
देश के नए उपराष्ट्रपति को लेकर भाजपा में मंथन शुरू हो गया है। जगदीप धनखड़ प्रकरण के बाद पार्टी अब कोई ऐसा चेहरा उपराष्ट्रपति बनाना चाहती है जो भाजपा की जड़ों से जुड़ा हो, संघ की नर्सरी से निकला हो और विचारधारा का सच्चा सिपाही हो। अब पार्टी बाहर से आए नेताओं के बजाय अपने घर के ही लोगों पर भरोसा जता रही है।
दरअसल, हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ को लेकर जो हालात बने उससे पार्टी को बेहहद असहजता का सामना करना पड़ा है। भाजपा की हालत इस समय ‘दूध का जला, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है’ जैसी हो गई है।
अपने लोगों पर ही दांव लगाएगी भाजपा
सूत्रों की मानें तो भाजपा में यह सोच बन चुकी है कि अब जिन पदों से सीधा असर केंद्र की नीतियों पर पड़ता है, वहां सिर्फ अपने विचारधारा वाले, संघ की पाठशाला से निकले नेताओं को ही जिम्मेदारी दी जायेगी।
वरिष्ठ और अनुभवी ‘संघी’ हो सकता है अगला उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति का पद सिर्फ सम्मान का नहीं बल्कि कानून और राज्यसभा के संचालन को सही दिशा में मोड़ने का भी होता है। राज्यसभा की अध्यक्षता उपराष्ट्रपति के हाथ में होती है, इसलिए भाजपा अब किसी ऐसे व्यक्ति को चुन सकती है जो सालों से पार्टी के साथ हो, बेहद अनुभव वाला हो और संघ की विचारधारा में पूरी तरह रमा हो।
भाजपा में ऐसे कई नाम हैं जो इस परिपाटी में फिट बैठते हैं। बिहार और बंगाल जैसे राज्यों से भी नाम लिए जा सकते हैं क्योंकि वहाँ विधानसभा चुनाव आने वाले हैं।
संघ की विचारधारा से बाहर नेताओं की बढ़ी टेंशन
धनखड़ प्रकरण के बाद अब दूसरी पार्टी से आये नेताओं की टेंशन बढ़ गई है। जनता दल और कांग्रेस के साख राजनीति करके आये धनखड़ ने भाजपा को ऐसा झटका दिया कि अब दूसरे नेताओं से भाजपा का मोह भंग होने के आसार हैं। सूत्रों का कहना है कि अब महत्वपूर्ण पदों पर केवल संघ-भाजपा के विचारधारा के व्यक्ति को ही तरजीह मिलेगी।
अब भाजपा इस नतीजे पर पहुंचती दिख रही है कि अगर पार्टी को आगे स्थिर और मजबूत करना है तो विचारधारा से जुड़ी रीढ़ के मजबूत नेताओं को ही ऊंचे पद दिए जायें। यही कारण है कि अगला उपराष्ट्रपति शायद एक खांटी संघी हो। जो न केवल पद संभाले, बल्कि विचारधारा को भी मजबूती दे।