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    Home » ‘आरक्षण का धंधा रेलगाड़ी की तरह हो गया’: महाराष्ट्र निकाय चुनाव पर SC बोला
    भारत

    ‘आरक्षण का धंधा रेलगाड़ी की तरह हो गया’: महाराष्ट्र निकाय चुनाव पर SC बोला

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 6, 2025No Comments4 Mins Read
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    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी कोटा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आरक्षण व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘इस देश में आरक्षण का धंधा रेलगाड़ी की तरह हो गया है। जो लोग डिब्बे में चढ़ गए हैं, वे दूसरों को घुसने नहीं देना चाहते। यही पूरा खेल है।’ अदालत ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण को लागू करने के लिए बंठिया आयोग की रिपोर्ट की वैधता पर सुनवाई के दौरान की।

    महाराष्ट्र में नगर पंचायत, नगर परिषद, जिला परिषद और ग्राम पंचायत जैसे स्थानीय निकाय चुनाव पिछले कई वर्षों से ओबीसी आरक्षण को लेकर क़ानूनी विवादों के कारण लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण के लिए ‘ट्रिपल टेस्ट’ का मानदंड निर्धारित किया था। इसमें शामिल था- एक समर्पित आयोग द्वारा स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की समकालीन और गहन जाँच करना, आयोग की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण का अनुपात निर्धारित करना और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए कुल आरक्षित सीटों का 50% से अधिक न होना।

    2021 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के 27% ओबीसी आरक्षण वाले अध्यादेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह ट्रिपल टेस्ट का पालन नहीं करता। इसके बाद राज्य सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव जयंत बंठिया की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। इसने जुलाई 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और 27% ओबीसी आरक्षण की सिफारिश की।

    इस मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि बंठिया आयोग ने ओबीसी के लिए आरक्षण देते समय राजनीतिक पिछड़ेपन को स्वतंत्र रूप से स्थापित नहीं किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक या शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर राजनीतिक पिछड़ेपन को मान लेना संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण है।

    जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण-व्यवस्था की तुलना रेलगाड़ी के डिब्बे से करते हुए कहा, ‘जो लोग आरक्षण के डिब्बे में चढ़ गए हैं, वे दूसरों को जगह नहीं देना चाहते। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है।’

    जस्टिस सूर्यकांत ने समावेशिता के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा, ‘कुछ परिवारों और समूहों को ही बार-बार आरक्षण का लाभ क्यों मिल रहा है? सरकार का कर्तव्य है कि वह अधिक वंचित वर्गों की पहचान करे और उन्हें लाभ दे।’

    क्या है विवाद?

    महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से विवादों में रहा है। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण को स्थगित कर दिया था, क्योंकि राज्य सरकार ने ट्रिपल टेस्ट का पालन नहीं किया था। इसके बाद जनवरी 2022 में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को ओबीसी के आँकड़े महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग यानी एमएससीबीसी को सौंपने का निर्देश दिया। हालाँकि, एमएससीबीसी की अंतरिम रिपोर्ट को मार्च 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अपर्याप्त डेटा और तर्क के अभाव में खारिज कर दिया था।

    जुलाई 2022 में बंठिया आयोग की सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उन स्थानीय निकायों के लिए 27% ओबीसी आरक्षण की अनुमति दी, जहाँ चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं हुई थी। हालाँकि, 367 स्थानीय निकायों में जहाँ चुनाव अधिसूचित हो चुके थे, यह आरक्षण लागू नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बंठिया आयोग की सिफारिशें ट्रिपल टेस्ट के मानदंडों को पूरी तरह से पूरा नहीं करतीं। दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि आयोग ने ग्रामीण विकास विभाग और शहरी विकास विभाग के सर्वेक्षणों के आधार पर व्यापक डेटा जुड़ाया है। सरकार ने यह भी बताया कि ओबीसी आबादी पूरे राज्य में 37% है, लेकिन आरक्षण का अनुपात स्थानीय निकायों के आधार पर भिन्न है ताकि 50% की सीमा का उल्लंघन न हो।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण 2022 से पहले की स्थिति के अनुसार होगा। कोर्ट ने मामले की सुनवाई को दिन के लिए स्थगित कर दिया, यह इंगित करते हुए कि वह इस मुद्दे पर और विचार करेगा।

    इस टिप्पणी ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। बीजेपी, कांग्रेस और एनसीपी जैसे प्रमुख दलों ने ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की मांग की है। महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2025 के पहले सप्ताह में ओबीसी आरक्षण पर फ़ैसला दे देता है, तो मार्च-अप्रैल 2025 में स्थानीय निकाय चुनाव हो सकते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल महाराष्ट्र के ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को बल्कि देश में आरक्षण व्यवस्था की जटिलताओं को भी उजागर करती है। यह मामला न केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व के अधिकार से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक न्याय और समावेशिता के सवालों को भी उठाता है। कोर्ट का अंतिम फ़ैसला महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के भविष्य और ओबीसी समुदाय के राजनीतिक सशक्तिकरण पर गहरा प्रभाव डालेगा।

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