भारत ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने के चीन के हालिया प्रयास को दृढ़ता से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने इसे “निरर्थक और हास्यास्पद” कदम करार देते हुए कहा है कि यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है और इस सच्चाई को कोई भी प्रयास नहीं बदल सकता।
यह पहला मौका नहीं है जब चीन ने ऐसा ‘नाम बदलने’ का प्रयास किया हो; हालांकि, यह अक्टूबर 2024 में पूर्वी लद्दाख में दोनों सेनाओं के बीच पीछे हटने की सहमति के बाद पहला ऐसा प्रयास है। उसी समझ के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक हुई थी। उस समय दोनों नेताओं ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी को सीमा विवाद सुलझाने का जिम्मा सौंपा था।
बुधवार को भारत ने अरुणाचल प्रदेश में कई स्थानों के नाम बदलने के चीन के नवीनतम प्रयास को खारिज करते हुए दोहराया कि यह राज्य भारत का अविभाज्य हिस्सा है। विदेश मंत्रालय ने इसे तथाकथित “रचनात्मक नामकरण” करार दिया।
विदेश मंत्रालय ने कहा- “हमने देखा है कि चीन अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने के निरर्थक और हास्यास्पद प्रयास करता रहा है। हमारे सैद्धांतिक रुख के अनुरूप, हम ऐसे प्रयासों को पूरी तरह खारिज करते हैं। रचनात्मक नामकरण से यह अटल सत्य नहीं बदलेगा कि अरुणाचल प्रदेश था, है और हमेशा भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा रहेगा।”
यह बयान तब आया जब चीनी अधिकारियों ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश राज्य के भीतर कुछ क्षेत्रों के लिए नामों की सूची जारी की। चीन इस राज्य को अपना हिस्सा बताते हुए इसे “दक्षिण तिब्बत” कहता है, जिसे भारत ने हर बार पूरी तरह से खारिज कर दिया है।
भारत का हमेशा यह स्पष्ट रुख रहा है कि इस प्रकार के प्रयास राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित होते हैं और इनकी अंतरराष्ट्रीय कानून या द्विपक्षीय समझौतों के तहत कोई वैधता नहीं है। विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि भारत सरकार देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और चीन द्वारा ज़मीनी हकीकत को नामों के ज़रिए बदलने की किसी भी कोशिश को सख्ती से खारिज करता है।
पिछले साल अप्रैल में, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के स्थानों के नाम बदलने की कार्रवाई की थी। चीन ने पहले अरुणाचल प्रदेश के कस्बों को चीनी नाम दिए, जिसके जवाब में भारत ने तिब्बत के 30 स्थानों का नाम बदल दिया था।