
UP News: समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव का एक विवादित पोस्टर मंगलवार को सपा कार्यालय के सामने लगाए जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। इस पोस्टर में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और अखिलेश यादव का आधा-आधा चेहरा एक साथ मिलाकर दिखाया गया है। पोस्टर में यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि अखिलेश यादव, अंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे ‘गंभीर अपमान’ बताया है।
बीजेपी ने इस पोस्टर के विरोध में पूरे उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। लखनऊ में बुधवार को अंबेडकर प्रतिमा स्थल पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा। पार्टी नेताओं ने आरोप लगाया है कि इस पोस्टर के जरिए सपा ने बाबा साहेब अंबेडकर की विरासत का राजनीतिक दुरुपयोग किया है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अर्जुन राम मेघवाल ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “अखिलेश यादव का चेहरा बाबा साहेब अंबेडकर के चेहरे के साथ जोड़ना एक प्रकार से उनका अपमान है। अगर वह इस तरह के पोस्टर लगाकर दलित समाज को भ्रमित करना चाहते हैं, तो यह गलतफहमी है।”
भाजपा ने राजीव गांधी की क्यों छेड़ी बात
मेघवाल ने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी हमेशा से खुद को पिछड़ों और वंचितों का समर्थक बताती आई है, लेकिन अब वह कांग्रेस के साथ खड़ी है- वही कांग्रेस, जिसके नेता राजीव गांधी ने संसद में OBC आरक्षण का विरोध करते हुए लंबा भाषण दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि आज अखिलेश यादव उसी कांग्रेस के साथ हाथ मिला रहे हैं और खुद को बाबा साहेब जैसा बताने की कोशिश कर रहे हैं, जो दलित समाज का सीधा अपमान है। बीजेपी नेताओं ने यह भी साफ कर दिया है कि वे इस मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं हैं और आने वाले दिनों में भी इसका विरोध करते रहेंगे।
दलित वोट बैंक साधने की सियासी चाल?
समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव के विवादित पोस्टर को लेकर उठे सियासी तूफान के बीच अब राजनीतिक विश्लेषक भी इस घटनाक्रम को दलित राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं। सपा कार्यालय के बाहर लगाए गए इस पोस्टर में बाबा साहेब अंबेडकर और अखिलेश यादव का आधा-आधा चेहरा एक साथ दिखाया गया है, जिसे लेकर भाजपा ने तीव्र आपत्ति जताई है और इसे ‘बाबा साहेब का अपमान’ करार दिया है।
हालांकि, सियासी जानकारों का मानना है कि यह केवल एक पोस्टर भर नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। उनका कहना है कि अखिलेश यादव इस पोस्टर के जरिए खुद को दलित समाज के नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। विश्लेषकों के अनुसार, यह प्रयास सपा की उस रणनीति का संकेत है, जिसके तहत वह 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों में दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में लाना चाहती है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बाबा साहेब की छवि को अपने साथ जोड़कर अखिलेश यादव दलितों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। विशेष रूप से उस समय में जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का प्रभाव लगातार घटता जा रहा है, सपा इस खाली हो रही राजनीतिक जगह को भरने की तैयारी में है।
हालांकि, भाजपा इस प्रयास को दलितों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ बता रही है। भाजपा नेताओं का आरोप है कि सपा केवल वोटबैंक की राजनीति कर रही है और बाबा साहेब का राजनीतिक उपयोग कर रही है। इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन कर रही है। फिलहाल, समाजवादी पार्टी की ओर से इस विवादित पोस्टर पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
मायावती ने दर्ज की आपत्ति
इस बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक दलों को फटकार लगाई है। उन्होंने एक ट्वीट कर स्पष्ट किया कि इस समय सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि इस घटना की आड़ में राजनीति की जाए।
मायावती ने ट्वीट में कहा, “पहलगाम आतंकी हमले को लेकर सभी पार्टियों को एकजुट होकर सरकार के हर कदम के साथ खड़े होना चाहिए। पोस्टरबाजी व बयानबाजी के जरिए घिनौनी राजनीति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जो देशहित में नहीं है।”
इसके साथ ही उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम लेकर या उनकी छवि का गलत तरीके से उपयोग कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने सख्त लहजे में चेतावनी दी कि अगर ऐसा जारी रहा तो बहुजन समाज पार्टी सड़कों पर उतरकर विरोध दर्ज कराएगी।