां से?

    ऐतिहासिक महत्व के मुताबिक अगर देखें तो इस राज्य को महात्मा बुद्ध, महावीर, चाणक्य और आर्यभट्ट जैसी महान हस्तियों की भूमि के रूप में पहचान हासिल है, लेकिन इसके नाम के पीछे का रहस्य इतिहास के बहुत गहरे पन्नों में छिपा हुआ है। असल में बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की उपजाऊ धरती का वो हिस्सा है जिसमें शिक्षा, संस्कृति और अध्यात्म का अकूत भंडार मौजूद है। यही वजह है कि, बिहार का चप्पा-चप्पा हमें इतिहास की गहराइयों में लेकर जाता है। आइए जानते हैं बिहार नाम से जुड़े ऐतिहासिक महत्व के बारे में विस्तार से –

    जब मगध नाम से जाना जाता था बिहार

    बहुत समय पहले, आज का बिहार मगध कहलाता था। साथ ही यह भारत के सोलह महाजनपदों में से सबसे ताकतवर और प्रभावशाली जनपदों में शामिल था। उसकी राजधानी राजगृह (अब राजगीर) थी, जो बाद में पाटलिपुत्र यानी वर्तमान पटना बनी। यहीं से मौर्य वंश का उदय हुआ और सम्राट अशोक महान ने अपने विशाल साम्राज्य की नींव रखी। बिहार वही भूमि है, जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया, जहां महावीर ने अपने सिद्धांतों को सुदृढ़ किया और जहां से चाणक्य ने राजनीति और नीति का नया अध्याय लिखा। असल में पूर्व ने मगध के नाम से विख्यात बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं था बल्कि यह उन बौद्धिक विचारों का केंद्र था, जहां से भारत में शिक्षा और सभ्यता ने अपनी जड़ें मजबूत की।

    ऐसे आगे बढ़ा ‘विहार’ से ‘बिहार’ तक का सफर

    पाटली पुत्र के शासक और मौर्य वंश के संस्थापक अशोक महान ने अपने शासनकाल में अनेक बौद्ध विहार बनवाए। विहार यानी वो स्थान जहां भिक्षु और साधु ध्यान, अध्ययन और शिक्षा के लिए ठहरते थे।

    समय बीतता गया और ये विहार इस क्षेत्र की पहचान बन गए। इतनी बड़ी संख्या में बौद्ध मठ बनने लगे कि लोग कहने लगे कि ‘यह तो विहारों की भूमि है।’ धीरे-धीरे, इस शब्द का उच्चारण आम बोलचाल में ‘बिहार’ बन गया। यानी बिहार का नाम सीधे जुड़ा है उन बौद्ध मठों से जहां साधु ध्यान करते थे, जहां ज्ञान और शिक्षा का प्रचार हुआ साथ ही जहां से करुणा व शांति का संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचा। इस तरह विहार से बिहार बनने का सफर तय हुआ।

    विश्वविद्यालयों की केंद्र भूमि रहा है बिहार

    अगर हम इतिहास की परतें पलटें, तो पाएंगे कि बिहार कभी विश्वविद्यालयों की भूमि रहा है। नालंदा और विक्रमशिला जैसे केंद्रों ने अपने ज्ञान और खोजों से पूरी दुनिया को चकित किया। नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया भर से हजारों विद्यार्थी और सैकड़ों आचार्य एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। चीन, कोरिया, जापान से लेकर श्रीलंका तक से छात्र यहां पढ़ने आते थे। यह वो दौर था जब बिहार सिर्फ भारत नहीं, बल्कि पूरे एशिया का ज्ञानकेंद्र था।

    अंग्रेजी शासन में जब बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना।

    औपनिवेशिक काल के आरंभ के साथ ही बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना। अंग्रेजों के लिए यह सिर्फ एक राजस्व का क्षेत्र था बल्कि एक ऐसी भूमि भी था जहां से धान, गन्ना, नील और तंबाकू जैसी फसलें पैदा होती थीं। लेकिन आम जनता को इसका लाभ न मिलकर उसे शोषण, गरीबी और उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था। अंग्रेजी हुकूमत में किसानों से भारी कर वसूले गए वहीं जमींदारी व्यवस्था ने बिहार के लोगों की कमर तोड़ दी। इस दौर में शिक्षा और संस्कृति को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। यही वो समय था जब लोगों के भीतर अपनी पहचान की चिंगारी भड़क उठी थी।

    22 मार्च 1912 – जब बिहार को मिली अपनी पहचान

    आखिरकार, उस चिंगारी ने एक आक्रोशित आंदोलन का रूप रखा। 22 मार्च 1912 को अंग्रेज सरकार ने बिहार और ओडिशा को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर दिया। यह दिन बिहार के लिए ऐतिहासिक पल था जब पहली बार इसे एक स्वतंत्र प्रांत का दर्जा मिला था। बाद में, 1 अप्रैल 1936 को ओडिशा अलग हो गया और बिहार एक पूर्ण राज्य बनकर उभरा।

    यानी यही वो दिन था जब विहारों की भूमि ने आधिकारिक तौर पर बिहार नाम हासिल किया।

    यही नहीं, इस राज्य ने महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, चाणक्य, आर्यभट्ट, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे भारत को ऐसे नायक दिए जिन्होंने देश की दिशा बदल दी।

    बिहार की असली खूबसूरती उसकी मिट्टी और लोगों में बसती है। यहां का लोकसंगीत, लोकनृत्य, त्यौहार और बोली सबकुछ सादगी और मिट्टी से जुड़ा हुआ है। मिथिला की मधुबनी पेंटिंग, मगध की छठ पूजा आज वैश्विक पटल पर बिहार की पहचान बन चुकी हैं।

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