
Does Lord Krishna’s heart really beat?
Mystery of Jagannath Temple: भारत के चार धामों में से एक, पुरी का जगन्नाथ मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह रहस्यों और चमत्कारों का गढ़ भी है। हजारों भक्त हर साल यहां भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन मंदिर की कुछ बातें इतनी रहस्यमयी हैं कि उन्हें देखकर वैज्ञानिक भी चकित रह जाते हैं। इन रहस्यों में सबसे बड़ा और चौंकाने वाला है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण का धड़कता हुआ हृदय, जिसे ब्रह्म तत्व कहा जाता है। भक्तों की मान्यता है कि यह हृदय आज भी जीवित है और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर विद्यमान है। इसे महसूस करना या देखना किसी के लिए संभव नहीं है और इसे केवल विशेष पुजारी ही मूर्ति में स्थापित कर पाते हैं।
भगवान कृष्ण का हृदय और ब्रह्म तत्व
जब भगवान कृष्ण ने इस पृथ्वी से अपनी देह त्यागी, तो उनका शरीर पंच तत्वों में विलीन हो गया, लेकिन उनका हृदय नहीं जला। कहा जाता है कि यह दिव्य हृदय आज भी सुरक्षित है और पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान की मूर्ति के भीतर ‘ब्रह्म तत्व’ के रूप में विद्यमान है। भक्त इसे भगवान के जीवित रूप के रूप में मानते हैं और यही कारण है कि इस हृदय की रहस्यमयी धड़कन के बारे में सुनते ही श्रद्धालुओं के मन में असीम आस्था जाग उठती है।
राजा इंद्रद्युम्न और नीम की लकड़ी की अद्भुत मूर्तियां
जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां किसी सामान्य धातु या पत्थर से नहीं बनी हैं। यह नीम की लकड़ियों से निर्मित हैं। जो अपने आप में अद्भुत रहस्य लिए हुए हैं। मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राजा इंद्रद्युम्न को सपना दिखाया और नीम की लकड़ी से मूर्तियां बनाने का आदेश दिया। राजा ने इस दिव्य आदेश का पालन किया और पुरी में यह अद्भुत मंदिर बनवाया। नीम की लकड़ी का इस्तेमाल न केवल पवित्र माना जाता है, बल्कि इसे जीवित तत्वों का वाहक भी माना जाता है। यही कारण है कि यह लकड़ी हर बार नव कलेवर की प्रक्रिया में भी भगवान के दिव्य अस्तित्व को सुरक्षित रखती है।
नव कलेवर की रहस्यमयी प्रक्रिया
पुरी के जगन्नाथ मंदिर की सबसे रहस्यमयी प्रक्रिया है नव कलेवर, जिसमें हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। इस प्रक्रिया को अत्यंत गोपनीय तरीके से किया जाता है और पूरी प्रक्रिया के दौरान पुरी शहर की बिजली काट दी जाती है। जिन पुजारियों को यह कार्य सौंपा जाता है, उनके हाथ दस्तानों में और आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है, ताकि कोई भी व्यक्ति ब्रह्म तत्व को न देख पाए और न ही छू पाए। मान्यता है कि इसे देखने या छूने वाला व्यक्ति तुरंत मर जाएगा।
पुजारियों का अनुभव बताता है कि जब वे पुरानी मूर्ति से ब्रह्म तत्व निकालते हैं और नई मूर्ति में स्थापित करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हाथों में कोई जीवित प्राणी उछल रहा हो। इसे देखकर उनकी श्रद्धा और भय दोनों जाग उठते हैं। यह अनुभव उन्हें विचलित कर देता है, लेकिन भगवान के प्रति कर्तव्य और भक्ति के कारण वे इस कठिन कार्य को पूरा करते हैं। यही वजह है कि ब्रह्म तत्व की रहस्यमयी धड़कन आज भी सुरक्षित और अद्भुत बनी हुई है।
जगन्नाथ की मूर्तियां कौन बनाता है?
पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की मूर्तियां बनाने का पवित्र कार्य दैतापति और विश्वकर्मा वंश के परिवारों द्वारा किया जाता है। यह कला साधारण कारीगरों का काम नहीं बल्कि वंशानुगत जिम्मेदारी है, जिसे पीढ़ियों से यही परिवार निभाते आए हैं। मूर्तियों को तराशने वाले महारण और सुतार परिवार के लोग कई दिनों तक उपवास, संकल्प और पवित्रता का पालन करते हैं। क्योंकि देवदारु खोजने से लेकर मूर्ति निर्माण तक हर चरण में मंत्रोच्चार और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन अनिवार्य है। नई मूर्तियों के लिए जिस नीम के पेड़ को चुना जाता है उसे दिव्य वृक्ष माना जाता है और इसे ढूंढने की परंपरा भी स्वयं में एक लंबी और रहस्यमयी प्रक्रिया है। जब सही वृक्ष मिल जाता है, तब मूर्ति निर्माण शुरू होता है और यह कार्य अत्यंत गुप्त रूप से किया जाता है।
पुरानी मूर्तियों का क्या होता है?
जगन्नाथ मंदिर में नवकलेवर के समय जब नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं, तब पुरानी मूर्तियों को हटाने की प्रक्रिया बेहद दुर्लभ होती है। ये दृश्य बेहद भावुक होता है। क्योंकि वे मूर्तियां भक्तों की भावनाओं के साथ गहराई से जुड़ी होती है। पुरानी मूर्तियां मंदिर परिसर के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित पवित्र स्थान कोइली बैकुंठ में ले जाई जाती हैं, जिसे भगवान का श्मशान माना जाता है। यहां उन्हें विशेष पूजा के बाद चुपचाप दफनाया जाता है। इन मूर्तियों को न तो जलाया जाता है और न ही काटा जाता है, क्योंकि इन्हें भगवान का शरीर माना जाता है। जिसका अंतिम संस्कार केवल दफनाकर ही किया जाता है। यह पूरा कार्यक्रम दैतापति पुजारियों द्वारा रात के अंधेरे में किया जाता है। जब मंदिर के सभी रास्ते बंद कर दिए जाते हैं और बाहरी लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती।
क्यों माना जाती है यह पूरी प्रक्रिया अद्वितीय?
जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों का बदलना सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि भावनाओं और आस्थाओं का ऐसा संगम है जिसका कोई दूसरा उदाहरण दुनिया में नहीं मिलता। नीम की लकड़ी की मूर्तियां, दैतापति पुजारियों की भूमिका, नवकलेवर की गोपनीयता और ब्रह्म तत्व का रहस्य ये सब मिलकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर को गहन आध्यात्मिकता और अद्भुत चमत्कारों का केन्द्र बना देते हैं।
मंदिर के अन्य रहस्य और चमत्कार
जगन्नाथ मंदिर सिर्फ मूर्ति और नव कलेवर तक ही सीमित नहीं है। मंदिर में प्रतिदिन बनने वाले महाप्रसाद की प्रक्रिया भी अत्यंत गोपनीय और पवित्र मानी जाती है। इसे बनाने और वितरित करने का कार्य केवल विशेष पुजारी ही कर सकते हैं। मंदिर के ऊपरी हिस्से में फहरा रहा झंडा हमेशा हवा के प्रवाह से उत्तर दिशा की ओर रहता है और यह झंडा कभी भी पीछे की दिशा में नहीं मुड़ता। इसे भी चमत्कार ही माना जाता है। नीम की लकड़ी की मूर्तियों का निर्माण और संरचना इतनी मजबूत और टिकाऊ होती है कि दशकों तक इन्हें बनाए रखना आसान हो जाता है।
भक्तों के लिए यह मंदिर केवल दर्शन और पूजा का स्थल नहीं है, बल्कि भगवान के जीवित होने का प्रतीक भी है। यही कारण है कि पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक अद्भुत धार्मिक और रहस्यमयी स्थल माना जाता है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी परंपरागत मान्यताओं, धार्मिक ग्रंथों, ऐतिहासिक संदर्भों और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। स्थानीय परंपराओं और व्यक्तिगत आस्थाओं में भिन्नता संभव है।


