
Chidambaram and Amit Shah Controversy: भारतीय राजनीति में वक्त का पहिया कैसे घूमता है, इसका दिलचस्प उदाहरण कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम हैं। एक समय देश के गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने जिस सीबीआई मुख्यालय भवन का उद्घाटन किया था, उसी भवन में उन्हें एक रात गिरफ्तार कैदी के रूप में बितानी पड़ी, यह दृश्य राजनीति की विडंबनाओं का प्रतीक बन गया।
अमित शाह की गिरफ्तारी से लेकर खुद की गिरफ्तारी तक
वर्ष 2011 में जब चिदंबरम गृह मंत्री थे, उन्होंने गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में गिरफ्तार करवाया था। लेकिन सालों बाद जब अमित शाह देश के गृह मंत्री बने, तब सीबीआई ने आईएनएक्स मीडिया घोटाले में पी. चिदंबरम को हिरासत में ले लिया। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इस घटनाक्रम को ‘राजनीतिक बदले’ का एक रूप बताया, खासकर जब अमित शाह को कभी चिदंबरम की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। चिदबंरम यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी फंसाने की कोशिश की थी।
‘भगवा आतंकवाद’ टिप्पणी बनी थी राष्ट्रीय विवाद
गृह मंत्री रहते हुए चिदंबरम तब विवादों में घिर गए जब उन्होंने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का उपयोग करते हुए कुछ आतंकी घटनाओं को हिंदुत्व संगठनों से जोड़ा। 2010 में आतंकवाद पर आयोजित एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि हाल की जांचों से एक नया रुझान सामने आया है- भगवा आतंकवाद। इस बयान पर बीजेपी और संघ परिवार ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस को भी स्थिति संभालनी पड़ी और तत्कालीन वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने सफाई देते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता।
आईएनएक्स मीडिया केस बना था गिरफ्तारी की वजह
चिदंबरम की गिरफ्तारी का मुख्य आधार बना आईएनएक्स मीडिया फॉरेन फंडिंग केस। वर्ष 2007 में बतौर वित्त मंत्री उन्होंने कथित तौर पर 305 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश को मंजूरी दी, जिसमें अनियमितताएं सामने आईं।आईएनएक्स मीडिया के मालिक पीटर और इंद्राणी मुखर्जी ने बाद में आरोप लगाया कि उन्होंने कानूनी राहत के लिए चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को रिश्वत दी थी, जिसकी रकम करीब 10 लाख रुपये बताई गई थी। इसके अलावा एयरसेल-मैक्सिस सौदे में भी चिदंबरम पर आरोप लगे, और उनके परिसरों पर ईडी और सीबीआई की छापेमारी हुई थी।
गृह मंत्री के रूप में कार्यकाल पर उठे सवाल
26/11 मुंबई आतंकी हमलों के बाद जब उन्हें गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई, तब उनसे बहुत अपेक्षाएं थीं। लेकिन मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने उन पर पक्षपात और कठोर रुख अपनाने का आरोप लगाया। कई मामलों में निर्दोष मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी के बाद उनकी छवि एक कठोर और अहंकारी गृह मंत्री के रूप में बनी।
राजनीति और प्रशासन का लंबा अनुभव
पी. चिदंबरम ने राजनीति में कदम 1972 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) की सदस्यता लेकर रखा। वे 1973 में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1984 में तमिलनाडु की शिवगंगा सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। अपने करियर में वे छह बार लोकसभा सांसद रहे। उन्होंने वाणिज्य, वित्त, गृह, आंतरिक सुरक्षा और कार्मिक मंत्रालयों में काम किया। 1996 का उनका ‘ड्रीम बजट’ आज भी भारतीय आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।
सत्ता, संघर्ष और सियासत का सफर
पी. चिदंबरम की कहानी भारतीय राजनीति में सत्ता के शिखर से गिरावट तक की यात्रा का प्रतीक है। एक ऐसा नेता जिसने वित्तीय सुधारों से लेकर आतंकवाद के खिलाफ सख्त फैसले लिए, लेकिन बाद में विवादों, कानूनी मामलों और पार्टी के भीतर मतभेदों में उलझकर खुद निशाने पर आ गए।