इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव शुक्रवार को राज्यसभा के महासचिव को सौंपा गया। प्रस्ताव पर 55 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर किए, जो महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए आवश्यक 50 सांसदों की सीमा से अधिक है।
कपिल सिब्बल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया। प्रतिनिधिमंडल में सांसद विवेक तन्खा, दिग्विजय सिंह, पी. विल्सन, जॉन ब्रिटास और के.टी.एस. तुलसी शामिल थे। भारत के संविधान के अनुच्छेद 217(1)(बी) और अनुच्छेद 218 के साथ अनुच्छेद 124(4) और 124(5) के तहत, एक जज को न्यायिक नैतिकता, निष्पक्षता और सार्वजनिक मुद्दों को कमजोर करने वाले कार्यों के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। ताकि न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कायम रह सके।
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विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के सार्वजनिक कार्यक्रम में विवादित भाषण के 4 दिन बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस शेखर यादव का जूडिशल रोस्टर बदल दिया है। 16 दिसंबर से प्रभावी नए रोस्टर के अनुसार, जस्टिस यादव सिर्फ सिविल अदालतों के आदेशों, विशेष रूप से 2010 तक के आदेशों से जुड़ी ‘पहली अपील’ की सुनवाई करेंगे।
जस्टिस यादव अभी तक रेप और यौन अपराध मामलों से संबंधित ‘प्रमुख’ जमानत अर्जियों को देख रहे थे। उनका मौजूदा रोस्टर 15 अक्टूबर को लागू किया गया था। लेकिन अब 16 दिसंबर से उन्हें नए रोस्टर के मुताबिक काम करना होगा।
जस्टिस यादव को दिसंबर 2019 में हाईकोर्ट का अतिरिक्त जज और मार्च 2021 में स्थायी जज नियुक्त किया गया था। जस्टिस यादव ने अपने अधिकांश कार्यकाल के दौरान मुख्य रूप से जमानत और आपराधिक मामलों को निपटाया है। वो मार्च 2026 में रिटायर होने वाले हैं। कहा जा रहा है कि रिटायर होने के बाद वो भाजपा में शामिल हो जाएंगे और यूपी में अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस यादव के बयान का फौरन संज्ञान नहीं लिया। वो तभी हरकत में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान मीडिया रिपोर्ट और वीडियो के आधार पर लिया। जस्टिस शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में रविवार को विवादित बातें कही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिन पहले जस्टिस यादव से जुड़े दस्तावेज मांगे थे।
समान नागरिक संहिता: एक संवैधानिक आवश्यकता विषय पर अपने भाषण में उन्होंने कहा कि भारत में बहुसंख्यकों की इच्छाओं के अनुसार देश काम करेगा। उनके इस बयान का देशभर में विरोध हो रहा है। तमाम वकील संगठन, राजनीतिक दलों के नेताओं, जनसंगठनों ने जस्टिस यादव के बयान की निन्दा की। लोगों ने जज यादव को संविधान की याद दिलाई, जिसकी शपथ लेकर वो इस कुर्सी पर बैठे।
जस्टिस यादव ने कहा कि वह “शपथ ले रहे हैं” कि जल्द ही देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। उन्होंने राम लल्ला को मुक्त देखने और एक भव्य भगवान राम मंदिर के निर्माण का गवाह बनने के लिए ‘पूर्वजों’ द्वारा किए गए ‘बलिदान’ को याद किया। उन्होंने मुस्लिमों के लिए ‘कठमुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल किया। जस्टिस यादव ने यह भी टिप्पणी की कि मुस्लिम बच्चों से दया और सहनशीलता की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जब वे कम उम्र से ही अपने सामने जानवरों का वध किए जाने का दृश्य देखते हैं।
अपने संबोधन में, हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच तुलना करते हुए, जस्टिस यादव ने टिप्पणी की कि हिंदू धर्म के भीतर छुआछूत, सती और जौहर जैसी प्रथाओं को खत्म कर दिया गया। जबकि मुस्लिम समुदाय ने बहुविवाह, हलाल, तीन तलाक आदि की प्रथा को जारी रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि ये प्रथाएं अस्वीकार्य हैं।
न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने सीजेआई संजीव खन्ना को पत्र लिखकर जस्टिस यादव के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने के लिए ‘इन-हाउस जांच’ की मांग की। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल, कश्मीर से सांसद रूहुल्लाह मेहंदी) ने भी महाभियोग प्रस्ताव लाने की सूचना दी। जस्टिस यादव इससे पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)