अशोका यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख अली खान महमूदाबाद की हरियाणा पुलिस द्वारा गलत गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ रहा है। प्रोफेसर महमूदाबाद को 18 मई 2025 को उनके दिल्ली स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया, जिसका कारण ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित एक सोशल मीडिया पोस्ट बताया जा रहा है। इस गिरफ्तारी के खिलाफ अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों ने कड़ा विरोध जताया है, इसे न केवल शैक्षणिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया, बल्कि उन सिद्धांतों के खिलाफ भी माना है, जिन्हें प्रोफेसर ने अपने लेक्चर में पढ़ाया। इस बीच, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सोनीपत की जिला अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 मई को तय की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उनके मामले की सुनवाई होना थी जो इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक नहीं हो पाई थी।
प्रोफेसर महमूदाबाद पर आरोप है कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के मीडिया ब्रीफिंग को “मात्र दिखावा” बताते हुए एक फेसबुक पोस्ट में टिप्पणी की थी। हालांकि यह पूरी तौर पर साफ है कि प्रोफेसर ने कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लिखा। बल्कि सेना का मनोबल बढ़ाया। हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी द्वारा दायर शिकायतों के आधार पर, उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें देश की संप्रभुता को खतरे में डालने और धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।
अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों, विशेष रूप से उनके “बनिश द पोएट्स” कोर्स के विद्यार्थियों, ने एक बयान जारी कर प्रोफेसर की गिरफ्तारी को “गलत” और “शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला” करार दिया। उन्होंने कहा, “प्रोफेसर खान ने हमें हमेशा प्रेम, तर्क, करुणा, न्याय और स्वतंत्र विचारधारा जैसे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर जोर दिया। उनकी गिरफ्तारी न केवल शैक्षणिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि उन मूल्यों के खिलाफ भी है, जिनके लिए वे खड़े हैं।” छात्रों ने यह भी बताया कि प्रोफेसर ने कभी भी राष्ट्र या संविधान के प्रति अनादर नहीं दिखाया और हमेशा सार्थक संवाद को प्रोत्साहित किया।
अशोका यूनिवर्सिटी के फैकल्टी एसोसिएशन ने भी इस गिरफ्तारी की निंदा की है, इसे “योजनाबद्ध उत्पीड़न” करार देते हुए। बयान में कहा गया कि प्रोफेसर को सुबह दिल्ली में उनके घर से गिरफ्तार किया गया, उन्हें आवश्यक दवाइयों तक पहुंच से वंचित रखा गया और घंटों तक उनकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। यूनिवर्सिटी के लगभग 10 फैकल्टी सदस्य पुलिस स्टेशन पर प्रोफेसर की सहायता के लिए मौजूद रहे, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनकी डायबिटीज की दवाइयों और बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखा जाए।
कांग्रेस पार्टी ने भी इस गिरफ्तारी की निंदा की है, इसे बीजेपी सरकार की “दोहरे मापदंड” और असहमति को दबाने की नीति का हिस्सा बताया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर लिखा, “प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि बीजेपी किसी भी ऐसी राय से डरती है जो उन्हें पसंद नहीं।”
प्रोफेसर महमूदाबाद ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के समक्ष मामले को तत्काल सुनवाई के लिए उठाया, यह तर्क देते हुए कि प्रोफेसर की टिप्पणियां “पूरी तरह देशभक्ति” वाली थीं।
अली खान महमूदाबाद, जो इतिहास और राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ हैं, ने 2020 में अपनी पुस्तक “पोएट्री ऑफ बिलॉन्गिंग: मुस्लिम इमेजिनिंग्स ऑफ इंडिया 1850–1950” प्रकाशित की थी। वे भारत के एक प्रमुख शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उनके पिता महमूदाबाद के अंतिम राजा मोहम्मद अमीर अहमद खान के इकलौते बेटे थे, जो मुस्लिम लीग के कोषाध्यक्ष रहे। उनकी मां, रानी विजय, पूर्व विदेश सचिव जगत सिंह मेहता की बेटी हैं।
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी ने शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बार फिर सवाल उठाए हैं। उनकी गिरफ्तारी को कई लोगों ने बीजेपी सरकार की आलोचना को दबाने की रणनीति के रूप में देखा है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के साथ, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह प्रकरण भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शैक्षणिक स्वायत्तता के भविष्य को कैसे प्रभावित करता है।