
भारत देश के ओडिशा राज्य का कालाहांडी जिला अपने बॉक्साइट खान, ऐतिहासिक और सुंदर पर्यटन स्थलों के साथ समृद्ध संस्कृति और आदिवासी कला के लिए मशहूर है। इस क्षेत्र से पाषाण युग और लौह युग के मानव बस्तियों के पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं। प्राचीन इतिहास के अनुसार शाही मौर्य खजाने के लिए बेशकीमती हीरे जवाहरात के पत्थर इसी कालाहांडी में इंद्रावन नामक क्षेत्र से इक्कठे किए गए थे। मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के अशोकन शिलालेख के अनुसार, कोरापुट, बस्तर और कालाहांडी को अटावी भूमि कहा जाता था।
ब्रिटिश शासन काल में यह भारत की एक रियासत थी जिसका आजादी के बाद भारत के ओडिशा राज्य में कालाहांडी जिले के रूप में विलय हो गया। ऐसा माना जाता है कि दक्षिण एशिया में भारत के ओडिशा राज्य में कालाहांडी और कोरापुट जिलों की भूमि से धान की खेती शुरू हुई।
ओडिशा के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में महानदी के सहायक नदियों तेल और उत्तेई के संगम पर स्थित कालाहांडी मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में बंटा हुआ है।
पुरातत्व विभाग इस जिले को महाकांतारा यानि महान वन क्षेत्र का एक हिस्सा मानता है जहां माणिक, लाल पत्थर ( गार्नेट ), बेरुज, नीलम और एलेक्जेंड्रा जैसे बहुमूल्य पत्थरों का कभी भंडार हुआ करता था।
फिलहाल यह जगह अपने पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है इसके बावजूद यह अपने समृद्ध इतिहास, कृषि क्षेत्र, वन संसाधन, रत्न, बॉक्साइट खानों, आदिवासी लोक नृत्य, संगीत और कथाओं के साथ हस्तशिल्प कला के लिए भी प्रसिद्ध है। इस स्थान पर झरने, वन्यजीव अभ्यारण्य , ऐतिहासिक किले के अवशेष जैसे कई प्राकृतिक खजानों का सैलानी लुत्फ़ उठा सकते हैं।
यहां कई प्राकृतिक दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनमें प्रमुख हैं :
डोकरीचांचरा झरना :
यह झरना ओडिशा राज्य के कालाहांडी और नवरंगपुर जिले की सीमा पर स्थित है। कोकासरा नामक गांव में स्थित डोकरीचांचरा झरना अपने दो झरनों, डोकरीधारा और भैरव धारा के लिए मशहूर है। मनमोहक पथरीली पहाड़ी से घिरी करीब 200 फीट ऊंची चट्टान से डोकरीधारा नीचे गिरती है। यहां के आसपास के लोगों के लिए यह एक खास पिकनिक का केंद्र है।
इसके पास में ऐतिहासिक गुड़ाहांडी गुफा है जो इस स्थान को और लोकप्रिय बनाती है। यह गुड़ाहांडी गुफा गुड़ के हांडी रूपी बर्तन से मिलता जुलता दिखता है और इसी कारण इसका नाम गुड़ाहांडी गुफा पड़ गया। इस गुफा की दीवारों पर प्रागैतिहासिक साहित्य, चित्रात्मक शिलालेख और उकेरी गई कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यहां करीब में योगी और रानी पहाड़ नामक दो सुंदर हिल स्टेशन हैं।
यहां पास में एक प्राचीन राम मंदिर है जहां हर साल राम नवमी के दौरान नौ दिनों का मेला लगता है और नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। यहां स्थानीय लोगों की मां डोकरी देवी का भी पूजा स्थल है।
गुड़ाहांडी पहाड़ियां :
ओडिशा के कोरापुट ज़िले के निकट एक छोटे से गांव खलीगढ़ के पास ये पहाड़ियां स्थित हैं। यह एक दुर्गम रास्ते में है जहां पहुंचने के लिए कुछ हिस्सों में घने जंगलों से भी गुजरना पड़ता है।
इन पहाड़ियों की कुछ प्राचीन गुफाओं में दीवारों पर कलाकृति देखने को मिल जाएगी। ये पहाड़ियां तीन छोटी पहाड़ियों से मिलकर बनी हैं और सभी ऐसे प्रतीत होती हैं मानो ऊपर की ओर झुकी हुई हैं। इन पहाड़ियों में उत्तर और दक्षिण की ओर स्थित पहाड़ियां पूर्व दिशा में आकर मिलती हैं।
इससे पश्चिम की ओर एक खाली जगह घाटी जैसी प्रतीत होती है। यह जगह एक विशाल चट्टान के टुकड़े से बनी है और पूर्व की ओर झुकी हुई दिखाई पड़ती है। इन्हीं पहाड़ियों की तलहटी में कतार से कई लाल स्लेट पत्थर से बनी गुफाएं देखने को मिलेंगी। जब इन तीनों पहाड़ियों को एक साथ देखा जाए तो वे एक ढके हुए बर्तन के समान दिखते हैं। इसलिए इन्हें गुड़ाहांडी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है जिसका हिंदी में अर्थ होता है बर्तन।
रबंधरा :
यह स्थान ओडिशा के भवानीपटना से करीब 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए कच्ची सड़क मार्ग से गुजरना पड़ता है। इस जगह का नाम यहां के घाटी में बह रहे एक छोटे से झरने के नाम पर पड़ा। यहां पर्यटक आकर आस-पास के शांत वातावरण, घने जंगलों के बीच पहाड़ों , चट्टानों और लटकती घाटियों के दृश्य अपनी आंखों से देख सकते हैं। स्थानीय लोग यहां पिकनिक के लिए आते हैं।
भवानीपटना /मणिकेश्वरी मंदिर :
भगवान भवानीशंकर के नाम पर कालाहांडी ज़िले में बसे हुए इस शहर में कई हिंदू देवी देवताओं के मंदिर हैं। यहां का मुख्य आकर्षण देवी मणिकेश्वरी का मंदिर है। देवी मणिकेश्वरी ओडिशा के राजा गजपति के परलाखेमुंडी स्थित राजपरिवार से जुड़ी प्रमुख देवी मानी जाती हैं।
भवानीपटना में मणिकेश्वरी देवी के लिए छतर जात्रा और परलाखेमुंडी में खंडसाधका नमक त्यौहार मनाया जाता है। इस इलाके में घना जंगल होने से चीतल, गौर और सांभर हिरण जैसे वन्यजीव भी देखने को मिलते हैं।
अंबापानी अभ्यारण्य /अम्पनी हिल्स :
भवानीपटना शहर से करीब 80 किमी की दूरी पर स्थित अम्पनी की पहाड़ियों से सैलानी सूर्य की परावर्तित किरणों का आनंद ले सकते हैं। दरअसल इन पहाड़ियों के बीच हलदीगुंडी नामक घाटी में जब सुबह और शाम सूर्य की किरणे पड़ती हैं तो परावर्तित होकर एक विशिष्ट गुण के कारण हर वस्तु को पीले रंग का दिखाई देती है।
यहां स्थित अंबापानी अभ्यारण्य में पर्यटक चित्तीदार हिरणों, सांभर और काले तेंदुओं को देख सकते हैं। यहां के जलाशय में पानी पीने के दौरान इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
अमाथगुडा किला :
महानदी की सहायक तेल नदी के किनारे पर यह किला स्थित है। भवानीपटना से बलांगीर जाने वाली सड़क इस नदी को पार करती है। यह किला फिलहाल जर्जर अवस्था में है। नदी किनारे होने के कारण इस किले का सामरिक महत्व था क्योंकि यहां से नदी को पार किया जाता था। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से कालाहांडी में 12 वीं शताब्दी के किलों और पुलों के खंडहर में अपने स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के कारण अमाथगुडा किला का भी महत्व है।
बेलखंडी मंदिर :
भवानीपटना से करीब 67 किलोमीटर दूर यह एक धार्मिक स्थल है जो महानदी की दो सहायक नदियों, तेल और उत्तेई के संगम पर स्थित है। यहां कई मंदिरों के साथ आप हाल की खुदाई में 12वीं शताब्दी के स्मारकों के मिले अवशेष भी देख सकते हैं। इस स्थान का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। अवशेष में पाई गई सप्त मातृका यानि सात मातृदेवी और उमा महेश्वर की मूर्तियां प्रमुख हैं जो मंदिर परिसर के एक छोटे से संग्रहालय में संरक्षित हैं।
फुरलीझरन फॉल्स :
यह झरना भवानीपटना से करीब 15 किमी की दूरी पर है। करीब 30 फीट की ऊंचाई से गिरते हुए इस झरने के पानी पर जब सूर्य की किरणे पड़ती हैं तब इंद्रधनुष का दृश्य बनता है और सैलानियों का मन मोह लेता है। इस झरने में साल भर पानी ऐसे ही मिलता है और इसके आसपास का सदाबहार जंगल परिवार दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने का खास आकर्षण का केंद्र रहता है।
लंकेश्वरी मंदिर :
भवानीपटना से करीब 26 किलोमीटर दूर जूनागढ़ कभी कालाहांडी की पूर्व राजधानी हुआ करती थी। इस जूनागढ़ किले में उड़िया शिलालेखों वाले कई मंदिर थे। यहां वर्तमान में मध्यकालीन भारत में प्रमुख सती-संस्कार मूर्तिकला के तहत कई सती स्तंभ रूप में मूर्तियां थी जिसके निशान यहां मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश शासक लॉर्ड विलियम बेंटिक ने इन्हें जमीन में दबा दिया था। इस इलाके में यहां की आराध्य देवी मां लंकेश्वरी का मंदिर है।
इसके अतिरिक्त अन्य कई दर्शनीय स्थल जैसे भास्कर गुफाएं जो एक सुंदर नक्काशीदार गुफाओं का समूह है, गुप्तेश्वर गुफा मंदिर जहां माना जाता है कि हर साल शिवलिंग में बढ़ोतरी हो रही है, साथ में इन गुफाएं के अंदर चुनपत्थरों से बनी आकृति देखने लायक है।
कैसे पहुंचें ?
हवाईमार्ग से कालाहांडी पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर और रायपुर में है जहां से कालाहांडी क्रमशः 418 किमी और 261 किमी दूरी पर स्थित हैं। इसके अलावा कोरापुट ज़िले के जेपोर हवाई अड्डा से भी यहां पहुंचा जा सकता है। जेपोर से कालाहांडी की दूरी करीब 166 किमी की है। यह एक छोटा हवाई अड्डा है जहां भुवनेश्वर और विशाखापत्तनम से नियमित उड़ान है। टैक्सी या बस के जरिए यहां से कालाहांडी पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से कालाहांडी पहुंचने के लिए नजदीकी स्टेशन भवानीपटना रेलवे स्टेशन है जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी द्वारा गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से कालाहांडी पहुंचने के लिए बस या टैक्सी का साधन चुन सकते हैं। कालाहांडी ओडिशा राज्य के कई महत्वपूर्ण शहरों जैसे कोरापुट, भुवनेश्वर और ब्रह्मपुर से नियमित बस सेवाओं द्वारा जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त देश के किसी भी शहर से यहां राष्ट्रीय राजमार्ग 26 द्वारा पहुंच सकते हैं। भुवनेश्वर, रायपुर और विशाखापत्तनम से यह जगह राष्ट्रीय राजमार्ग 26 से जुड़ा हुआ है।
घूमने का सबसे अच्छा समय :
कालाहांडी घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च तक का है। इस समय सर्दियों का मौसम रहता है और घूमने के लिए सुहावना रहता है। गर्मियों में यह जगह बहुत गरम रहता है।
सर्दियों के मौसम में यहां पर्यटक गरम कपड़े लाना न भूलें।


