
UP BJP New President: उत्तर प्रदेश में 2027 के रण की बिसात अभी से बिछाई जाने लगी है। राजनीति की इस शतरंज में अब सबसे अहम मोहरा बनकर उभरा है ब्राह्मण वोट बैंक। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों दल ब्राह्मण समाज को अपने पाले में खींचने के लिए रणनीति पर रणनीति बना रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी इस हफ्ते प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे की घोषणा कर सकती है। पार्टी की यह रणनीति न केवल जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश है बल्कि 2027 विधानसभा चुनाव से पहले सपा की ‘ब्राह्मण प्रेम’ को काउंटर करने की भी तैयारी मानी जा रही है। दरअसल, समाजवादी पार्टी ने माता प्रसाद पांडे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ब्राह्मणों को साधने की सीधी कोशिश की है तो अब भाजपा भी इसी हफ्ते प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ब्राह्मण चेहरा सामने ला सकती है।
अखिलेश की ‘ब्राह्मण साधना’ से बढ़ी भाजपा की बेचैनी
अखिलेश यादव इन दिनों लगातार ब्राह्मण वोट बैंक को रिझाने की कोशिशों में लगे हैं। ‘PDA’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक गठजोड़ की बात करते हुए सपा प्रमुख अब ब्राह्मण समुदाय के बीच भी सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के कुछ हालिया ब्राह्मण सम्मेलनों और बयानों से भाजपा को यह संकेत मिला है कि ब्राह्मणों की नाखुशी का फायदा विपक्ष उठाने को तैयार बैठा है।
भाजपा के अंदर भी कई प्रभावशाली ब्राह्मण नेता इस बात को स्वीकारते हैं कि संगठन और सरकार में उन्हें अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। ऐसे में पार्टी अब इस नाराजगी को एक मौके में बदलने की कोशिश कर रही है।
कौन होगा बीजेपी का तुरूप का इक्का?
प्रदेश अध्यक्ष पद की रेस में चार ब्राह्मण चेहरे सबसे आगे माने जा रहे उसमें दिनेश शर्मा, रमापति त्रिपाठी और हरीश द्विवेदी का नाम प्रमुख है।
दिनेश शर्मा, अनुभवी और मोदी-योगी दोनों के भरोसेमंद
पूर्व डिप्टी सीएम रह चुके डॉ दिनेश शर्मा भाजपा के पुराने और भरोसेमंद नेता हैं। दो बार लखनऊ के मेयर रह चुके शर्मा, छात्र राजनीति से लेकर संगठन तक हर मोर्चे पर पार्टी के लिए सक्रिय रहे हैं। हाल ही में उन्हें राज्यसभा भेजा गया है और राजस्थान-हरियाणा में चुनाव पर्यवेक्षक की भूमिका भी दी गई थी। उनकी छवि एक सुलझे हुए और सौम्य ब्राह्मण नेता की है, जो पार्टी के सभी गुटों में स्वीकार्य माने जाते हैं।
हरीश द्विवेदी, बस्ती से दिल्ली तक की मजबूत पकड़
दो बार बस्ती से सांसद रह चुके हरीश द्विवेदी भी इस रेस में काफी मजबूत दावेदार हैं। एबीवीपी से राजनीति की शुरुआत कर लोकसभा तक पहुंचने वाले द्विवेदी को केंद्रीय नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ दोनों का करीबी माना जाता है। हालिया लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पार्टी का भरोसा जीतकर सीट बरकरार रखी। उन्हें युवा और ऊर्जावान चेहरा माना जाता है, जो ब्राह्मणों के साथ-साथ अन्य वर्गों में भी अपील रखते हैं।
पूर्वांचल के लोकप्रिय चेहरे मनोज तिवारी को भी मिल सकती है कमान
वाराणसी जिले से आने वाले मनोज तिवारी भारतीय जनता पार्टी के एक लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता हैं। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से राजनीति में आए तिवारी ने 2014 में बीजेपी के टिकट पर दिल्ली की उत्तर-पूर्वी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने 2019 और 2024 में भी लगातार जीत दर्ज की। वर्ष 2016 से 2020 तक वे दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2017 के नगर निगम चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए विपक्ष को पीछे छोड़ दिया था।
रमापति राम त्रिपाठी, पूर्वांचल में भाजपा की संगठनात्मक रीढ़
रमापति राम त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से आने वाले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। वह लंबे समय तक बीजेपी संगठन में विभिन्न पदों पर सक्रिय रहे। 2007 से 2010 तक उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और पार्टी को सांगठनिक मजबूती दी। वे 2000 से 2012 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी रहे। 2019 में देवरिया से लोकसभा सांसद चुने गए। उनकी पहचान एक जमीनी और संगठनात्मक नेता के रूप में है, जिन्होंने पूर्वांचल में भाजपा को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई।
यूपी में ब्राह्मण के बिना सरकार बनाना नामुमकिन
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटरों की हिस्सेदारी करीब 12% के आसपास मानी जाती है जो निर्णायक साबित हो सकते हैं। भाजपा ने 2014 से 2024 तक लगातार ब्राह्मणों के बहुमत समर्थन से लाभ पाया है। लेकिन हाल के वर्षों में योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी के आरोप लगते रहे हैं। सपा समेत कई विपक्षी दल इसी ‘नाराजगी’ को हवा देने में जुटे हैं।
ऐसे में अगर भाजपा कोई ब्राह्मण चेहरा प्रदेश अध्यक्ष बनाती है तो यह न केवल संगठन में संतुलन बनाएगा, बल्कि यह एक राजनीतिक संकेत भी होगा कि पार्टी ब्राह्मण समाज को सम्मान देना चाहती है।
2027 के रण की बिसात अभी से बिछाई जा रही है। समाजवादी पार्टी ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए तरकश के सारे तीर आजमा रही है, वहीं भाजपा अब अपने “तुरूप के इक्के” को मैदान में उतारकर यह जताना चाहती है कि ब्राह्मण अभी भी भगवा झंडे के साथ हैं।