
Vijaynagar Samrajya Ka Itihas (Photo – Social Media)
Vijaynagar Samrajya Ka Itihas (Photo – Social Media)
History Of Vijay Nagar Empire: भारत का इतिहास विभिन्न साम्राज्यों और शासकों की गाथाओं से परिपूर्ण है, जिन्होंने अपनी शक्ति, समृद्धि और असाधारण उपलब्धियों से न केवल भारतीय उपमहाद्वीप, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। इनमें से एक प्रमुख और अविस्मरणीय साम्राज्य था ‘विजयनगर साम्राज्य’, जिसने दक्षिण भारत में अपना प्रभाव स्थापित किया और भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। यह साम्राज्य केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी अत्यधिक समृद्ध था। विजयनगर साम्राज्य की सफलता के पीछे न केवल सैन्य रणनीतियाँ और प्रशासनिक क्षमता थी, बल्कि यह समाज के हर वर्ग में समरसता और समृद्धि लाने के अपने प्रयासों के लिए भी प्रसिद्ध था। यह साम्राज्य भारतीय संस्कृति और कलाओं के संरक्षण, विज्ञान और गणित के विकास, व्यापारिक नेटवर्क की सुदृढ़ता और धार्मिक सहिष्णुता के कारण इतिहास में विशिष्ट स्थान रखता है।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हरिहर और बुक्का द्वारा की गई थी। ये दोनों भाई, जिन्होंने पहले हाम्पी के कर्नाटक क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की, विजयनगर साम्राज्य के पहले शासक बने। उन्होंने अपनी राजधानी के रूप में हाम्पी को चुना, जो बाद में एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। विजयनगर साम्राज्य का नाम ‘विजयनगर’ का अर्थ है ‘विजय का नगर’, जो इस साम्राज्य के विजयशील और शक्तिशाली होने का प्रतीक था।
विजयनगर साम्राज्य का उत्कर्ष

विजयनगर साम्राज्य के दौरान इसकी महानता और समृद्धि अपने चरम पर पहुंची। विशेष रूप से, राजाओं जैसे कृष्णदेवराय और उनके प्रशासन ने इस साम्राज्य को ऊंचाईयों तक पहुंचाया। कृष्णदेवराय का शासनकाल 1509 से 1529 तक था और उनके समय में साम्राज्य ने आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टि से अपूर्व सफलता प्राप्त की।
कृष्णदेवराय ने न केवल साम्राज्य की सीमाओं को विस्तारित किया, बल्कि उसने कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में भी अतुलनीय योगदान दिया। उनके शासनकाल में तेलुगू साहित्य का उत्कर्ष हुआ और उन्होंने कई प्रसिद्ध काव्य रचनाओं को प्रोत्साहित किया। उनके दरबार में अष्टदिग्गजों (आठ महान विद्वानों) का समूह था, जिनमें तेनाली रामकृष्ण, पेड्दन्ना, आदि प्रमुख थे।
साम्राज्य की आंतरिक और बाह्य नीतियां

विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन केंद्रीकृत था और यह राजस्व संग्रहण, न्याय व्यवस्था, और सेना की नियुक्ति के मामले में अत्यंत प्रभावी था। सैनिक बल भी बहुत मजबूत था, और विजयनगर के पास अत्याधुनिक युद्धकला और रणनीतियां थीं।
आंतरिक नीतियों में, साम्राज्य ने धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान किया। विशेष रूप से हिन्दू धर्म को बढ़ावा दिया गया, लेकिन जैन, मुसलमान और अन्य समुदायों को भी स्वतंत्रता दी गई थी। हालांकि, विजयनगर साम्राज्य ने अपनी सैन्य शक्ति से विभिन्न मुस्लिम शासकों से संघर्ष किया था, खासकर बहलुल लोदी और कुतुबुद्दीन ऐबक के शासन के समय।
विजयनगर साम्राज्य का विस्तार और शक्ति

विजयनगर साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में हुआ था। इस साम्राज्य ने कर्नाटिक, कांची, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों पर अपनी सत्ता स्थापित की। विजयनगर का साम्राज्य उन्नत प्रशासन, मजबूत सैन्य व्यवस्था और समृद्ध व्यापारिक नेटवर्क के कारण तेज़ी से फैलने में सफल हुआ।
साम्राज्य के शासकों ने अन्य भारतीय राज्यों के साथ भी संपर्क बनाए रखा और कई बार सैन्य संघर्षों में भी भाग लिया। विजयनगर साम्राज्य ने अपने समृद्ध व्यापारी मार्गों के माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका के विभिन्न देशों से व्यापारिक संबंध स्थापित किए। यह साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में न केवल राजनीतिक बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया।
विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन

विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन अत्यधिक सुसंगठित था। इस साम्राज्य में एक केंद्रीकृत शाही शासन था, जिसमें सम्राट को सर्वोच्च शक्ति प्राप्त थी। प्रशासनिक कामकाजी गतिविधियाँ साम्राज्य के विभिन्न विभागों में विभाजित थीं, जिनमें न्याय, कर वसूली, सैन्य, और धर्म आदि प्रमुख थे।
साम्राज्य के शासक ने अपनी सामरिक और प्रशासनिक शक्तियों को स्थापित करने के लिए एक मजबूत केंद्रीय सरकार का गठन किया था, जिसमें रीजेंट, मंत्री और अन्य उच्च अधिकारियों की एक टीम शामिल थी। इसके अलावा, साम्राज्य के भीतर विभिन्न क्षेत्रों और प्रांतों के शासकों की नियुक्ति की जाती थी, जो उनके क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि

विजयनगर साम्राज्य का धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन भी अत्यधिक समृद्ध था। इस साम्राज्य ने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया और इस दौरान धार्मिक निर्माण कार्यों में भी वृद्धि हुई। शासकों ने मंदिरों का निर्माण करवाया और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लिया। वे विशेष रूप से भगवान शिव, विष्णु और दुर्गा के भक्त थे, और इनके मंदिरों के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
साथ ही, विजयनगर साम्राज्य ने सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया। काव्य, संगीत, चित्रकला, और वास्तुकला में एक नई जागृति देखी गई। यह काल भारतीय कला और साहित्य के एक स्वर्णिम युग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विभिन्न संस्कृत साहित्यिक रचनाएँ और काव्य रचनाएँ इस समय के दौरान प्रचलित हुईं। इस साम्राज्य के शासक खुद साहित्यिक रचनाओं के संरक्षक थे और उन्होंने कलाकारों और कवियों को संरक्षण प्रदान किया।
विजयनगर साम्राज्य का पतन

विजयनगर साम्राज्य का पतन 1565 में हुआ, जब दक्षिण भारत के मुस्लिम राज्यों ने एक साथ मिलकर ‘तालिकोटा की लड़ाई’ (Battle of Talikota) लड़ी। इस युद्ध में विजयनगर साम्राज्य की सेना हार गई, और इस युद्ध के बाद साम्राज्य का सम्राट रामराय की मृत्यु हो गई। इसके साथ ही साम्राज्य का राजनीतिक तंत्र कमजोर हो गया और यह तेजी से टूटने लगा।
इसके बाद विजयनगर साम्राज्य धीरे-धीरे छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया, और इस तरह इसका अंत हुआ। हालांकि, साम्राज्य का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव दक्षिण भारत में लंबे समय तक महसूस किया जाता रहा। विजयनगर साम्राज्य का पतन एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने दक्षिण भारत में साम्राज्य और मुस्लिम शक्तियों के बीच संघर्षों को बढ़ावा दिया।
विजयनगर साम्राज्य का सांस्कृतिक योगदान

विजयनगर साम्राज्य का सांस्कृतिक योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस साम्राज्य के शासनकाल में वास्तुकला, कला, संगीत और साहित्य में अपूर्व वृद्धि हुई। विशेष रूप से वास्तुकला के क्षेत्र में विजयनगर ने एक नया रूप प्रस्तुत किया। हाम्पी के प्राचीन मंदिरों और महलों के अवशेष आज भी इस साम्राज्य की भव्यता को दर्शाते हैं।
इसके अलावा, विजयनगर साम्राज्य ने शास्त्रीय संगीत और नृत्य के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्नाटिक संगीत का विकास इस समय में हुआ और यह आज भी दक्षिण भारतीय संगीत का प्रमुख रूप माना जाता है।