
Mahilaon Ke Liye Ban Jagah: सभ्यता के इस आधुनिक युग में, जहां हम समानता और अधिकारों की बात करते हैं, कुछ जगहें आज भी ऐसी हैं जो महिलाओं के लिए निषिद्ध मानी जाती हैं। ये स्थान सिर्फ भौगोलिक सुनाएं नहीं हैं, बल्कि आस्था, परंपरा और पितृसत्ता की वे दीवारें हैं जो स्त्रियों को उनके प्राकृतिक अधिकारों से वंचित करती हैं। कभी धार्मिक पवित्रता के नाम पर, तो कभी सामाजिक रीतियों के तहत महिलाओं के कदमों पर रोक लगाना आज भी जारी है। दुनिया में मौजूद ऐसे स्थल जहां महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है यह प्रश्न उठाते हैं, क्या परंपरा की रक्षा के नाम पर वर्तमान युग में भी भेदभाव स्वीकार्य है? आइए जानते हैं कुछ ऐसे स्थलों के बारे में विस्तार से –
1. हजरत निजामुद्दीन दरगाह, दिल्ली (भारत)
यह दरगाह भी महिलाओं के लिए आंशिक रूप से प्रतिबंधित रही है। महिलाओं को मुख्य मकबरे के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी।

ट्रस्ट का तर्क था कि यह शरिया कानून के अनुसार है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग के चलते अब कुछ हद तक प्रतिबंध में ढील दी गई है। फिर भी महिलाओं की पहुंच अब भी सीमित है।
2. माउंट एथोस, ग्रीस
उत्तरी ग्रीस में स्थित माउंट एथोस एक धार्मिक स्थल है जहां पूर्वी ऑर्थोडॉक्स ईसाई भिक्षु सदियों से रह रहे हैं। इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश 1046 ईस्वी से ही प्रतिबंधित है। इतना ही नहीं, मादा जानवरों को भी यहां लाना मना है। भिक्षुओं का मानना है कि महिलाओं की उपस्थिति उनके आध्यात्मिक जीवन को बाधित कर सकती है।

यूरोपीय संघ के सदस्य होने के बावजूद ग्रीस ने इस परंपरा को बनाए रखा है। समय-समय पर इस प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन कानून आज भी महिलाओं को यहां कदम रखने की इजाजत नहीं देता।
3. माउंट ओमीन, जापान
जापान के नारा प्रान्त में स्थित माउंट ओमीन यामाबूशी भिक्षुओं का साधना स्थल है। यह पर्वत शुगेंडो नामक पारंपरिक जापानी धर्म का एक केंद्र है, जिसमें संयम, तपस्या और प्रकृति से जुड़ाव की साधना की जाती है।

यहां महिलाओं के प्रवेश पर आज भी प्रतिबंध है। धार्मिक नेताओं का तर्क है कि यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसका उद्देश्य आध्यात्मिक पवित्रता बनाए रखना है। द्वार पर स्पष्ट रूप से लिखा होता है: “महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।”
4. ओकिनोशीमा द्वीप, जापान
जापान का यह द्वीप भी महिलाओं के लिए प्रतिबंधित है। यह शिंतो धर्म का पवित्र स्थल है जहां सिर्फ़ पुरुष पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं।

यहां साल में एक बार एक खास पूजा होती है जिसमें केवल चुने हुए पुरुष ही हिस्सा लेते हैं। इस द्वीप को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है, लेकिन इसके बावजूद महिलाओं को यहां जाने की इजाज़त नहीं है। इस प्रतिबंध का तर्क दिया जाता है कि यह “पवित्रता” बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
5. कार्तिकेय मंदिर, पुष्कर (भारत)
राजस्थान के पुष्कर में स्थित भगवान कार्तिकेय का यह मंदिर भी महिलाओं के लिए वर्जित है। मान्यता है कि कार्तिकेय ब्रह्मचारी हैं और महिलाओं की उपस्थिति उनके व्रत को भंग कर सकती है।

यहां की लोककथाओं में यह भी कहा जाता है कि जो महिला इस मंदिर में प्रवेश करती है उसे शापित होना पड़ता है। यह अंधविश्वास आज भी वहां की परंपरा का हिस्सा है और महिलाएं स्वयं भी मंदिर में जाने से कतराती हैं।
6. सबरीमाला मंदिर, केरल (भारत)
सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है, जो एक ब्रह्मचारी माने जाते हैं। इस मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर दशकों से प्रतिबंध था।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को असंवैधानिक बताते हुए हटाने का आदेश दिया, लेकिन इस फैसले के बाद भारी विरोध और प्रदर्शन हुए। कई महिलाएं मंदिर तक गईं भी, पर विरोध के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा। यह मामला आज भी सामाजिक और धार्मिक मतभेद का कारण बना हुआ है।
7. हाजी अली दरगाह, मुंबई (भारत)
2012 में महिलाओं को हाजी अली दरगाह के अंदरूनी गर्भगृह में प्रवेश से रोक दिया गया था। धार्मिक ट्रस्ट का दावा था कि महिलाओं का प्रवेश इस्लामी शरियत के खिलाफ है।

इस निर्णय के खिलाफ कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने अभियान चलाया और 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस प्रतिबंध को असंवैधानिक बताया। अब महिलाएं दरगाह के गर्भगृह तक जा सकती हैं, लेकिन इस लड़ाई ने दिखाया कि समानता के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
8. बर्निंग ट्री क्लब, मेरीलैंड (अमेरिका)
यह एक निजी गोल्फ क्लब है जहां अमेरिका की कई प्रभावशाली हस्तियां सदस्य हैं। लेकिन यह क्लब महिलाओं को सदस्यता नहीं देता और न ही उन्हें परिसर में आने की अनुमति है।

इसे “मेल-ओनली क्लब” के रूप में जाना जाता है। समय-समय पर इस नीति की आलोचना होती रही है लेकिन क्लब प्रबंधन इसे अपनी पारंपरिक नीति बताकर बचाव करता है।
9. पट्बा त्सेचु महोत्सव, भूटान
भूटान के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाने वाला पट्बा त्सेचु (Paro Tsechu) एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जहां छम नृत्य (नकाबपोश धार्मिक नृत्य) और गहरे आध्यात्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस उत्सव के दौरान कुछ विशेष पूजा स्थलों और अनुष्ठानों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है। भूटानी बौद्ध परंपरा के कुछ अनुयायियों का मानना है कि महिलाओं की उपस्थिति से धार्मिक ऊर्जा प्रभावित हो सकती है। हालांकि महिलाएं महोत्सव को बाहर से देख सकती हैं और इसमें शामिल हो सकती हैं, लेकिन कुछ गूढ़ और पवित्र अनुष्ठानिक स्थलों तक उन्हें जाने की अनुमति नहीं है। यह भी उसी मानसिकता की झलक है जहां स्त्रीत्व को ‘अपवित्रता’ से जोड़कर देखा जाता है। इन सभी स्थलों और स्थानों में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी सिर्फ परंपरा या आस्था का मामला नहीं है, बल्कि यह लैंगिक असमानता की गहरी जड़ें दिखाती है। भले ही यह प्रतिबंध धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित हों, लेकिन यह मौलिक अधिकारों और समानता के सिद्धांत के खिलाफ हैं। समाज को यह सोचने की ज़रूरत है कि क्या आस्था की आड़ में भेदभाव जायज़ है? महिलाएं अब चुप नहीं हैं। वे सवाल पूछ रही हैं, विरोध कर रही हैं और बदलाव की मांग कर रही हैं।